खातों में लाखों डंप फिर भी विकास कार्यों पर ब्रेक
जागरण संवाददाता, बांदा : ग्राम पंचायतों के विकास के लिए शासन द्वारा भेजी जा रही धनराशि खर्च क
जागरण संवाददाता, बांदा : ग्राम पंचायतों के विकास के लिए शासन द्वारा भेजी जा रही धनराशि खर्च करने में प्रधान व सचिव कंजूसी दिखा रहे हैं। छह माह से ग्राम पंचायतों में लाखों रुपये डंप हैं। गांव की जनता नाली, खड़ंजा और पेयजल समस्या लेकर तहसीलों व ब्लाकों के चक्कर लगा रही है। डीएम ने कई बार कार्यों की धीमी प्रगति पर बीडीओ व सचिवों को फटकार लगाई व चेतावनी दी, पर रवैये में बदलाव नहीं आया।
ग्राम पंचायतों के विकास के लिए शासन हाथ खोलकर धनराशि जारी कर रही है। लेकिन यहां ग्राम पंचायतों में यह धनराशि खर्च नहीं हो पा रही है। जिले की सभी ग्राम पंचायतों के खाते में करीब 10 से 15 लाख रुपये डंप हैं। लेकिन प्रधान व सचिव धनराशि खर्च करने में कंजूसी दिखा रहे हैं। जिले में विकास खंडों में बड़ोखर खुर्द विकास कार्यों में बेहद फिसड्डी है। यहां खंड विकास अधिकारी व डीपीआरओ का सचिवों पर किसी तरह का अंकुश नहीं है। ग्राम पंचायत अधिकारी विकास कार्यों को अपने तरीके से कराने पर आमदा हैं। इसकी बानगी कुरौली, मटौंध ग्रामीण, इटवा, करछा, कुल्कुम्हारी ग्राम पंचायतों में देखी जा सकती है। लेकिन सचिव व प्रधान इसे खर्च करने को तैयार नहीं हैं। इन ग्राम पंचायतों में पिछले छह माह से एक भी कार्य नहीं हुए। जबकि डीएम ने बीडीओ को भी गांवों में जाकर हकीकत देखने व विकास कार्यों की प्रगति बढ़ाने की चेतावनी दी। लेकिन इसका असर नहीं पड़ रहा है। सचिवों की हठधर्मिता से ग्रामीण विकास कार्यों से वंचित हो रहे हैं।
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कहीं कमीशन का खेल तो नहीं
एक ओर जहां ग्राम समाज के खाते में लाखों रुपये पड़े हैं वहीं विकास कार्य बाधित होने के लोगों का अपना अपना अनुमान है। ग्रामीणों को मानना है कि कही प्रधान व सचिव के बीच होने वाली कमीशनबाजी तो इस विकास कार्य में बाधक नहीं है। क्योंकि जब खाते में पैसा है तो विकास क्यों नहीं।
आंगनबाड़ी भवन पड़ा अधूरा
शासन ने मनरेगा, बाल विकास और पंचायतीराज विभाग के सहयोग से 13 लाख की लागत से आंगनबाड़ी केंद्र बनवाने का फरमान जारी किया था। इसके तहत भवन विहीन आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्य भी शुरू हुए। लेकिन भुगतान नहीं किया जा रहा है। ग्राम पंचायत कुरौली में साल भर से नींव स्तर के बाद कार्य अधूरा पड़ा है। बच्चे इधर-उधर घरों में बैठने को मजबूर हैं।
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-मामला संज्ञान में नहीं है। अगर शिकायत आती है तो गांवों की जांच कराई जाएगी। विकास कार्यों में रुचि न लेने वाले सचिवों पर नकेल कसी जाएगी।
- सीडीओ हीरालाल।