जल संचयन को करना होगा हर किसी को भगीरथ प्रयास
जल संसाधन पानी के वह स्त्रोत हैं जो मानव जाति के लिए उपयोगी हैं या जिनके उपयोग में आने की संभावना है। पूरे विश्व में धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है किन्तु इसमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ तीन प्रतिशत है। इसमें भी दो पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र एक प्रतिशत पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है। यह सब जानते हुए भी यदि हम जल संचयन के प्रति जागरूक नहीं होंगे तो भविष्य के लिए हम खुद ही खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। जल संचयन के दिशा में हम सभी को भगीरथ प्रयास करना होगा। यह तभी संभव है जब सभी पानी की बचत पर भी विशेष ध्यान देंगे।
जागरण संवाददाता, बलिया : नगर के अंदर बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने से भू-गर्भ लगातार नीचे खिसकता जा रहा है। इसके बाद भी जिम्मेदार भविष्य में आने वाले इस संकट को समझ नहीं पा रहे हैं। अगर हम सभी अभी से सजग नहीं होंगे तो आने वाले दिनों में पानी का संकट और बढ़ जाएगा। जल उपलब्धता को लेकर जनपद के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। अंधाधुन जल के दोहन की वजह से बलिया में पानी की उपलब्धता काफी कम होती जा रही है। यहां अहम सवाल यह भी है कि जब जिम्मेदार ही इस मामले में लापरवाह हैं तो किसी और से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है। भूजल स्तर के मामले में रसड़ा तहसील को डार्क जोन घोषित किया गया है। खोदाई तो हुई, अब झाड़ियों का डेरा
फेफना नया थाना परिसर में बने तालाब की स्थिति काफी दयनीय होती जा रही है। इस तालाब की की खोदाई तो बेहतर हुई थी, लेकिन इसमें पानी सदैव भरा रहे इसकी व्यवस्था नहीं की गई है। अभी के समय में दो दिन की बारिश की के बाद इसमें पानी जरूर भर गया है, लेकिन यह अल्प समय के लिए है। इसके सुंदरीकरण की ओर भी किसी का ध्यान नहीं है। इसके आस-पास चारों तरफ झाड़ियां उग आई हैं। वजूद खोने की कगार पर तालाब
जिला मुख्यालय से मात्र 12 किमी कि दूरी पर राजधानी रोड पर मनरेगा के तहत यादव बस्ती में बना तालाब अपनी वजूद खोने की कगार पर पहुंच चुका है। ऐसा नहीं है कि इस के निर्माण के बाद काम नहीं हुआ, पूर्व प्रधान व वर्तमान कि प्रधान की कोशिश भी इस तालाब के वजूद को बचाने में नाकाम रही। अब हालात यह हैं कि यह तालाब मिट्टी से भरता जा रहा है और इसकी गहराई भी कम होती जा रही है। तालाब में गिराते हैं गंदा पानी
सीयर ब्लाक के मुबारकरपुर गांव में एक भी पोखरा नहीं है। ऐसा नहीं कि यहां जल संचयन व पारंपरिक जल स्रोतों को बचाने को लेकर जनप्रतिनिधि या ग्रामीण जागरूक न हो कितु गांव में ग्राम पंचायत की भूमि न होने के कारण इसे लेकर जमीनी कार्य नहीं हो पाते। हालांकि गांव में अति प्राचीन दो विशाल तालाब ही गांव के वाटर लेवल को बचाने के लिए काफी है। कुछ लोगों द्वारा यहां गंदा पानी गिराया जाता है। जिससे इसका एक हिस्सा काफी गंदा रहता है कितु ग्रामीणों के आपसी सामंजस्य व प्रधान की पहल के बाद इस तालाब को ही काफी हद तक ग्रामीणों ने सहेज रखा है।