..और बचपन की शादी को मानने से कर दिया इन्कार
आज समाज दिनोंदिन आधुनिकता व विकास की ओर अग्रसर है। बावजूद इसके बाल विवाह की कुरीति अब भी जिदा
बलरामपुर : आज समाज दिनोंदिन आधुनिकता व विकास की ओर अग्रसर है। बावजूद इसके बाल विवाह की कुरीति अब भी जिदा है। अशिक्षा व पिछड़ेपन में जकड़े लोग दो अपरिपक्व लोगों को जिदगी भर साथ रहने को एक बंधन में बांध देते हैं। नतीजा, कुप्रथा की बेड़ियों में उलझी विवाह की डोर भी अक्सर टूट जाती है। महिला शिक्षा एवं सुरक्षा का ढिढोरा पीटने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं भले ही दावों की झड़ी लगा रही हों, लेकिन हकीकत इसके कोसों दूर है।
कुछ ऐसा ही वाकया सदर ब्लॉक के गुलरहा गांव के मजरे कुसमौर की रहने वाली मिथलेश कुमारी के साथ गुजरा। जिसने न सिर्फ अपरिपक्व आयु में हुई शादी को मानने से इन्कार कर दिया, बल्कि पति से नाता भी तोड़ दिया। मजबूत इरादों वाली मिथलेश आज एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं जो केंद्र पर आने वाली किशोरियों को बाल विवाह के दुष्परिणाम के प्रति जागरूक करने में जुटी है। दस साल की उम्र में हुई थी शादी :
30 वर्षीया मिथलेश के मुताबिक माता-पिता ने उसका विवाह वर्ष 2000 में दस साल की उम्र में ही कर दिया था। उस समय उसे यह भी नहीं मालूम था कि विवाह क्या होता है। पांच साल बाद जब वह थोड़ी समझदार हुई, तो परिवारजन गौना देने की तैयारी करने लगे। इस पर उसने परिवार का विरोध करते हुए ससुराल जाने से इन्कार कर दिया। कहाकि बचपन में हुई शादी को वह नहीं मानतीं हैं। वह ऐसे पुरुष को जीवनसाथी नहीं बना सकती, जिसके व्यक्तित्व के बारे में उसे कुछ न पता हो। घर वालों ने बहुत दबाव बनाया, लेकिन मिथलेश बाल विवाह के खिलाफ डटी रही। आठवीं उत्तीर्ण मिथलेश ने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। अंतत: परिवारजन को उसके हौंसले व तर्कसंगत बातों के आगे झुकना पड़ा। किशोरियों को दे रही सीख :
मिथलेश वर्ष 2010 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बन गईं। तबसे वह गांव व केंद्र में बैठक कर लोगों को बाल विवाह को समाप्त करने की नसीहत देती है। साथ ही आंगनबाड़ी केंद्र पर होने वाले सुपोषण मेला में भी किशोरियों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक कर रही है।