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यहां है एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत का कंकाल

संवादसूत्र, बलरामपुर : नगर के एमएलके महाविद्यालय में स्थित म्यूजियम दुर्लभ जीवाश्मों का खजाना है। यहां मौजूद एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत का 120 साल पुराना अवशेष लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा डाल्फिन, कंगारू, घड़ियाल व अन्य दुर्लभ जीवों व वनस्पतियों के भी अवशेष हैं। साथ ही मानव, शेर, बकरी व भेड़ के भ्रूण को यहां सुरक्षित रखा गया है। जहरीले सांपों की सभी प्रजातियों के जीवाश्म म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं। जिनका उपयोग महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं के अध्ययन में किया जाता है। महाविद्यालय प्रशासन की मानें तो ऐसा म्यूजियम सिद्धार्थ विश्वविद्यालय व अवध विश्वविद्यालय के किसी कॉलेज में नहीं है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 11:14 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 11:14 PM (IST)
यहां है एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत का कंकाल
यहां है एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत का कंकाल

बलरामपुर : नगर के एमएलके महाविद्यालय में स्थित म्यूजियम दुर्लभ जीवाश्मों का खजाना है। यहां मौजूद एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत का 120 साल पुराना अवशेष लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा डाल्फिन, कंगारू, घड़ियाल व अन्य दुर्लभ जीवों व वनस्पतियों के भी अवशेष हैं। साथ ही मानव, शेर, बकरी व भेड़ के भ्रूण को यहां सुरक्षित रखा गया है। जिनका उपयोग महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं के अध्ययन में किया जाता है। महाविद्यालय प्रशासन की मानें तो ऐसा म्यूजियम सिद्धार्थ विश्वविद्यालय व अवध विश्वविद्यालय के किसी कॉलेज में नहीं है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से छात्र आते हैं।

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राजपरिवार से जुड़ा है इतिहास :

-19वीं शताब्दी में बलरामपुर रियासत के तत्कालीन महाराजा दिग्विजय ¨सह को स्वामी हरिद्वार आनंद ने उपहार स्वरूप एक दस वर्षीय गज शावक भेंट किया था। उस किशोर हाथी की सुंदर आकृति के ²ष्टिगत महाराजा ने उसका नाम चांदमूरत रखा। युवा होने पर लगभग 12 फीट की ऊंचाई वाले चांदमूरत ने दूर-दूर तक एक अछ्वुत हाथी के रूप में प्रसिद्ध प्राप्त की। एशिया महाद्वीप के उस सबसे बड़े हाथी ने अपने बल के मद में 1899 में ट्रेन को टक्कर मारकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

1955 से यहां रखा है कंकाल :

-एमएलके कॉलेज के जंतु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि अछ्वुत हाथी चांदमूरत के कंकाल को पहले आनंदबाग स्थित तत्कालीन चिड़ियाघर में रखा गया था। बाद में 1955 में एमएलके महाविद्यालय की स्थापना होने पर प्राणविज्ञान विभाग में रखा गया। तबसे यहां सुरक्षित है।


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