विभाग का खाता फुल, मजदूरों का खाली
जागरण संवाददाता, बांदा : केंद्र सरकार की सबसे बड़ी योजना मनरेगा जिले में कोमा में है। विभा
जागरण संवाददाता, बांदा : केंद्र सरकार की सबसे बड़ी योजना मनरेगा जिले में कोमा में है। विभाग मजदूरों के हक का दस करोड़ रुपये नहीं खर्च कर पाई। लापरवाही से ग्राम पंचायतों में महीनों से मनरेगा के फावड़े खामोश हैं। डेढ़ लाख में महज 99,745 मजदूरों को काम मिला। वित्तीय वर्ष के बचे 75 दिनों में इस राशि को खर्च करना विभाग के लिए चुनौती है।
जनपद में मनरेगा का जाबकार्ड धारक श्रमिक कार्य की तलाश में भटक रहा है। जनपद में करीब 1.60 लाख जाबकार्ड धारक हैं। सक्रिय 152490 कार्डधारकों के मजदूरी भुगतान के लिए शासन ने इस साल 29 करोड़ 85 लाख रुपये अवमुक्त किए थे। लेकिन मनरेगा विभाग यह धनराशि खर्च नहीं कर पा रहा है। जनपद की 471 ग्राम पंचायतों में महज 120 में छिटपुट कार्य चल रहे हैं। शेष ग्राम पंचायतों में कई माह से मनरेगा के फावड़ा खामोश हैं।शासन ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा के लिए करीब सवा अरब रुपये का प्राविधान किया था। इसमें 60 फीसद धनराशि श्रम बजट में शामिल थी। बाकी सामग्री अंश। मनरेगा विभाग को इस धनराशि से सभी डेढ़ लाख जाबकार्डधारकों को 100-100 दिन का रोजगार देना था। लेकिन महज सैकड़ा भर परिवार ही 100 दिन काम पाने में कामयाब हुए। जिन मजदूरों ने कार्य किया, उनकी मजदूरी का भुगतान अटक गया है। मनरेगा के खाते में श्रमिकों के हक का अभी भी 10 करोड़ रुपये डंप है। जबकि विभाग के पास 31 मार्च तक का ही मौका है। डीएम ने लापरवाही पर खंड विकास अधिकारियों की कई बार क्लास भी ली। सचिवों व रोजगार सेवकों सहित तकनीकी सहायकों पर वेतन रोकने आदि की कार्रवाई भी हुई। लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं आया।
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चार माह से मुखिया की कुर्सी खाली नरेगा उपायुक्त की कुर्सी चार माह से खाली है। ऐसे में विभागीय कार्यों की मानीट¨रग करने वाला कोई नहीं है। पीडी के पास खुद के विभाग के साथ मनरेगा व डीडीओ का भी अतिरिक्त चार्ज है। उनके कभी दफ्तर में न बैठने से सैकड़ों डाक व फाइलें हस्ताक्षर के लिए लंबित हैं। मजदूरी व कार्य के लिए मजदूर भटक रहे हैं।
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-कुछ भी हो वित्तीय वर्ष खत्म होने के पहले मनरेगा में श्रमांश का बजट अधिकारियों को खर्च करना होगा। जिन ग्राम पंचायतों में कार्य नहीं चल रहा है, वहां की जांच कराकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाएगी।
-हीरालाल, डीएम