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स्वास्थ्य सेवाएं बीमार, मांग रहीं इलाज

डल मुख्यालय के 300 बेड अस्पताल के निर्माण कार्य में बजट का ग्रहण लग गया। वर्ष 2012 में मंडल के तीन सौ शैय्या युक्त अस्पताल के निर्माण को मंजूरी मिली थी। अनुमानित लागत उस समय 56 करोड़ 92 लाख रुपये थी। नवंबर 2012 से राजकीय निर्माण निगम ने कार्य शुरू किया। इसे दिसंबर 2016 तक बनवाकर तैयार कराना था। बेसमेंट सहित छह मंजिला भवन तैयार किया जाना है। संस्था ने अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू तो करा दिया लेकि

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 10:52 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 06:21 AM (IST)
स्वास्थ्य सेवाएं बीमार, मांग रहीं इलाज
स्वास्थ्य सेवाएं बीमार, मांग रहीं इलाज

(कामन इंट्रो)

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चित्रकूट धाम मंडल मुख्यालय में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए योजनाएं तो बहुत बनीं और लागू भी हुईं, लेकिन सियासत ही इसमें बाधक बनकर रोड़े अटकाती रही। बजट न मिलने से 56 करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन 300 शैय्या संयुक्त जिला चिकित्सालय भवन सात वर्ष बाद भी पूरा नहीं हो सका। निर्माण कार्य पूरा करने के लिए 18 करोड़ रुपये के बजट की आवश्यकता है लेकिन यह किसी सरकार ने इसे पूरा कराने की पहल नहीं की। ट्रामा सेंटर पहले से ही बदला है। पहले से आवाज उठा रहे लोगों ने लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मांग बुलंद की लेकिन नक्कारखाने में तूती सा हाल हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बया करती फोटो जर्नलिस्ट सुरेश साहू के साथ सुजीत दीक्षित की रिपोर्ट..

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बजट मिले तो पूरा हो अस्पताल

बसपा शासन में ड्रीम प्रोजेक्ट रहे मंडल मुख्यालय के 300 बेड अस्पताल के निर्माण कार्य में बजट का ग्रहण लग गया। वर्ष 2012 में इस अस्पताल के निर्माण को मंजूरी मिली थी। अनुमानित लागत उस समय 56.92 करोड़ रुपये थी। नवंबर 2012 से राजकीय निर्माण निगम ने कार्य शुरू किया। इसे दिसंबर 2016 तक बनकर तैयार होना था। बेसमेंट सहित छह मंजिला भवन तैयार किया जाना है। संस्था ने अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू तो करा दिया, लेकिन 68 फीसद काम होने के बाद बजट की कमी हो गई। महंगाई व समय अवधि ज्यादा हो जाने से इसका दोबारा एक वर्ष पहले 70 करोड़ का पुनरीक्षित लागत प्रस्ताव भेजा गया। करीब 6 माह पहले तक 51 करोड़ 85 लाख रुपये अवमुक्त हो चुके हैं। अब 18 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर दोबारा शासन को भेजा गया। शासन से अभी तक इसकी मंजूरी नहीं मिल सकी। कार्यदायी संस्था के मुताबिक वर्ष 2012 में 15 करोड़, 2014 में 8 करोड़, 2015 में 5.40 करोड़, वर्ष 2016 में 8.30 करोड़ और वर्ष 2017 में 15.15 करोड़ रुपये का बजट मिला। पिछले दो सालों से सरकार से कोई धनराशि नहीं मिली।

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हाईटेक जमाने में भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी

शहर के व्यवसायी रमेश त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार अगर इस अस्पताल को पूरा करा दे तो वाकई लोगों को काफी राहत मिल जाएगी। जिले में स्वास्थ्य की कोई बेहतर सुविधा नहीं है। अधिवक्ता रमेश त्रिपाठी बताते हैं कि यहां न तो अच्छे चिकित्सक हैं और न ही अस्पताल। 300 बेड अस्पताल से कुछ उम्मीदें थी, वह भी पूरी होती नहीं दिख रही हैं। व्यवसायी सुनील गुप्ता व रमेश पटेल कहते हैं कि जनहितकारी योजनाओं में राजनीति नहीं होनी चाहिए। इसे जल्द से जल्द पूरा होना चाहिए।

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आंकड़ों में अस्पताल की स्थिति

अस्पताल की क्षमता : 300 बेड

स्वीकृत वर्ष : 2012

कुल लागत : 56.92 करोड़

पुनरीक्षित लागत : 70 करोड़

अब तक मिली धनराशि : 51.85 करोड़

कार्य पूरा करने को जरूरत : 18 करोड़

अब तक कार्य की प्रगति : 75 फीसद

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सुविधाओं में हो रही कटौती

बजट कम खर्च करने के लिए मरीजों की सुविधाओं में कटौती की जा रही है। पुनरीक्षित बजट बढ़ने पर शासन से निर्माणाधीन अस्पताल में कई सुविधाएं कम करने को कहा गया था। इसमें अब भर्ती वार्ड में लगने वाली मच्छरदानी, हर जगह आक्सीजन पाइप, फाल सिलिग, वार्ड में लगने वाली एसी आदि में कटौती की जा रही है। प्रथम तल पर टायल्स, दरवाजे, खिड़की, बिजली फिटिग, एल्युमिनियम कार्य, चार लिफ्ट, लांड्री, कैंटीन, सीवर ट्रीटमेंट प्लान आदि कार्य अधूरे पड़े हैं।

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बोले जिम्मेदार :

300 बेड अस्पताल के निर्माण को पूरा करने के लिए शासन से लगातार पत्राचार किया जा रहा है। निर्माण की प्रगति आदि रिपोर्ट भी भेजी जा चुकी है। जैसे ही बजट आएगा, काम पूरा कराया जाएगा।

- डॉ.संतोष कुमार सिंह, सीएमओ, बांदा

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- पुनरीक्षित बजट न मिलने से फिनशिंग आदि के कार्य में ब्रेक लगा है। शेष धनराशि अवमुक्त होते ही काम तेजी से पूरा कराया जाएगा। भवन का स्ट्रक्चर पूरी तरह तैयार है।

- चंद्रशेखर श्रीवास्तव, प्रोजेक्ट मैनेजर, राजकीय निर्माण निगम


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