बांदा में संभलकर चलिए, हादसा कहीं बिखेर न दे पूरा परिवार
जागरण संवाददाता बांदा चित्रकूट संभलिए कहीं हादसे आपके पूरे परिवार को न बिखेर दे। जी
जागरण संवाददाता, बांदा चित्रकूट : संभलिए, कहीं हादसे आपके पूरे परिवार को न बिखेर दे। जी हां आपकी जरा सी लापरवाही न सिर्फ आपके लिए जानलेवा हो सकती है बल्कि आपके परिवार को भी कभी न भूलने वाला दर्द भी दे सकती है। इन हादसों में किसी की मां की गोद सूनी हो जाती है तो किसी का सुहाग। कोई बहन अपना भाई खो देती है तो कोई भाई अपनी बहन को। लेकिन आपकी जरा सी सावधानी इन सभी को न सिर्फ दर्द से बचा सकती है बल्कि आपके जीवन की डोर को भी लंबा कर सकती है। हम सभी को चाहिए कि वाहन चलाते समय नियमों का सख्ती से पालने करें। इतना ही नहीं अगर कोई अपना है तो उसे प्रेरित भी करें कि वह नियमों का पालन इमानदारी से करे। बीते तीन सालों के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो ये ये डरावने से लगते हैं। बांदा में जहां तीन सौ पचास लोगों ने हादसों में अपनी जान गवां दी तो वहीं चित्रकूट में तीन साल में हुए 664 सड़क हादसे में 290 की मौत हो गई। अगर नजदीक के आंकड़ों पर ही गौर करें तो अकेले बांदा में एक सप्ताह के भीतर 13 लोगों की मौत सड़क हादसे में हो चुकी है। जान गंवाने वालों में ज्यादातर युवा ही हैं।
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बढ़ रही ठंड, धुंध बनेगी खतरनाक
सड़क पर वाहन चलाते समय सबसे मौसम भी दुश्मन बनेगा। पुलों के तीखे मोड़ और सड़कों के गड्ढे जानलेवा साबित हो सकते हैं। चंद मीटर की दूरी को भी धुंध की चादर ढक देगी और रफ्तार काल बन सकती है। धुंध की वजह से गिरती ²श्यता भारी पड़ सकती है और हादसे को जन्म दे सकती है।
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नजर नहीं आते मार्ग पर संकेतांक, खाते हैं धोखा
जिले में सबसे बड़ी समस्या सड़कों किनारे लगने वाले संकेतांक नजर नहीं आने की है। केवल हाईवे पर कहीं-कहीं इनके दर्शन होते हैं। रोड रिफ्लेक्टर लगे तो हैं पर बंद पड़े हैं। इसके बीच यातायात उल्लंघन चरम पर है। विपरीत लेन पर चलना शगल बन गया है। बेकाबू रफ्तार खुद और सामने वाले पर कहर बरपाती है।
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कई मामले नहीं हो पाते हैं दर्ज
सड़क हादसों में कई ऐसे मामले हैं जो दर्ज नहीं हो पाते हैं। लोग निजी अस्पताल में इलाज कराने के बाद घर चले जाते हैं। गंभीर रूप से घायल और मौत होने पर ही हादसा पुलिस रिकार्ड का हिस्सा बन पाता है।
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सरकारी आंकड़े
वर्ष हादसे मौत घायल
नवंबर 2020 219 112 128
2019 345 126 220
2018 263 126 187
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भैया, तुम कहां चले गए कह सिसकती हैं बहनें
फोटो - 18, 19
संवाद सहयोगी, अतर्रा : सुभाष नगर देबिन तालाब के पीछे जानकी प्रसाद सविता अपनी पत्नी सियादुलारी व चार बच्चों के साथ तंगहाल जिदगी झोपड़ी में रह गुजार रहे थे। सन 2001 में बीमारी से सियादुलारी एक दुधमुंही बच्ची सहित सभी को छोड़ चल बसीं। दो साल बाद जानकी प्रसाद की भी मृत्यु हो गई। मां-बाप की मौत के बाद उस समय नाबालिग होने के बाद भी बेटे जितेंद्र ने मजदूरी की और तीन बहनों का सहारा बना। होनी को कुछ और मंजूर था। चार मई 2017 की शाम ग्राम बछेहि में रिश्तेदारी से बाइक से लौटते समय जितेंद्र नेशनल हाइवे के नगनेधी मोड़ के पास सड़क हादसे का शिकार हो गया। एक बार फिर तीनों बहनें निशा, नंदनी व प्राची बेसहारा हो गईं। बीते तीन सालों में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरा, जब वह भाई को याद कर सिसकती न हों। बालिग हो चुकी बड़ी बहन निशा की बीते वर्ष पालिका कार्यालय में आउटसोर्सिंग कर्मी में नियुक्त हो गई पर कोरोना संकट काल में वह भी चली गई। नंदनी कक्षा 11 व प्राची कक्षा नौ की छात्रा है, निशा कहती है खर्च उठाना मुश्किल पड़ रहा है। बस भाई की याद कर सिसकते हुए जीवन काट रही है।
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चित्रकूट में बीते तीन वर्षों में हुए हादसे
वर्ष घटनाएं मौत घायल
2018 231 119 168
2019 241 91 195
2020 192 80 160
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इनका कहना है
यातायात की व्यवस्था शहर में तो ट्रैफिक पुलिस देखती है लेकिन जिले में अन्य जगह लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं इससे अधिक हादसे ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में होते हैं।
- घनश्याम पांडेय - यातायात प्रभारी