का¨लजर महोत्सव में जुटेंगे पांच लाख से अधिक श्रद्धालु
संवाद सहयोगी, नरैनी (बांदा) : मध्य प्रदेश व यूपी की की सीमा को जोड़ने वाले अजेय दुर्ग का¨लजर म
संवाद सहयोगी, नरैनी (बांदा) : मध्य प्रदेश व यूपी की की सीमा को जोड़ने वाले अजेय दुर्ग का¨लजर में नील कंठेश्वर मंदिर पर मेले की नींव 9वीं शताब्दी में पड़ी थी। तभी से यहां कार्तिक पूर्णिमा पर सात दिवसीय विशाल मेला लगता है। इसमें उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के अलावा देश व विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। भगवान नीलकंठेश्वर के दर्शन व पूजा-अर्चना करते हैं। इस बार मेले में पांच लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।
का¨लजर के ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व को देखते हुए खजुराहो की तर्ज पर शासन ने का¨लजर महोत्सव की शुरुआत कई साल पहले की थी। लेकिन दो-तीन वर्ष तो यह महोत्सव बेहतर रहा। इसके बाद अधिकारियों की शिथिलता व उदासीनता की भेंट चढ़ गया। 22 नवंबर से शुरू होने वाले इस पौराणिक व ऐतिहासिक मेले में लाखों श्रद्धालु जुटेंगे ।
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दर्शन से एक करोड़ गोदान का पुण्य
बुजुर्गों का कहना है कि पद्म पुराण में वर्णन है कि समुद्र मंथन के बाद भगवान शिव ने गरल पान किया। बाद में भगवान शंकर का¨लजर के किला में आकर ठहरे थे। यहां उन्हें शांति मिली। तभी से वह नीलकंठेश्वर कहलाएं। नीलकंठ भगवान की एक विशाल प्रतिमा यहां कई सौ फीट नीचे विराजमान हैं। पदम पुराण में उल्लेख है कि कार्तिक के महीने में जो लोग यहां आकर रात्रि विश्राम के बाद भगवान शंकर का जलाभिषेक व दर्शन करते हैं उन्हें एक करोड़ गोदान का पुण्य मिलता है। इस मान्यता के चलते कार्तिक पूर्णिमा पर यहां भक्तों का जमघट लगता है।
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का¨लजर दुर्ग की धरोहर
हजारों वर्ष पूर्व निर्मित इस किले का स्वरूप विराट है। सैकड़ों फीट की ऊंचाई में किले के ऊपर समतलीकरण के साथ मैदानी क्षेत्र भी है। कई वर्ष पूर्व प्रदेश के राज्यपाल विष्णु कांत शास्त्री का हेलीकॉप्टर भी उतारा जा चुका है। किले के ऊपर स्थित रानी महल, चौबे महल, रंग महल, जखीरा महल,कोट तीर्थ, राजा मान ¨सह का महल, मोती महल, सरगवाह, सीता कुंड आदि दुर्ग की धरोहर है। यहां की मृग धारा का रहस्य आज भी बरकरार है। एक विशाल चट्टानों से सैकड़ों वर्ष पूर्व से पानी धारा अनवरत निकल रही है। यह पूर्ण रूप से शुद्ध है। लाखों लोग इस विशाल मेले में इसी जल पीते हैं।