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विष से कम नहीं आर्सेनिक युक्त जल का उपयोग

जागरण संवाददाता मझौवां (बलिया) मानक से ज्यादा आर्सेनिक युक्त जल का इस्तेमाल विष से कम नहीं ह

By JagranEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 05:48 PM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 05:48 PM (IST)
विष से कम नहीं आर्सेनिक युक्त जल का उपयोग
विष से कम नहीं आर्सेनिक युक्त जल का उपयोग

जागरण संवाददाता, मझौवां (बलिया): मानक से ज्यादा आर्सेनिक युक्त जल का इस्तेमाल विष से कम नहीं है। इसके बावजूद ऐसे जल को भूतल से पीने को विवश किया जा रहा है। असंख्य लोग आर्सेनिक युक्त जल पीने को विवश हैं लेकिन इसकी चिता न तो सरकार को है और न किसी रहनुमा को। आंकड़ों के मुताबिक जिले में 310 बस्तियों के भूजल में मानक से अधिक आर्सेनिक होने के कारण लोग असमय ही काल कवलित हो रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका द्वाबा क्षेत्र है। शासन-प्रशासन स्तर से समस्या के समाधान हेतु पानी की टंकियों का निर्माण कर गहरे हैंडपंप लगाए गए हैं। इसके बावजूद लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पा रहा है। बलेहरी ब्लाक के गंगापुर ग्राम पंचायत के तिवारी टोला गांव में अब तक कम से कम एक दर्जन लोग विभिन्न सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के बावजूद आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी से असमय काल की चपेट में आकर मर चुके हैं, जिसमें दुधनाथ ततवा (60), बरमेश्वर गुप्ता (50), गंगाजली देवी (60) व तारकेश्वर तिवारी (50) रमेश यादव (40), सुमतिया देवी (42) सहित एक दर्जन से अधिक लोग आर्सेनिक के कारण लीवर, किडनी, कैंसर आदि रोगों से ग्रसित होकर विगत 10 वर्षों से अपनी चिकित्सा करा रहे हैं कितु अभी तक उन्हें कोई लाभ नहीं हो सका है। जिस कारण जिदा रहते हुए भी तिल-तिल तड़पकर कष्ट झेल रहे हैं।

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सर्व प्रथम क्षेत्र के चौबे छपरा निवासी रवींद्र मिश्र के पिता जो कोलकाता में व्यवसाय करते हैं। वे यादवपुर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की टीम को लेकर वर्ष 2000 में गांव आए थे। टीम ने हैंडपंपों से जल के नमूने लेकर जांचोपरांत इसे आर्सेनिक का नाम दिया। उन्होंने कहा कि मानक से अधिक भू-जल में आर्सेनिक की मात्रा होने के कारण लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हो रहे हैं। वे कुछ रोगियों को चिकित्सा हेतु अपने साथ भी ले गए। उन्हें कुछ राहत भी मिली। उसके बाद केंद्र व प्रदेश शासन के अनुरोध पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय व जल निगम उत्तर प्रदेश की संयुक्त टीम ने जनपद के विभिन्न गांवों का दौरा करने के बाद जल के नमूने लिए। प्रयोगशाला में जांच करने के बाद उन्होंने इसे मानक से अधिक आर्सेनिक होने की पुष्टि की तथा विश्वबैंक पोषित हैंडपंपों पर क्रास लगाया ताकि लोग इस पानी का सेवन न करें कितु संसाधनों के अभाव में लोग वही पानी पीने को बाध्य हैं। धरी की धरी रह गई 800 करोड़ की योजना

इसके बाद चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, कानपुर आईटीआई के विशेषज्ञों ने भी मानक से अधिक आर्सेनिक होने की बात कही। जल व पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने भी केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के साथ क्षेत्र का दौरा किया था तथा भूजल में मानक से अधिक आर्सेनिक की बात से शासन को भी अवगत कराया था। इसको संज्ञान में लेकर केंद्र सरकार ने गंगा में ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर जल आपूर्ति के लिए 800 करोड़ की योजना बनाई थी कितु आज तक धरातल पर उसका क्रियान्वयन नहीं हो सका है। जिस कारण लोग आज भी आर्सेनिक से ग्रसित होकर विभिन्न बीमारियों से मर रहे हैं कितु विडंबना है कि शासन-प्रशासन आर्सेनिक से हो रही मौत को मानने को तैयार नहीं है। लोगों ने केंद्र व प्रदेश सरकार से आर्सेनिक से निजात दिलाने की मांग की है।


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