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Sanskarshala- इंटरनेट मीडिया पर बहस से करें परहेज, घर के कामों में भी रहें तेज: डा. एमपी तिवारी

कुछ घरों में बच्चों से यह उम्मीद की जाती है कि वे घर के कामों में हाथ बंटाएं और बच्चे भी खुशी-खुशी काम करते हैं। वहीं कुछ घरों में उनसे ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं की जाती तो वहां बच्चे भी काम से जी चुराते हैं।

By Shlok MishraEdited By: Shivam YadavPublished: Thu, 22 Sep 2022 10:04 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 01:54 AM (IST)
Sanskarshala- इंटरनेट मीडिया पर बहस से करें परहेज, घर के कामों में भी रहें तेज: डा. एमपी तिवारी
परामर्श लेने का संस्कार खत्म होता जा रहा है।

बलरामपुर। कुछ घरों में बच्चों से यह उम्मीद की जाती है कि वे घर के कामों में हाथ बंटाएं और बच्चे भी खुशी-खुशी काम करते हैं। वहीं कुछ घरों में उनसे ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं की जाती, तो वहां बच्चे भी काम से जी चुराते हैं। वह परिवार के लोगों से ही उम्मीद करते हैं। आजकल बच्चों को वीडियो गेम, इंटरनेट मीडिया व टीवी देखने के लिए छोड़ दिया जाता है। बच्चों के संग बड़े भी कुछ भी करने से पहले इंटरनेट मीडिया पर प्रतिक्रिया जानने को उत्साहित रहते हैं। इससे परिवार में बड़े व अनुभवी लोगों से परामर्श लेने का संस्कार खत्म होता जा रहा है।

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दैनिक जागरण की संस्कारशाला में डिजिटल संस्कार के अंतर्गत प्रकाशित क्षमा शर्मा की कहानी ‘इंटरनेट मीडिया पर बहस के संस्कार’ बच्चों के साथ बड़ों के लिए भी प्रेरणादायक है। कहानी की पात्र राखी स्कूल में भाषण प्रतियोगिता में प्रतिभाग करना चाहती है। उसे भाषण के विषय ‘हम घर के कामों में हाथ बंटाएं’ के विपक्ष में बोलना था। 

इस पर वह अपनी दादी से पूछती तो है, लेकिन मंच पर घबराकर सब भूल जाती है। इसका जिम्मेदार भी वह अपनी दादी को ही ठहराती है। आज लगभग हर घर में बच्चों का व्यवहार राखी की तरह हो गया है। जो अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहन, दादा-दादी से परामर्श लेने के बजाय इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर कमेंट की चाह रखते हैं। आशानुरूप प्रतिक्रिया न मिलने पर अनावश्यक बहसबाजी से तनाव के शिकार हो जाते हैं। 

वहीं दूसरी तरफ कुछ माता-पिता बच्चों को काम देने से कतराते हैं। खासकर अगर बच्चों को बहुत होमवर्क मिला हो या स्कूल के बाद कुछ सीखने जाते हों। गौरतलब है कि घर के काम करना कितना फायदेमंद होता है। जो बच्चे घर के कामों में मदद करते हैं, वे अक्सर पढ़ाई में भी अच्छे होते हैं। घर के काम में हाथ बंटाने से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है। 

कई बार ऐसा होता है कि अगर बच्चों से घर के काम न करवाएं तो उन्हें लगता है उनके काम दूसरों को करने चाहिए। इन बच्चों को बड़े होने पर लगता है कि जिम्मेदारी उठाना या मेहनत करना उनकी शान के खिलाफ है। इसलिए बच्चों को घर के काम देने के साथ उनके स्मार्टफोन की गतिविधियों पर नजर रखना भी जरूरी है। 

जिस तरह राखी फेसबुक पर अपने पोस्ट पर खराब प्रतिक्रिया से विचलित होकर भाषण प्रतियोगिता में मात खा जाती है, यह उसके मानसिक तनाव का परिणाम है। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के इंस्टाग्राम, फेसबुक व वाट्सएप अकाउंट से अवश्य जुड़ें, ताकि उनकी पोस्ट या स्टेटस को देखकर उन्हें पथभ्रमित होने व सामाजिक आलोचना का पात्र बनने से बचा सकें। 

दैनिक जागरण की संस्कारशाला में डिजिटल संस्कार के अंतर्गत प्रकाशित यह कहानी बच्चों, अभिभावकों और हम सभी के लिए प्रेरणादायक है।

(लेखक पायनियर पब्लिक स्कूल एंड कालेज के प्रबंध निदेशक हैं।)


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