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अटल बिहारी की यादें ताजा करने के लिए संजोए रखा बलरामपुर का घर

वो राहें याद करती हैं वो गुलशन याद करता है, अपने प्रिय नेता पंडित अटल बिहारी वाजपेयी को जिन्होंने अपना ठिकाना बलरामपुर के खगईजोत में बनाया था।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:29 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 08:23 PM (IST)
अटल बिहारी की यादें ताजा करने के लिए संजोए रखा बलरामपुर का घर
अटल बिहारी की यादें ताजा करने के लिए संजोए रखा बलरामपुर का घर

बलरामपुर (जेएनएन)। वो राहें याद करती हैं वो गुलशन याद करता है, अपने प्रिय नेता पंडित अटल बिहारी वाजपेयी को जिन्होंने अपना ठिकाना बलरामपुर के खगईजोत में बनाया था। दरअसल, उन्होंने यहीं से अपनी जीत की अलख जगाई थी। वह अपने सहयोगी लाटबक्श सिंह के आवास में रहते थे। जहां वह अपने खास साथियों के साथ गोपनीय बैठकें करते थे। वहां वह नित्य भोर में उठने के बाद टहलने के लिए निकलते थे। उनके सहयोगी लाटबक्श सिंह साथ होते थे। गांव वालों से चर्चाकर उनकी समस्याएं सुनते थे। जनसंघ का कार्यालय सराय फाटक में बना था। जो सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं माना जाता था। इसलिए उन्होंने खगईजोत में उनके आवास को ठिकाना बनाया था। उसी के एक कमरे को उन्होंने कार्यालय भी बना रखा था। दूसरे में वह रात्रि विश्राम करते थे।

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मुगदर व मूसल से व्यायाम 

भवन के पीछे हैंडपंप से पानी पीते थे। जो आज भी उनकी यादों को ताजा कर रहा है। जिस कमरे में रहते थे, उसे पूरी तरह से संरक्षित कर रखा गया है। जहां नहाते थे वह नल आज भी वैसे ही लगा है। उनके सहयोगी लाटबक्श सिंह की मानें तो  गैंसड़ी क्षेत्र के पडरौना गांव में उनका फार्म हाउस है। वहां भी पूर्व प्रधानामंत्री रात्रि विश्राम करते थे। जहां मुगदर व मूसल से व्यायाम कर दिन की शुरूआत करते थे। लाटबक्श सिंह का कहना है कि जिस मकान में अटल जी रहते थे। उसे आज भी संजोकर रखा गया है। जिससे उनकी यादें ताजा रह सके और आने वाली पीढिय़ों को उनके बारे में जानकारी हो सके। वह कहते हैं कि अटल जी को काला नमक चावल अत्यधिक प्रिय था। वह कहते थे कि काला नमक चावल से  अच्छी नींद आती है। चुनाव प्रचार के दौरान गैंसड़ी के सिंहमोहानी गांव में रामसमुझ के यहां दोपहर में खाने के लिए व्यवस्था की गई थी। खाने में काला नमक चावल भी था जिसे बड़े चाव से खाया। इसके बाद उन्हें नींद आ गई। जब उनसे मिलने लोग दिल्ली जाते थे तो काला नमक चावल ले जाना नहीं भूलते थे।

​​​​​1957 में जीत की अलख 

ये अटल बिहारी वाजपेयी हैं, वर्ष 1957 में लोकसभा चुनाव में जनसंघ प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी बैरिस्टर चौधरी हैदर हुसैन के सामने चुनावी मैदान में थे। विधानसभा का चुनाव भी साथ ही होना था। जिससे चुनौतियां और भी बढ़ गई थी। बलरामपुर स्थित सराय फाटक जनसंघ कार्यकर्ताओं की बैठक में समय कम होने व गांव-गांव तक पहुंचने की बात रखी। जिस पर कार्यकर्ताओं ने प्रचार की कमान संभालने का आश्वासन दिया। उत्साह इस कदर था कि वह अटल के साथ पैदल, साइकिल, बैलगाड़ी व जीप के पीछे दौड़ते हुए चलते थे। जो पीजो जीप मुहैया कराई गई थी। वह पुरानी होने के कारण दो किलोमीटर के बाद खड़ी हो जाती थी। जिससे अटल जी को गांव-गांव पहुंचने में देरी का सामना करना पड़ता था लेकिन, वह समय से पहुंचने की होड़ में रहते थे। आखिरकार जीत उनकी हुई। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को करीब दस हजार मतों से पराजित कर दिया। 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ से दोबारा प्रत्याशी बने। उनके सामने कांग्रेस की सुभद्रा जोशी मैदान में थी। इस बार अटल जी को हार का सामना करना पड़ा। 1967 के चुनाव में तीसरी बार जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में उतारे गए। उनके सामने सुभद्रा मैदान में थी। इनको पराजित कर वह संसद में पहुंचे। 

ऐसे पहुंचे अटल 

पूर्व विधायक सुखदेख प्रसाद के मुताबिक संगठन मंत्रियों की लखनऊ में बैठक हुई। लोगों ने अपना परिचय दिया, तो दीनदयाल उपाध्याय ने कहाकि भाई सबका परिचय हुआ और जो हमारे बगल में बैठे हैं, इनका परिचय नहीं हुआ। ये अटल बिहारी वाजपेयी हैं। इनको कोई अपने यहां ले जाए और लोकसभा का सदस्य बनाकर लाएं लेकिन, इनके पास टका नहीं है। एक सज्जन उठे और कहा कि एक जीप, पोस्टर दीजिए, तो हम ले जाएंगे। दीनदयाल जी ने कहाकि बैठ जाइए। उसके बाद प्रताप नरायण तिवारी विभाग संगठन मंत्री ने कहा कि हमको अटल जी को दे दीजिए। हमें और कुछ नहीं चाहिए। हम बलरामपुर से एमपी बनाकर लाएंगे। वे अटल जी को लेकर बलरामपुर आए। 1957 में अटल जी एमपी हुए। 1962 में वह सुभद्रा जोशी से चुनाव हार गए। कांग्रेस से हार का कारण वनवासी रहे। वनवासी (थारू जाति) यह समझे कि अटल बड़ा है, इसलिए उसका बड़ा पर्चा होगा। एमपी उम्मीदवार दो ही थे। उनका पर्चा छोटा था और विधायक कई थे। विधानसभा व लोकसभा का चुनाव एक साथ होता था। थारूओं ने बड़े पर्चे पर चुनाव चिह्न दीपक पर मोहर लगा दी। इसलिए अटलजी चुनाव हार गए। वह लोग थारूओं जैसी सीधी-सादी जाति को ठीक से समझाने में चूक गए थे। यह चूक महंगी पड़ी।


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