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नुक्कड़ नाटक से सामाजिक चेतना जगा रहे विवेकानंद

नितेश राय बलिया : समाज में व्याप्त कुरीतियों की बात हो या फिर सामाजिक चेतना जागृत करने क

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Jan 2018 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jan 2018 09:30 PM (IST)
नुक्कड़ नाटक से सामाजिक चेतना जगा रहे विवेकानंद
नुक्कड़ नाटक से सामाजिक चेतना जगा रहे विवेकानंद

नितेश राय

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बलिया : समाज में व्याप्त कुरीतियों की बात हो या फिर सामाजिक चेतना जागृत करने की, चाहे युवाओं में देश प्रेम की भावना पैदा करने की। इसमें विवेकानंद ¨सह हर समय आगे रहते हैं। सामाजिक कुरीतियों पर अकसर नुक्कड़ नाटक के जरिए प्रहार करने वाले विवेकानंद को कई सार्वजनिक मंच पर सम्मानित भी किया गया है। अभी फिलहाल में ही उन्हें मथुरा के चित्रकूट धाम में अंतरराष्ट्रीय बहुभाषीय प्रतियोगिता में ब्रज नाट्यश्री सम्मान से नवाजा गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि वे इस काम के लिए कोई फीस नहीं लेते हैं।

हम बात कर रहे नगर के वरिष्ठ रंगकर्मी विवेकानंद ¨सह की। गड़वार ब्लाक के सुखपुरा कस्बा निवासी विवेकानंद ¨सह को सामाजिक बुराइयों से लड़ने की सीख उनके पिता स्व. प्रकाशानंद ¨सह से मिली। वह भी एक सफल रंगकर्मी थे। विवेकानंद ने शुरुआती दिनों में पटना के एक ¨हदी दैनिक अखबार में नौकरी की, लेकिन कुछ ही दिन बाद वह लौट आए और रंगमंच को ही अपना जीवन बना लिया। तब से ये कभी गणतंत्र दिवस तो कभी स्वतंत्रता दिवस, राष्ट्रीय मतदाता दिवस, नारी सशक्तीकरण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, आजादी के जश्न, 19 अगस्त 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो, बलिया बलिदान दिवस के अवसर पर नुक्कड़ नाटक के जरिए आज की युवा पीढ़ी में सामाजिक चेतना जागृत करने का काम कर रहे हैं। विवेकानंद कहते हैं कि बलिया जनपद का रंगकर्मी इतिहास अत्यंत समृद्ध और गौरवशाली रहा है। यहां के प्रसिद्ध ददरी मेला में 3 नवंबर 1884 को भारतेंदुजी ने अपने नाटक राजा हरिश्चंद्र एवं नील देवी का सफल मंचन किया था तब से लेकर अब तक नगर के सुधिजनों के सहयोग से यहां टाउन क्लब, कलेक्ट्रेट ड्रामेटिक एसोसिएशन में एक से बढ़कर एक नाटकों का मंचन हुआ। उनका मानना है कि युवाओं को राष्ट्रीय मुख्य धारा से जोड़ने का यह सशक्त माध्यम है। हम नाटकों के माध्यम से जहां समाज को नई दिशा दिखाने का प्रयास करते हैं, वहीं युवाओं में देश प्रेम की भावना भी जागृत करते हैं।

कभी प्रशासक तो कभी कैदी की भूमिका

रंगकर्मी विवेकानंद ¨सह अपने नाटकों में कभी शेरे बलिया चित्तू पांडेय के रूप में 19 अगस्त 1942 में बागी बलिया के प्रशासक के रूप में तो कहीं महानंद मिश्र विश्वनाथ चौबे के वेश में कैदी की भूमिका में नजर आते हैं, लेकिन इसका भी एक ही मकसद है कि आज की युवा पीढ़ी को यह बताना कि कितनी लड़ाई के बाद आपको आजादी मिली है ताकि इससे भी युवाओं में देश प्रेम की भावना जागृत हो सके।

वर्जन----

भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त किया जाए। भ्रष्टाचार से तात्पर्य अयोग्य व्यक्तियों द्वारा प्रलोभन अथवा दबंगई के बल पर योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त करना है। इसके लिए परीक्षाओं को नकल मुक्त करना एवं उत्तर पुस्तिकाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन पाहली शर्त है।

--अर¨वद कुमार राय, समाजसेवी

लोकतंत्र को सम्मुनत करने के लिए आवश्यक है कि हम केवल एक ही अधिकार को जानें समझें और तदनुकूल आचरण करें। वह कर्तव्य का अधिकार है। इसे संविधान में भी इसलिए स्थान दिया गया है। आज जिस जोश व खरोश के साथ हम अपने अधिकारों की बात करते हैं, उसी उत्साह के साथ अपने कर्तव्य की भी बात करें तो अच्छा होगा।

--देवेंद्र नाथ ¨सह, शिक्षक

--किसी राष्ट्र और समाज की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि उसके सदस्यों में स्वाभिमान और स्वावलंबन की भावना कूट-कूट कर भरी जाए। उन्हें भारत के अतीत की पूर्ण जानकारी हो और स्वर्णिम भविष्य की आकांक्षा बताई जाए। देश का अभिमान बढ़ाने के लिए युवाओं को आगे आना होगा।

--सोमेंद्र कुमार राय, समाजसेवी

आज हम राजनीतिक ²ष्टि से स्वतंत्र हुए हैं ¨कतु सांस्कृतिक ²ष्टि से हम अब भी अंग्रेजी और अंग्रेजी अर्थ के गुलाम हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, ¨हदी के लिए भी पहल करनी होगी।

--डाक्टर कृष्ण गोपाल गुप्ता, अवकाश प्राप्त अध्यापक


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