शक्तिपीठ, सिद्धपीठ और योगपीठ देवी पाटन से जुड़े अनेक चमत्कारिक किस्से
सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और योगपीठ माना जाने वाला मां पाटेश्वरी का मंदिर से जुड़ी अनेक किंवदंतियां और चमत्कारिक किस्से हैं।
बलरामपुर (जेएनएन)। सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और योगपीठ माना जाने वाला मां पाटेश्वरी का मंदिर से जुड़ी अनेक किंवदंतियां और चमत्कारिक किस्से हैं। यह पीठ उत्तर-प्रदेश के बलरामपुर में सिरिया नाले पर स्थित है। इस पर पूजा-अर्चना करने के लिए नाथ संप्रदाय लोग रहते हैं। अतः इसे नाथ योगियों की योगपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह देश में फैले 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह शिव और सती के प्रेम का प्रतीक स्वरूप है। मंदिर में एक जलकुंड है। जनश्रुति के अनुसार महाभारत कालीन इस जलकुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग तथा चर्मरोग ठीक हो जाते हैं।
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आंख-मुंह ढक कर करते पूजा
पीठ पर तंत्र साधना भी की जाती है। यंत्रों से ढकी पाताल तक जाने वाली सुरंग की मंदिर के पुजारी आंख व मुंह ढक कर तांत्रिक पूजा करते हैं। सुरंग देखने की मनाही है। बताया जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले आततायियों का हमला हुआ था। जिसमें आतताइयों ने सुरंग में बांस डालकर इसकी गहराई नापने की कोशिश की थी। इसी दौरान अंदर से निकले मधुमक्खियों के हुजूम ने सभी को इतना काटा कि उनकी मौत हो गई।
सीता माता से जुड़ा पाताल चबूतरा
शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर ऐतिहासिक घटनाओं का समृद्धशाली भू-भाग है। इन्हीं ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाता लोगों की आस्था का केंद्र पाताल चबूतरा अपने धार्मिक मान्यताओं के कारण बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बताया जाता है कि गर्भ गृह में ²ष्टित यह पाताल चबूतरा त्रेता युग में सीता माता के धरती में समाने की जगह है। किवदंती है कि जब राम ने सीता का त्याग किया था, तो इस स्थान पर सोने का एक ङ्क्षसहासन निकला था। जिस पर बैठकर सीता धरती में समा गईं थीं। मान्यता है कि इस चबूतरे के अंदर पाताल तक सुरंग है। इसी कारण इस स्थान को पातालेश्वरी देवी भी कहा जाता है। जो कालांतर में पाटेश्वरी देवी कहा जाने लगा। महंत मिथिलेश नाथ योगी ने बताया कि पाताल चबूतरा में लोगों की गहरी आस्था है। लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर यहां प्रसाद चढ़ाते हैं।
पहले चबूतरे पर ही चढ़ता था प्रसाद
करीब तीन दशक पहले देवीपाटन मंदिर के गर्भगृह में स्थित पाताल चबूतरे पर ही श्रद्धालु प्रसाद चढ़ाते थे। गर्भगृह में तब कोई मूर्ति स्थापित नहीं थी। बाद में सुरक्षा कारणों के चलते प्रसाद गर्भ गृह के बाहर चढ़ाया जाने लगा। चारों ओर चांदी के आवरण से ढका व उसके ऊपर चांदी के बड़े-बड़े छत्र इस की शोभा बढ़ा रहे हैं।
गुरु गोरखनाथ की साधनास्थली
पौराणिक कथाओं के मुताबिक कहा जाता है कि अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने पति महादेव का स्थान न देखकर नाराज सती ने अपमान के कारण अपने प्राण त्याग दिये। तब दक्ष-यज्ञ को नष्ट कर सती के शव को अपने कंधे पर रखकर शिव तीनों लोक में घूमने लगो. इससे संसार-चक्र में व्यवधान देख विष्णु ने सती के शव के विभिन्न अंगों को सुदर्शन-चक्र से काटकर भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिरा दिया। ऐसे सभई स्थान शक्ति पीठ माने गए। सती का वाम स्कंध पाटंबर अंग यहां आकर गिरा था इसलिए यह स्थान देवी पाटन के नाम से प्रसिद्ध है। योगी गुरु गोरखनाथ ने सर्वप्रथम देवी की पूजा-अर्चना के लिए एक मठ का निर्माण कराकर स्वयं लम्बे समय तक जगजननी साधनारत रहे।
देवी पाटन और पातालेश्वरी
देवी पाटन की देवी का दूसरा नाम पातालेश्वरी देवी है। माता सीता लोकापवाद से खिन्न होकर यहां धरती-माता की गोद में बैठकर पाताल में समा गयी थीं। इसी पातालगामी सुंग के ऊपर देवी पाटन पातालेश्वरी देवी का मंदिर बना है। मंदिर के गर्भगृह में पहले कोई प्रतिमा नहीं थी। मध्य में एक गोल चांदी का चबूतरा था, वो अब भी है, जिसके नीचे सुरंग ढकी हुई है। मंदिर के उत्तर में कार्यकुण्ड है। सूर्यपुत्र महारथी कर्ण ने यहाँ परशुराम से धनुर्वेद की शिक्षा ली थी।