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गाज व बैंडेज का टोटा, दावा बेहतर स्वास्थ्य सेवा का

केस एक - शहर के मोहल्ला डीएम कालोनी निवासी जितेंद्र कुमार ने बताया कि रात में उनके दो

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 06:26 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 06:26 PM (IST)
गाज व बैंडेज का टोटा, दावा बेहतर स्वास्थ्य सेवा का
गाज व बैंडेज का टोटा, दावा बेहतर स्वास्थ्य सेवा का

केस एक - शहर के मोहल्ला डीएम कालोनी निवासी जितेंद्र कुमार ने बताया कि रात में उनके दोस्त को बाइक से चोट लग गई थी। पट्टी कराने अस्पताल गए तो पहले टिटनेस का इंजेक्शन नहीं था। बाद में रुई व पट्टी भी हल्की लगाई गई। इससे खून ऊपर तक दिख रहा था। केस दो - मर्दननाका मोहल्ला निवासी मुमताज ने बताया कि वह मरीज पेट दर्द होने पर अस्पताल लेकर गया था। जहां पहले एक इंजेक्शन लगाने पर उसे आराम नहीं मिला। दोबारा कहने पर बाहर से इंजेक्शन लिखा गया। खरीदकर इंजेक्शन लाने के बाद मरीज को आराम मिला है। जागरण संवाददाता, बांदा : कोरोना संक्रमण के समय सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराने का दावा हवा हवाई साबित हो रहा है। जिला अस्पताल में इस समय जहां गाज व बैंडेज का स्टाक कम है। वहीं मरहम के साथ एंटी बायोटिक व दर्द का इंजेक्शन भी नहीं आ रहा है। चिकित्सकों को मिलता जुलता दूसरा इंजेक्शन मजबूरी में मरीज को लगाना पड़ता है।

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जिला अस्पताल व ट्रामा सेंटर की इमरजेंसी मिलाकर वर्तमान में करीब 128 बेड संचालित हैं। इसमें रोजाना करीब साढ़े आठ सौ मरीजों की ओपीडी चल रही है। करीब 100 से 125 मरीज इमरजेंसी में रोजाना आ रहे हैं। इसमें घायलों की संख्या भी करीब 40 प्रतिशत रहती है। लेकिन इस समय ड्रेसिग रूम में गाज व बैंडेज के साथ बीटाडीन मरहम का टोटा रहता है। मरहम की जगह सिर्फ लोशन से काम चलता है। इसी तरह घायलों के उपचार में गाज व बैंडेज का इस्तेमाल आवश्यकता से कम किया जा रहा है। कर्मचारियों के सामने मजबूरी यह रहती है कि उन्हें सप्ताह में दो बंडल गाज के मिलते हैं। जो चार दिन या मरीज ज्यादा आने से तीन दिन में ही समाप्त हो जाती है। इसी तरह महत्वपूर्ण कोल्ड डायरिया, सर्दी व बुखार खांसी में इस्तेमाल होने वाला एंटीबायोटिक इंजेक्शन सफैराजोल, दर्द का डायक्लोफिनिक, टिटनेस का टीटी, पेट दर्द का डाइसाकिलोमीन इंजेक्शन का स्टाक भी कम है। इमरजेंसी में उपलब्धता न होने से दर्द का इंजेक्शन हर मरीज को ट्रामाडाल ही लगाना पड़ता है। जबकि घायलों व कुछ मरीजों को डायक्लोफिनिक ही लगाना जरूरी होता है। अन्य इंजेक्शनों के न होने बदले में इससे मिलते जुलते दूसरे लगाने पड़ते हैं। मरीजों को ज्यादा दवा व इंजेक्शनों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। इससे वह भी इस बारे में जल्दी कुछ बोल नहीं पाते हैं।

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- अस्पतालों में दवाओं की कमी नहीं है। जो दवाएं घटती हैं उनका आर्डर पहले से किया जाता है। कई बार सप्लाई आने में देर हो जाती है। वह जानकारी करके इसे समय पर पूरा कराएंगे।

डॉ. उदयभान सिंह सीएमएस जिला अस्पताल

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चिकित्सक बाजार से मंगवाते हैं दवा

- जिला अस्पताल में बाजार से दवा मंगवाने का कुछ चलन सा बन गया है। जो दवाएं अस्पताल में उपलब्ध भी होती हैं। उन्हें भी कुछ चिकित्सक कमीशन के चक्कर में बाहर की दुकान से मंगवाते हैं। तीमारदार के इंजेक्शन लेकर आने पर उनका उपचार शुरू होता है। इसमें ऐसा नहीं है कि अस्पताल प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं होती है। उनके कहने पर कुछ दिनों के लिए यह प्रक्रिया कम हो जाती है। इसके बाद फिर वहीं ढर्रा शुरू हो जाता है।


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