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अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है कुआंनो का पंप हाउस

रमन मिश्र, बलरामपुर : गोंडा व बलरामपुर की सीमा को बांटने वाली कुआंनो नदी अपने आगोश में इतिहास को समेटे हुए है। खास बात यह है कि इस नदी का पानी कभी नहीं सूखता। कभी फसलों की प्यास बुझाने वाली नदी का पंप हाउस आज भी अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है। बालपुर गांव में बने पंप हाउस में इंग्लैंड से मंगवाए गए संयंत्र व नदी में पड़ी कई टन की मजबूत पाइप आज भी मौजूद हैं। पंप हाउस के भवन व संयंत्रों पर मौजूद इंग्लैंड की मुहर को देखने के लिए आज भी लोग वहां जाते हैं, लेकिन युवा पीढ़ी इससे पूरी तरह अनजान है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 11:09 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 11:09 PM (IST)
अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है कुआंनो का पंप हाउस
अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है कुआंनो का पंप हाउस

बलरामपुर : गोंडा व बलरामपुर की सीमा को बांटने वाली कुआंनो नदी अपने आगोश में इतिहास को समेटे हुए है। खास बात यह है कि इस नदी का पानी कभी नहीं सूखता। कभी फसलों की प्यास बुझाने वाली नदी का पंप हाउस आज भी अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाता है। बालपुर गांव में बने पंप हाउस में इंग्लैंड से मंगवाए गए संयंत्र व नदी में पड़ी कई टन की मजबूत पाइप आज भी मौजूद हैं। पंप हाउस के भवन व संयंत्रों पर मौजूद इंग्लैंड की मुहर को देखने के लिए आज भी लोग वहां जाते हैं, लेकिन युवा पीढ़ी इससे पूरी तरह अनजान है।

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1934 में बना था पंप हाउस :

-कुआंनो नदी से फसलों की ¨सचाई के लिए वर्ष 1931 में अंग्रेजी सरकार ने पंप हाउस का निर्माण कराया था। इंग्लैंड के इंजीनियरों ने खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए कई टन के लोहे की पाइप, ट्रांसफार्मर, ऑपरे¨टग मशीन समेत अन्य संयंत्रों से भवन को लैस किया था। गांवों तक पानी पहुंचाने के लिए नदी में पाइप बिछाई गई। साथ ही पक्की नाली का निर्माण कराया गया। भवन में 12 कमरे था। जहां शिफ्टवार कर्मियों की ड्यूटी लगाई जाती थी। वर्तमान समय में अधिकांश संयंत्र व ट्रांसफार्मर चोरी हो चुके हैं, लेकिन नदी में पड़ी पाइप व अवशेष पर लगी इंग्लैंड की मुहर इतिहास की साक्षी बनी हुई है।

50 गांवों की होती थी ¨सचाई :

-बालपुर में बने पंप हाउस से लुचुइया, सिरसिया, रमनगरा, ढोढ़हा, खैराही, ¨सगाही, रामपुर खगईजोत, अगरहवा, जमुनही, दुल्हापुर, जोरावरपुर, सिरसिया, विशुनापुर व कोयलरा समेत 50 गांवों के किसानों को ¨सचाई की सुविधा मिलती थी। गांव निवासी राघव ने बताया कि उसके बाबा के अनुसार पंप हाउस के बगल हाथियों के लिए विशेष आश्रय स्थल था। करीब 15 से 20 हाथी नदी का पानी पीकर जंगल में विचरण करते थे। सुमिरन, मनोहर, रामदास का कहना है कि यह पंप हाउस कभी गांवों के लिए वरदान था। आज युवा पीढ़ी पूरी तरह इससे अनभिज्ञ है।


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