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रोजे रखने से गुनाह होते हैं माफ

बलरामपुर : हजरत मुहम्मद के कौल व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चल

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 11:44 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 11:44 PM (IST)
रोजे रखने से गुनाह होते हैं माफ
रोजे रखने से गुनाह होते हैं माफ

बलरामपुर : हजरत मुहम्मद के कौल व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। हजरत मुहम्मद ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जिलकायदा व जिलहिज्ज। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। मौलाना जमील अहमद नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद की बात का हवाला देते हुए बताते हैं कि जिस तरह जरूरी नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे माकूल रोजे मुहर्रम के हैं। इस्लामी यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है। मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। मौलाना अजादार हुसैन बताते हैं कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत की किश्ती को किनारा मिला था। आशूरे का दिन यानी 10 मुहर्रम को ईराक स्थित कर्बला नामक स्थान पर सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की ¨जदा मिसाल है। हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) एमाम हुसैन सहित उनके बहत्तर साथियों को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी वीभत्स और ¨नदनीय है। इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद की बताई बातों पर गौर करने और उन पर सही ढंग से अमल करने की जरुरत है।

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