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तब तालाब बनाने की थी होड़, अब नहीं दिख रहा कोई अस्तित्व बचाते

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By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 06:32 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 06:32 PM (IST)
तब तालाब बनाने की थी होड़, अब नहीं दिख रहा कोई अस्तित्व बचाते
तब तालाब बनाने की थी होड़, अब नहीं दिख रहा कोई अस्तित्व बचाते

हाईलाइटर---

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जलस्त्रोतों में नदियों के बाद तालाबों का सर्वाधिक महत्व है। तालाबों से सभी जीव-जंतु अपनी प्यास बुझाते हैं। किसान तालाबों से खेतों की सिचाई करते रहे हैं। हमारे देश में आज भी सिचाई के आधुनिकतम संसाधनों की भारी कमी है, जिस कारण किसान वर्षा तथा तालाब के पानी पर निर्भर हैं। लेकिन तालाबों की निरंतर कमी होती जा रही है। लगता है, हम तालाबों के महत्व को भूलते जा रहे हैं। एक समय था, जब देश में तालाब बनाने की होड़-सी लगी रहती थी। अब सरकारें तालाबों को भूल चुकी हैं। यही कारण है कि तालाब खुदवाने की जगह पाटने की दिशा की तरफ लोग तेजी से बढ़ रहे है। सरकारें भी पीने तथा सिचाई के लिए ट्यूबवेल, पंपसैट, हैंडपंप आदि पर जोर देती है, परंतु तालाब का महत्व नहीं समझती। जल स्त्रोत नष्ट होते जा रहे हैं। इस समय पानी की भारी कमी से हहाकार मचा हुआ है। यदि सरकार और जनता तालाब निर्माण की ओर एक बार जागृत हो जाए, तो संभवत: पानी की कमी दूर की जा सकती है। पुराणों में कहा गया है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावडिय़ों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। इस सांस्कृतिक विरासत को लेकर हम सभी को आगे बढ़ना चाहिए। तभी हम सभी का आज व कल सुरक्षित है..नहीं तो पानी की कमी के कारण हमारी पीढि़यों को तरसना पड़ सकता है..

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बलिया: जब बारिश होती है तब सड़कें एवं घर पक्के होने की वजह से सारा पानी बहकर नालियों के रास्ते बाहर कुछ ही देर में निकल जाता है। इस तरह से •ामीन के भीतर पानी नहीं जा पाता और जो पानी हम पिछले साल भर से •ामीन के अंदर से निकाल-निकाल कर इस्तेमाल कर रहे थे उसकी भरपाई नहीं हो पाती है। इसी वजह से जल-स्तर नीचे गिरता चला जा रहा है। ऐसे में तालाबों का अपना ही महत्व है। जब बारिश होती है तब बारिश का पानी इन तालाबों में भर जाता है जो कि जल-स्तर को बनाए रखने में सहायता करता हैं। गांवों में इनकी वजह से ही जल-स्तर बना रहता है। जहां तालाब हों उनको सुरक्षित रखा जाए ताकि बारिश का पानी इनमें एकत्रित हो सके। जिससे जल-स्तर की गिरावट को रोका जा सके। इसलिए अब समय आ गया है हम सभी लोग मिलकर तालाबों के महत्व को समझते हुए संरक्षित करें। --------------

आओ भरें तालाब

नगरा ब्लाक परिसर में स्थित तालाब की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। जिम्मेदारों के नाक के नीचे यह इस तालाब में पानी तक नहीं है। मनरेगा के तहत इस तालाब की खोदाई हुई थी। इसके बाद कुछ सालों तक यह तालाब लोगों के लिए नजीर बना रहा। गर्मी में भी इसमें लबालब पानी भरा रहता था। इसका उदाहरण देकर जिम्मेदारों ने कई गांवों में तालाबों की खोदाई भी करा दी। इसके बाद तो इस पर ब्लाक के जिम्मेदार लोगों ने ध्यान तक नहीं दिख। अब यह तालाब पानी बिन सुख हुआ है। वहीं चारों तरफ झाड़ियां उग गई है।

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कहां गए तालाब

शहर से मात्र दस किमी की दूरी पर स्थित कपूरी गांव का तालाब इन दिनों जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। इस पोखरे पर बने घाट ही बता रहे है कि इसका उस समय कितना महत्व रहा होगा। देखरेख के अभाव में यह पोखरा दम तोड़ रहा है। कभी इस पोखरे में लोग स्नान ध्यान करते थे। इसके पानी पशु भी अपना गला तर करते थे। अब तो पशु भी इसका पानी नहीं पीते है। इस पर न तो किसी जन प्रतिनिधि का ध्यान है और न ही प्रशासन का। इसलिए यह अपने अस्तित्व को खोता नजर आ रहा है।

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आओ गढ़ें तालाब

चितबड़ागांव बाजार में स्थित तेलिया का ऐतिहासिक पोखरा लगभग खत्म के तमाम हो गया है। इस पोखरे को एक संपन्न व्यवसायी ने खोदवाया था। यह पोखरा बाजार के हृदय था। वर्तमान समय में उपेक्षा व देखरेख के चलते इस पर अतिक्रमण होने लगा है। वहीं नाला व नालियों का पानी इसी पोखरे में गिरने से अब अनुपयोगी भी हो गया है। यह पूरी तरह से जलकुंभी से पटा गया है। किसी जमाने में इस पोखरे में स्नान करने के बाद बगल में स्थित शिव मंदिर में जल चढ़ाते थे। इस पोखरे में गंदा गिरने से शिव मंदिर की प्रासंगिकता भी समाप्त हो रही है। शासन-प्रशासन से लोगों ने कई बार इसके अस्तित्व को बचाने की गुहार लगाई लेकिन किसी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ---------------वर्जन--------

पोखरे पर न तो प्रशासन का ध्यान है और न ही किसी जनप्रतिनिधि की। जब सरकार की कोई निधि व योजना नहीं तब ग्रामीणों ने मिल कर इस भव्य पोखरा व मंदिर का निर्माण किया था। इस पोखरे के चारों तरफ घाट बनाया गया था। इसमें गांव के अगल-बगल के लोग भी स्नान ध्यान करते थे।

-राजबली यादव, कपूरी।

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अति प्राचीन पोखरा कभी लोगों के आस्था व विश्वास का केंद्र हुआ करता था कितु आज उपेक्षा का शिकार है। कभी भी इसकी खोदाई व साफ सफाई नहीं होती है। यदि इसकी खोदाई करा दी जाए तो इसका अस्तित्व पुन: वापस आ सकता है। पारसनाथ पांडेय।

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कभी यह पोखरा जल संचयन की नजीर पेश करता था। गर्मी के दिन में पशु पक्षियों के लिए वरदान था। आज अतिक्रमण का शिकार होकर अपनी उपेक्षा की कहानी बयां कर रहा है। इसकी खोदाई व साफ सफाई आवश्यक है।

वीरबहादुर पांडेय।


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