बाढ़ की लहरों में डूब जाती है बचाव की आस
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बात 20 अगस्त 2018 की है। ककरा गांव के सामने बना बलरामपुर-भड़रिया तटबंध रात करीब डेढ़ बजे कट गया। जिससे 50 गांव तबाही की जद में आ गए। जिन्हें त्रासदी से बचाने के लिए एनडीआरएफ की टीम ने गांव में डेरा जमा लिया। बाढ़ खंड के अधिकारी कटान रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे। तबाही और राप्ती नदी के बीच आम का बाग कवच बनकर खड़ा था। ज्यों-ज्यों नदी की ठोकर से आम के पेड़ गिरते, ग्रामीणों की धड़कन बढ़ जाती। कोई पूजा-पाठ कर राप्ती मइया को शांत करने का प्रयास कर रहा था, तो कई परिवार को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने की जद्दोजहद में जुटा था। मजदूर बालू भरी बोरियां व ठोकर नदी में डाल रहे थे। नदी गांव को निगलने को बेताब थी। बचाव कार्य देख ग्रामीणों ने कहाकि जब मुसीबत सामने होती है, तभी अफसरों की नींद खुलती है। यदि समय रहते तटबंधों की दरारें भरा दी जातीं, तो यह मंजर न होता। तीन दशक पूर्व उतरौला व सदर तहसील के सैकड़ों गांवों को राप्ती नदी की विभीषिका से बचाने के लिए इस बांध का निर्माण कराया गया था। जिसमें देखरेख के अभाव में दरारें आ गई थीं। इसी तरह हर साल राप्ती नदी व पहाड़ी नालों की बाढ़ में बलरामपुर व श्रावस्ती जिले के 500 से अधिक गांव तबाह हो जाते हैं। लाखों हेक्टेयर फसलें जलमग्न हो जाती है। आमजन व मवेशियों को जान भी गंवानी पड़ती है। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने कभी इस गंभीर मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा। बलरामपुर से अमित श्रीवास्तव की रिपोर्ट : तटबंध मरम्मत को बना लिया आय का जरिया :
-तटबंधों की मरम्मत को विभागीय अधिकारियों ने आय का जरिया बना लिया है। बारिश के समय मिट्टी की पटाई कर मरम्मत के नाम पर लाखों रुपये पानी में बहा दिए जाते हैं। अगस्त 2018 में पहाड़ी नाला खरझार के तट पर चार करोड़ तीन लाख बना डेढ़ किलोमीटर खरझार तटबंध मानसून की पहली बरसात भी नहीं झेल सका। दो दिन बरसात होने से खरझार नाले में उफान आ गया। लोहेपनिया गांव के पास स्थित खरझार तटबंध क्षतिग्रस्त हो गया है। जिसने तटबंध निर्माण के दावों की पोल खोल दी है। बांध पर बिछाए गए बोल्डर बरसात के चलते बैठ गए। दरारें भी नजर आने लगी हैं। जिससे पहाड़ी नाले की बाढ़ का पानी क्षेत्र के साहेबनगर, रामगढ़ मैटहवा, शांतीनगर, विजयीडीह, लोहेपनिया, महादेव गोसाईं, लहेरी, सहबिनिया गांवों में घुस गया। इसी तरह पहाड़ी नाला जमधरा, धोबीनिया, गौरिया व हेंगहा नाले के उफान ने कई गांवों को अपनी आगोश में ले लिया। जबकि कटहा, कवही, नकटी, भांभर व बरुनी पहाड़ी नालों की उफान से 50 से अधिक गांवों में पानी घुस गया।
हर साल जाती है जान :
-जिले में बाढ़ की मुख्य वजह नेपाल से छोड़ा जाने वाला पहाड़ी पानी है। ये पानी राप्ती नदी में पहुंचता है। इसके साथ ही पहाड़ी नालों की बाढ़ का कहर रहता है। जिले की तीनों तहसीलें बाढ़ से प्रभावित हैं। पिछले दो साल में बलरामपुर जिले के 316 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए थे। बाढ़ के पानी में डूबकर 17 लोगों और 15 पशुओं को जान तक गंवानी पड़ी थी।