सूखे पड़े जलस्त्रोत में श्रमदान से बह निकली जलधार
अतर्रा/बदौसा मन में कुछ कर गुजरने की लगन हो और दिल में जज्बा तो रेगिस्तान में भी कमल खिला
अतर्रा/बदौसा : मन में कुछ कर गुजरने की लगन हो और दिल में जज्बा तो रेगिस्तान में भी कमल खिलाया जा सकता है। इस कहावत का सच कर दिखाया समाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय ने। अतर्रा व बदौसा के बीचोबीच नेशनल हाईवे किनारे स्थित जलस्त्रोत अनदेखी के चलते अस्तित्व खोने लगा। जिसकी दुर्दशा देखकर समाजसेवी का मन व्याकुल हो गया। ग्रामीणों की मदद से सफाई की तो तालाब से निर्मल जल की धारा बहने लगी।
सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय ने बताया कि मैं एक दिन खेरिया गांव जा रहा था तभी इस बदहाल जलस्त्रोत पर निगाह पड़ी। कभी न सूखने वाला स्त्रोत बिल्कुल सूखा पड़ा था। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रज्जू सिंह से मिलकर इसके जीर्णोद्धार की बात की। सभी की सहमति व ग्रामीणों की मदद से सफाई कार्य के दौरान जमी मिट्टी की परत निकाली तो काफी देर बाद एक निर्मल जल धारा बह निकली। इससे श्रमदान करने वालों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसकी जानकारी जलस्त्रोत के बारे में केंद्रीय भू जल विभाग के निदेशक वाईएल कौशिक से बात की गई तो उन्होंने आगामी तीन अप्रैल को इसके निरीक्षण की बात कही है। श्रम दान के दौरान जल ग्राम जखनी की टीम के प्रमुख अशोक अवस्थी, चन्द्रशेखर महाविद्यालय के प्रबंधक बच्चा पांडेय, राजेश सिंह, आदि मौजूद रहे। इसके पूर्व समाजसेवी राकेश गौतम ने सन 2017 में तत्कालीन जिलाधिकारी योगेश कुमार से फरियाद कर कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने सीडीओ से जांच कराकर जलस्त्रोत को बचाने के निर्देश दिए थे। इनसेट
असाध्य रोगों की दूर करने की है क्षमता
बदौसा : जल स्त्रोत के पानी में ऐसे तत्व मौजूद हैं कि ग्रामीणों के गंभीर रोग भी दूर हो जाते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि इस पानी के लगातार सेवन से व नहाने से चर्म रोग, उदर रोग जैसी बीमारियां ठीक होती हैं।कैंसर, पथरी जैसे रोगों में भी लोगो को राहत मिलती है। इनसेट -
देश की सब से छोटी नदियों में शुमार है बिसाहिल नदी
बदौसा : बिसाहिल बागै की सहायक नदी मानी जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग पांच किलोमीटर है। तीन किलोमीटर दूर तक फैले जल स्त्रोतों की वजह से तुर्रा गांव का जल स्त्रोत लगभग 25 से 35 फुट के बीच गर्मी में भी स्थिर रहता है। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि विष का प्रभाव भी इस जल स्त्रोत का पानी पीने से दूर होता है। तभी इसका नाम बिसाहिल हो गया।
ग्राम प्रधान रज्जू सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि हरिद्वार से भू गर्भ शास्त्रियों ने यहां का जल तीन वर्ष पहले परीक्षण किया था ,जिसमें पानी हरिद्वार के गंगा जैसा जांच में पाया गया था ।