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नवाबटैंक कजली मेले में गायब रही भीड़

रक्षाबंधन के दूसरे दिन ऐतिहासिक नवाबटैंक व छाबी तालाब में 200 वर्षों से कजली का भव्य मेला लगता आ रहा है। इस वर्ष मेले में भीड़ नदारद रही। कोरोना संक्रमण के चलते महिलाओं व युवतियों ने शारीरिक दूरी का पालन करते हुए कजली विसर्जन किया। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में भी सावन गीत गाते हुए महिलाएं कजेलिया विसर्जन करने पहुंची।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 10:40 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 07:24 AM (IST)
नवाबटैंक कजली मेले में गायब रही भीड़
नवाबटैंक कजली मेले में गायब रही भीड़

जागरण संवाददाता, बांदा : रक्षाबंधन के दूसरे दिन ऐतिहासिक नवाबटैंक व छाबी तालाब में 200 वर्षों से कजली का भव्य मेला लगता आ रहा है। इस वर्ष मेले में भीड़ नदारद रही। कोरोना संक्रमण के चलते महिलाओं व युवतियों ने शारीरिक दूरी का पालन करते हुए कजली विसर्जन किया। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में भी सावन गीत गाते हुए महिलाएं कजेलिया विसर्जन करने पहुंची। बुंदेलखंड में कजली मेले की पहचान 200 वर्ष पुरानी है। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण ने सभी त्योहारों के साथ कजली मेला पर भी ग्रहण लगा दिया है। बुधवार को सुबह से महिलाएं कजली लेकर गीत गाते हुए शहर के छाबी तालाब व नवाब टैंक पहुंची। यहां पुलिस सुरक्षा के बीच कजली विसर्जित किया। शाम को नवाब टैंक में कजली मेला के लिए कुछ भीड़ जुटी, लेकिन पुलिस ने भगा दिया। इस बार एक भी दुकानें नजर नहीं हैं। बच्चे गए तो उन्हें झूले आदि न दिखने पर मायूस हुए। उधर, ग्रामीण इलाकों में भी कजली का पर्व परंपरागत तरीके से मनाया गया। घर-घर पकवान बने और महिलाओं ने कजलिया विसर्जन के बाद जगह-जगह कजली का वितरण किया। मान्यता है कि इससे धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

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