आरटीआइ से सूचना पाने में लोगों का छूट जा रहा पसीना
रवींद्र सिंह ने आरटीआइ के तहत गांव में विकास कार्यों का विस्तृत विवरण मांगा था, जानकारी पाने के लिए चार महीने से अधिक समय गुजर गया, लेकिन जानकारी नहीं मिली।
बलिया [समीर तिवारी] । सूचना का अधिकार भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा हथियार माना जाता है, लेकिन लालफीताशाही इसे कुंद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। अगर किसी ने सूचना मांगी तो पहले इंकार कर दिया जाता है या टालमटोल का क्रम चलता रहता है। किसी तरह जानकारी दी भी जाती है तो वह भी आधी-अधूरी। ऐसे में सूचना मांगने वाला घनचक्कर में उलझकर रह जाता है।
ऐसा ही एक मामला है बैरिया तहसील क्षेत्र के बेल्हरी विकासखंड के गांव राजपुर इकौना का। यहां के रहने वाले जागरूक नागरिक रवींद्र सिंह ने आरटीआइ के तहत गांव में किए गए विकास कार्यों का विस्तृत विवरण मांगा था। गांव के विकास कार्यों की जानकारी पाने के लिए चार महीने से अधिक समय गुजर गया, लेकिन मुकम्मल जानकारी नहीं मिली। उन्होंने चार जून 2018 को लोक सूचना अधिकारी, विकास खंड बेलहरी से नौ बिंदुओं की जानकारी के लिए आवेदन दिया था। इसके बाद तय समय-सीमा 30 दिन के भीतर कोई जवाब नहीं मिलने पर 10 जुलाई को मुख्य विकास अधिकारी के यहां प्रथम अपील की। सीडीओ के यहां से रवींद्र सिंह को सात अगस्त को 61 पन्नों का जवाब दिया गया। इसमें आधी-अधूरी जानकारी दी गई। जैसे 2015 से 2018 तक की जानकारी की बजाय 2015 तक की ही जानकारी दी गई।
कार्यों से संबंधित सूचना प्रमाणित नहीं है। अभिलेखों का निरीक्षण नहीं कराया गया सहित अन्य जानकारियों की जगह गुमराह करने की कोशिश की गई। इससे आजिज आकर रवींद्र सिंह ने 15 सितंबर को राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दायर की। 24 सितंबर को सूचना आयोग में उनकी अपील पंजीकृत हो गई। अब उन्हें सुनवाई का इंतजार है। यह मामला तो महज एक बानगी है, ऐसे न जाने कितने मामले हैं जिनमें सूचना मांगने वालों को बहका दिया जाता है।
अधिकार पाने की आस : सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। दुर्भाग्य की बात है कि इस कानून को लेकर अफसर गंभीर नहीं हैं। सूचना देने में हीलाहवाली भ्रष्टाचार की पुष्टि करती है। -रवींद्र सिंह।
बोले सीडीओ : जिस विषय पर सूचना मांगी गई वह डीपीआरओ के अधीन आता है। आरटीआइ को लेकर गंभीरता बरती जाती है। यदि आवेदक को लगता है कि जानकारी आधी-अधूरी है तो फिर से संपर्क करें। उन्हें सूचना उपलब्ध कराई जाएगी। -बद्रीनाथ सिंह, सीडीओ, बलिया।