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बदहाल उपकेंद्रों में दम तोड़ रहीं किलकारियां

सकल प्रजनन दर नियंत्रण में भी फिसड्डी - उपकेंद्र पर ग्रामीणों को प्राथमिक सेवा न मिलने जिले में परिवार नियोजन से जुड़ी योजनाएं भी प्रभावी नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में देश के सर्वाधिक सकल प्रजनन दर (दंपती के बच्चों की संख्या-टीएफआर) पर नियंत्रण नहीं लग सका है। टीएफआर की सूची में भी 5.1 अंक के साथ श्रावस्ती देश में पहले व बलरामपुर 4.9 अंक के साथ दूसरे स्थान पर है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 May 2019 09:34 PM (IST)Updated: Thu, 09 May 2019 09:34 PM (IST)
बदहाल उपकेंद्रों में दम तोड़ रहीं किलकारियां
बदहाल उपकेंद्रों में दम तोड़ रहीं किलकारियां

संसदीय क्षेत्र श्रावस्ती के दोनों जिलों को नीति आयोग द्वारा गोद लिए जाने के बाद भी यहां की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं में विशेष सुधार नहीं हो सका है। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर के मामले में देश की टॉप टू रैंकिग वाले इन जिलों में जच्चा-बच्चा को मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हो रही हैं। गर्भवती व नवजात की सुरक्षा का दम भरने वाले क्षेत्र के 327 उपकेंद्र बदहाल हैं। अधिकांश के भवन गिर गए हैं। उनमें घास व झाड़ियां उगी हैं। स्थानीय लोगों ने इन भवनों को मवेशी बांधने का अड्डा बना लिया है। एएनएम बदहाल भवन व सुरक्षा का हवाला देकर उपकेंद्र पर आती ही नहीं हैं। ऐसे में गर्भवती को प्रसव पूर्व जांच (एएनसी), टीकाकरण व प्रसव के लिए अस्पताल की दौड़ लगानी पड़ती है। समय पर उपचार व बेहतर चिकित्सीय सेवा न मिलने से प्रसूता व नवजात को अक्सर जान गंवानी पड़ती है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के तहत चलाए जाने वाले कार्यक्रम भी फाइलों में गुम है, लेकिन अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि से इस मुद्दे को अपने एजेंडे में शामिल नहीं किया। प्रस्तुत है रमन मिश्र की रिपोर्ट : झाड़ियां बनीं उपकेंद्र की पहचान :

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- ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं व बच्चों को गांव पर ही स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से बनवाए गए उप स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। आलम यह है कि 150 से अधिक स्वास्थ्य उपकेंद्र रखरखाव व मरम्मत के अभाव में अपनी पहचान खो चुके हैं। किसी का भवन जर्जर है तो कहां खिड़की व दरवाजे चोर उठा ले गए हैं। परिसर में जंगली घास उगी होने के कारण लोग दिन में भी वहां जाने से कतराते हैं। कई भवनों को स्थानीय लोगों ने मवेशी बांधने का स्थल बना लिया है। ऐसे में गर्भवती व बच्चों को उपचार के लिए भटकना पड़ता है। जांच व उपचार में देर होने से ग्रामीणों की बीमारी बढ़ जाती है। एएनएम कभी स्वास्थ्य उपकेंद्र पर नहीं जाती हैं, बल्कि घर के आसपास बैठकर कागजों में टीकाकरण कर महिलाओं व बच्चों को रोगमुक्त करने का दम भर रहीं हैं। खास बात यह है कि अधिकांश गांवों में ग्रामीण उपकेंद्र पर तैनात एएनएम को पहचानते तक नहीं हैं। सर्वाधिक नवजातों की जाती है जान :

- स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में अति पिछड़े इस संसदीय क्षेत्र के दोनों जिले देश के सर्वाधिक शिशु मृत्यु दर वाले हैं। इस सूची में प्रति एक हजार जीवित जन्म पर 95 नवजात मृत्युदर के साथ श्रावस्ती देश में पहले व 89 प्रति एक हजार के साथ बलरामपुर दूसरे स्थान पर है। मातृ मृत्यु दर के मामले में भी दोनों जिले यूपी में पहले स्थान पर है। यहां माताओं की मृत्यु का आंकड़ा 366 प्रति एक लाख जीवित जन्म पर पहुंच गया है। मातृ एवं शिशु मृत्युदर में सुधार न होने का मुख्य कारण उपकेंद्रों की बदहाली है। सकल प्रजनन दर नियंत्रण में भी फिसड्डी :

- उपकेंद्र पर ग्रामीणों को प्राथमिक सेवा न मिलने जिले में परिवार नियोजन से जुड़ी योजनाएं भी प्रभावी नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में देश के सर्वाधिक सकल प्रजनन दर (दंपती के बच्चों की संख्या-टीएफआर) पर नियंत्रण नहीं लग सका है। टीएफआर की सूची में भी 5.1 अंक के साथ श्रावस्ती देश में पहले व बलरामपुर 4.9 अंक के साथ दूसरे स्थान पर है।

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