त्योहारों पर यह खर्च गरीबों में क्यों नहीं करते
धनतेरस संग दीपावली का शोर थमते ही हर कोई आस्था के महापर्व छठ की तैयारी में जुट गया। त्योहारों का मास कार्तिक में हर कोई धर्म व आस्था से जुड़ा हुआ है। ददरी मेला का नंदी ग्राम भी सज गया है। नगर से गांव तक केवल पूजा पाठ का ही दौर है। बाजार भी पूरी तरह से आस्था के सैलाब में है। यह सब सोचते हुए नागरिक अपने दरवाजे पर बैठा है।
सुधीर तिवारी
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धनतेरस संग दीपावली का शोर थमते ही हर कोई आस्था के महापर्व छठ की तैयारी में जुट गया। त्योहारों का मास कार्तिक में हर कोई धर्म व आस्था से जुड़ा हुआ है। ददरी मेला का नंदी ग्राम भी सज गया है। नगर से गांव तक केवल पूजा पाठ का ही दौर है। बाजार भी पूरी तरह से आस्था के सैलाब में है। यह सब सोचते हुए नागरिक अपने दरवाजे पर बैठा है। उसके कान में मंदिर में चल रहे संकीर्तन की आवाज आ रही है। महिलाएं कार्तिक मास में गंगा स्नान कर मंदिर में पूजा पाठ में व्यस्त दिखाई दे रही थी। इसी बीच नागरिक की पत्नी दरवाजे की चौखट पर आकर बोलती है कि छठी मइया का त्योहार बस एक दिन है। अब कम से कम बाजार जाकर सामान तो खरीद लाइए। इस पर नागरिक कुछ देर तक चुप रहता है और कहता है कि ठीक है यह पूरा माह खर्चे पर खर्चे का है। एक कप चाय तो पिला दो। इसी बीच नागरिक का परम दोस्त भीमा आ जाते है। उन्हें देखकर नागरिक बोलता है कि एक बिना चीनी का चाय बना देना। इस पर उनकी पत्नी झल्ला जाती है। तभी भीमा कहता है कि यार चलो चाय दुकान पर पीते है। इस पर नागरिक कहता है कि चलो यार चाय पीकर बाजार चलते है। छठी मइया के पूजा के लिए सामान लाना है। इसी बीच चाय आ जाता है। दोनों चाय पीने के बाद हाथ में झोला लेकर बाजार के लिए चल पड़ते है। वाहन पकड़ कर बाजार में जाते हैं तो काफी भीड़ देखकर दोनों कुछ पल के लिए ठहर जाते हैं। चौराहे पर लगे होर्डिग व पोस्टर को देखकर नागरिक ¨चतित हो जाता है। कहता है कि नगर में होर्डिंग व पोस्टर लगाना प्रतिबंधित है। इसके बाद भी त्योहारों पर एक बढ़कर एक होर्डिंग व पोस्टर लगाने की नेताओं में होड़ चल रही है। नागरिक भीमा से पूछता है कि कोई चुनाव आ रहा है क्या। इस पर भीमा कहता है कि लोकसभा का चुनाव अगले साल होना है। इस पर नागरिक कुछ देर चुप रहता है और दुकानों की तरफ सामान खरीदने के लिए बढ़ने लगता है। कुछ दूर जाकर रूककर कहता है कि यार इसमें काफी पैसा लगा होगा। तभी तपाक से भीमा कहता है कि आप क्या समझते है। नागरिक कहता है कि इस पैसे को ये नेता लोग क्यों नहीं त्योहारों पर गरीबों में बांट देते है। इससे इन त्योहारों में गरीबों को भी भला हो जाता। नागरिक की इस बात को सुनते ही आसपास के लोग भी कह उठते है एकदम आप सही कह रहे है लेकिन ऐसा कोई नेता नहीं करेगा।