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बांदा कृषि विश्वविद्यालय में तैयार कम दिन में अधिक उत्पादन वाली प्याज की प्रजाति

किसानों की आय दोगुनी करने की भारत सरकार की मंशा पूरी करने की दिशा में बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने एक बढ़ाया है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 07:01 PM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 11:31 PM (IST)
बांदा कृषि विश्वविद्यालय में तैयार कम दिन में अधिक उत्पादन वाली प्याज की प्रजाति
बांदा कृषि विश्वविद्यालय में तैयार कम दिन में अधिक उत्पादन वाली प्याज की प्रजाति

बांदा (जेएनएन)। किसानों की आय दोगुनी करने की भारत सरकार की मंशा पूरी करने की दिशा में बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने एक बढ़ाया है। विवि के एसोसिएट प्रोफेसर डा. आरके सिंह ने कम समय में अधिक उत्पादन और लंबे समय तक भंडारण किए जा सकने वाले प्याज की नई प्रजाति विकसित की है। इसका नाम  लाइन-883 रखा है। उल्लेखनीय है कि बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी ने इससे पहले एग्री फाउंड डार्क रेड प्रजाति तैयार की थी जो बुंदेलखंड के किसानों के लिए बेहद लाभदायक सिद्ध हो रहा है।

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कुछ तो खास है

  • 110 के बजाय 83 दिन में पैदावार 
  • प्रति हेक्टेयर 300-350 क्विंटल उपज
  • आम उपज 250-280 क्विंटल प्रति हे.
  • 80-90 दिन शीतगृह में भी रख सकेंगे 
  • अभी केवल 20 दिन का भंडारण संभव 

400 किसानों से उत्साहजनक नतीजा

प्रोफेसर डा. आरके सिंह के अनुसार प्याज की इस नई प्रजाति की फसल 110 दिन के बजाए 83 दिन में तैयार हो जाएगी और उत्पादन करीब 20 फीसद अधिक होगा। इसे 20 दिन के बजाए 80 से 90 दिन तक कोल्ड स्टोरेज में रख सकेंगे। देश के अलग-अलग हिस्सों, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक के 400 किसानों को प्रयोग के तौर पर दिए गए बीज का परिणाम बेहद उत्साहजनक मिला तो विवि ने इस वर्ष फसल के लिए किसानों को बीज दिया है। विश्वविद्यालय का दावा है कि यह प्रजाति बुंदेलखंड, दक्षिण भारत समेत देश के अधिकतर इलाकों की मिïट्टी और जलवायु के लिए मुफीद है। 

नासिक में शोध, बांदा में नर्सरी 

एसोसिएट प्रोफेसर आरके सिंह ने नासिक कृषि अनुसंधान केंद्र में तैनाती के दौरान लाइन-883 प्रजाति पर काम शुरू किया था। करीब डेढ़ साल पहले स्थानांतरण बांदा कृषि विवि में हो गया। यहां उन्होंने शोध पूरा किया। बांदा की नर्सरी में बीज तैयार किए। प्रजाति के गुणधर्म का मूल्यांकन किया तो उत्साहजनक परिणाम मिले। डा. आरके सिंह का कहना है कि एक बीघे में तीन किलोग्राम बीज लगेगा। चूंकि खरीफ के सीजन में प्याज काफी महंगी होता है। ऐसे में नई प्रजाति किसान से लेकर उपभोक्ता तक, सभी के लिए फायदेमंद होगी।

बुंदेलखंड के लिए वरदान 

डा. आरके सिंह के अनुसार बुंदेलखंड में सल्फर की मात्रा सामान्य से अधिक है। यह मृदा पोषण का चौथा आवश्यक तत्व है। पौधों में क्रियाशीलता बढ़ाता है। इस प्रजाति के लिए अधिक सल्फर वाली मिट्टी बेहद मुफीद है। ऐसे में यह बुंदेलखंड के लिए वरदान होगी। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. यूएस गौतम ने बताया कि किसानों को बेहतर बीज देने का प्रयास लगातार जारी है। इससे किसानों को बेहतर प्लेटफार्म मिलेगा। 'लाइन-883 बुंदेलखंड ही नहीं, पूरे देश के लिए बेहद फायदेमंद प्रजाति साबित होगी। 


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