चुनाव का रंग तो बनारस में पीएम ने दिखा दिया
वक्त 10.30 बजे। ललिया क्षेत्र के मुरिहवा गांव के पास दुकान पर खेतों से लौटे किसान चाय के साथ मौसम के बदलते रंग के साथ चुनाव की चर्चा में व्यस्त थे।
बलरामपुर : वक्त 10.30 बजे। ललिया क्षेत्र के मुरिहवा गांव के पास दुकान पर खेतों से लौटे किसान चाय के साथ मौसम के बदलते रंग के साथ चुनाव की चर्चा में व्यस्त थे। रामनरेश पाठक मेज पर रखे दैनिक जागरण अखबार का पन्ना पलटते हुए कहते हैं कि चुनाव का रंग तो बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया है। राष्ट्रवाद का मुद्दा सिर चढ़कर बोल रहा है। पूरा देश एक हो चुका है। जनता सब जानती है। गांव-गांव बिजली व रसोई गैस का लाभ पाने वालों के चेहरे पर मुस्कान दिख रही है। चाय की चुस्की लेते हुए जगदंबा प्रसाद कहते हैं कि भोर में ही खेत जाकर गेहूं की मड़ाई करके लौटा हूं। किसानों को सम्मान दिलाने वाले को ही जनता अपना नेता चुनेगी। चुनाव में वादा तो सभी दल के लोग करते हैं, लेकिन चुनाव बाद कोई दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए समस्याओं का निस्तारण नहीं हो पाता है। पांच साल में जो विकास हुआ है। उसी को आधार बनाकर जनता अपना नेता चुनेगी। संतोष कहते हैं कि 70 साल के बाद गांवों में बिजली, शौचालय व रसोई गैस सिलिडर का सपना पूरा हुआ। कहाकि सेना के सम्मान से समझौता नहीं किया जा सकता। राष्ट्र निर्माण के लिए 12 मई को मतदान करने बूथ पर सभी जाएंगे। बुद्धिसागर कहते हैं कि स्थानीय नेता तो चुनाव में ही दिखते हैं। जनता अपने काम के लिए पांच साल चक्कर लगाती है। प्रधानमंत्री का चुनाव है। इसलिए आपसी मनमुटाव भुलाकर लोग मतदान करेंगे। पानी का जग सामने से हटाते हुए कैलाश गिरि कहते हैं कि चुनाव जीतने के बाद नेता अपने क्षेत्र के विकास के लिए निष्ठा पूर्वक कार्य करने के बजाय गायब हो जाते हैं। क्षेत्र का अपेक्षित विकास नहीं हो पाता है। इसलिए सभी को सोच-समझ कर कार्य करने की जरूरत है। बीच में बात काटते हुए राजू कहते हैं कि बेरोजगारी दूर करने के लिए योजनाओं को धरातल पर ईमानदारी से संचालित करनी होगी। तभी रोजगार के अवसर मिलेंगे। बेंच से खड़े होते हुए लालजी कहते हैं कि किसानों की समस्या खाद, बीज व सिचाई की है। अब तक की सरकारों ने सिर्फ घोषणाएं करती हैं। किसानों को लाभ नहीं मिलता है। कृषि योजनाओं का लाभ छोटे किसानों को नहीं मिलता है। अधिकारी सिर्फ कागज पर रिपोर्ट देते हैं। जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। जिसका असर उत्पादन पर पड़ता है। इस तरह की चुनावी चर्चाएं गांव-गांव हो रही हैं।