जब मोदी ने भोजपुरी से जोड़ा नाता तो भोजपुरिया समाज की जगी आस
बलिया व सलेमपुर से आए रउवा सबके परनाम बा भूगु बाबा के हम नमन करत बानी। मंगल पांडये के ई धरती पर शेरे बलिया चित्तू पांडेय कुंवर सिंह अऊरी चन्द्रशेखर के सबके नमन करत बानी। नगर से सटे माल्देपुर में विजय संकल्प रैली के मंच से मोदी ने ठेठ भोजपुरी व गवंई अंदाज में जैसे ही बोलना शुरु किया पांच साल पहले की याद ताजा हो गई। तारीख 10 मई 2014 को इसी स्थान पर 16वीं लोकसभा चुनाव की अंतिम जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था
अजित पाठक, बलिया
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बलिया व सलेमपुर से आए रउवा सबके परनाम बा, भूगु बाबा के हम नमन करत बानी। मंगल पांडेय के ई धरती पर शेरे बलिया चित्तू पांडेय, कुंवर सिंह अऊरी चन्द्रशेखर के सबके नमन करत बानी। नगर से सटे माल्देपुर में विजय संकल्प रैली के मंच से मोदी ने ठेठ भोजपुरी व गंवई अंदाज में जैसे ही बोलना शुरू किया पांच साल पहले की याद ताजा हो गई। तारीख 10 मई 2014 को इसी स्थान पर 16वीं लोकसभा चुनाव की अंतिम जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था 'आप सब लोगन के हमार परनाम बा, भृगु बाबा के धरती पर हम रउआ सब के आशीर्वाद लेवे आइल बानी'।
गंगा और तमसा के संगम पर मौजूद भोजपुरिया समाज को मोदी के इस छोटे से वाक्य ने पल भर में न सिर्फ अपना मुरीद बना लिया था, बल्कि वर्षों से उपेक्षित भोजपुरी भाषा के संवैधानिक मान्यता की उम्मीद भी जगा दी थी। पांच साल बाद एक बार फिर मोदी ने भोजपुरी से बात प्रारम्भ कर पूर्वांचल को साधने का प्रयास किया है। महर्षि भृगु की तपोस्थली व तारणहारिणी के पवित्र तट पर भोजपुरी के इन शब्दों की अनुगूंज ने पुन: भाजपुरिया जज्बातों को झंकृत करने का काम किया है। हालांकि बीते पाचं सालों में भोजपुरी के अतीत, वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित व संरक्षित करने की आस लगाए बैठे भोजपुरी भाषा-भाषियों को निराशा ही हाथ लगी है। मंगलवार को 17वीं लोकसभा की चुनावी रैली में भोजपुरी के चंद शब्दों से संबोधन बात प्रारम्भ कर मोदी ने बेशक भारत के इतिहास का पसीना व मजदूरों की भाषा कहलाने वाली भोजपुरी को सम्मानित करने का काम किया लेकिन उसके हक का सवाल अभी भी खड़ा है।
यह विडंबना ही है कि जिस भोजपुरी भाषी माटी से प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पैदा हुए हों वहीं भोजपुरी आजादी के सात दशक बाद भी संवैधानिक मान्यता से बेदखल है। 16 देशों में फैली 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भोजपुरी को कब तक उसका हक-हकूक मिलेगा यह अब भी अनुत्तरित है। मॉरीशस सरकार ने जहां वर्ष 2011 में ही भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दे दी। इसकी पहल पर यूनेस्को द्वारा भोजपुरी 'गीत-गवनई' को विश्व सांस्कृतिक विरासत का दर्जा भी मिल गया बावजूद भारत सरकार का उपेक्षात्मक रवैया जारी है जो भोजपुरिया समाज को खल रहा है। वैसे तो भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता का मामला पिछले 50 वर्षों से उठाया जा रहा है, लेकिन किसी ने इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता नहीं दिखाई। साल 1969 में सांसद भोगेंद्र झा के प्राइवेट मेंबर बिल से शुरु हुआ यह सफर आज तक जारी है।
इस बीच संसद में भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता को लेकर डेढ़ दर्जन से अधिक बार निजी विधेयक पेश किए गए। इसके अलावा कई बार स्पेशल मेंशन, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव तथा शून्यकाल के दौरान भी यह मुद्दा उठा। पर अफसोस भोजपुरी आज भी अपनी अस्मिता के लिए जद्दोजहद कर रही है। भले ही पी. चिदंबरम ने संसद में 'हम रउआ सभे के भावना के समझत बानी' कहकर आशा की किरण जगाई थी लेकिन समय के साथ ये शब्द धूमिल होते चले गए। भोजपुरिया समाज को निवर्तमान सरकार से भी काफी अपेक्षाएं थी, लेकिन अपना हक पाने में भोजपुरी पिछड़ गई। 17वीं लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा भोजपुरी की मान्यता को मुद्दा न बनाना जहां भोजपुरिया समाज को अखर रहा था वहीं पीएम मोदी द्वारा भोजपुरी में कही गई कुछ बातें एक बार फिर आशा जगा दी है। भोजपुरी के प्रति पीएम मोदी के लगाव को देखकर सम्पूर्ण भोजपुरिया समाज उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। आशा है संवैधानिक दर्जा से वंचित भोजपुरिया समाज के दर्द को समझते हुए 20 करोड़ जनमानस के साथ इस बार न्याय करने का काम किया जाएगा।
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