Move to Jagran APP

प्रवासी श्रमिकों के बच्चों की पढ़ाई बनेगी चुनौती

जिले में इस समय महानगरों से करीब 25 हजार प्रवासी मजदूर वापस आ चुके हैं। कंपनी व रोजगार बंद होने से अब वह यहीं रहकर कुछ न कुछ कार्य करेंगे। लेकिन उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के पढ़ाई की होगी। बेसिक शिक्षा विभाग ने अभी तक ऐसे बच्चों के लिए कोई सर्वे नहीं शुरू किया है। 20 मई से परिषदीय स्कूलों में छुट्टी हो चुकी है। जनपद में तमाम ऐसे प्रवासी कामगार आए हैं जिनके बच्चे अ

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 10:34 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 10:34 PM (IST)
प्रवासी श्रमिकों के बच्चों की पढ़ाई बनेगी चुनौती
प्रवासी श्रमिकों के बच्चों की पढ़ाई बनेगी चुनौती

जागरण संवाददाता, बांदा : जिले में इस समय महानगरों से करीब 25 हजार प्रवासी मजदूर वापस आ चुके हैं। कंपनी व रोजगार बंद होने से अब वह यहीं रहकर कुछ न कुछ कार्य करेंगे। लेकिन उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के पढ़ाई की होगी। बेसिक शिक्षा विभाग ने अभी तक ऐसे बच्चों के लिए कोई सर्वे नहीं शुरू किया है। 20 मई से परिषदीय स्कूलों में छुट्टी हो चुकी है।

loksabha election banner

जनपद में तमाम ऐसे प्रवासी कामगार आए हैं, जिनके बच्चे अहमदाबाद, सूरत, हैदारबाद, मुंबई और अन्य महानगरों में किसी न किसी स्कूल में पढ़ते रहे हैं। अब यह कामगार बच्चों की पढ़ाई को लेकर फिक्रमंद हैं। गांवों में प्राथमिक विद्यालयों में उनके दाखिले को लेकर खासी मारामारी होगी। वहीं कामगारों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण यह प्राइवेट विद्यालयों में महंगी पढ़ाई नहीं करा सकेंगे। बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रवासी कामगारों के बच्चों के विद्यालयों में दाखिले के लिए फिलहाल अभी कोई कवायद नहीं शुरू की है। प्रधानाध्यापकों की ड्यूटी शेल्टर व क्वारंटाइन होम में लगाई गई है। प्राथमिक विद्यालयों में पूरी तरह से तालाबंदी चल रही है। इधर, 20 मई से विद्यालयों में ग्रीष्म अवकाश भी हो चुका है। ऐसे में अब इन प्रवासी कामगारों के बच्चों को जुलाई तक का इंतजार करना पड़ेगा। पहली जुलाई से बेसिक शिक्षा ऐसे बच्चों का सर्वे कराएगा। फिर उन्हें दाखिला मिलेगा।

----------

क्या कहते हैं प्रवासी कामगार :

अतर्रा के महुटा गांव में सुनील का परिवार गाजियाबाद में रहता रहा है। वह एक निजी कंपनी में कार्य करते थे। कोरोना संक्रमण के बाद लॉकडाउन हुआ तो कंपनी बंद हो गई। सुनील के मुताबिक उसका पांच वर्षीय बेटा अंकित और तीन वर्षीय अंकुश वहीं पढ़ते रहे हैं। एक कक्षा एक तो दूसरा एलकेजी का छात्र रहा है। अब दोनों बच्चे यहां गांव में हैं। सुनील की पत्नी उमा ने बताया कि अब गांव के ही सरकारी स्कूल में बच्चे पढेंगे। अभी गांवों में शिक्षा विभाग द्वारा कोई सर्वे नही हो रहा है।

----------

क्या कहते हैं अधिकारी :

-बेसिक शिक्षा विभाग ऐसे बच्चों की पढ़ाई के लिए जून में सर्वे अभियान शुरू करेगा। जितने भी प्रवासी कामगार हैं उनके बच्चों के दाखिले प्राथमिक विद्यालयों में दिलाए जाएंगे।-हरिश्चंद्र, बीएसए, बांदा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.