मन के अंदर रोटी का सवाल, चेहरे पर थी आने की खुशी
कोरोना वायरस ने पूरे देश में अजीब से हालात पैदा कर दिए हैं। जिस रोटी के लिए श्रमिक अपना गांव घर छोड़ कर महानगरों में कार्य कर रहे थे आज घर लौटने की जिद पर हैं। उन्हें पता है कि गांव में खेती-किसानी सब्जी व्यापार के अलावा कोई दूसरा रोजगार नहीं है। फिर भी जान है तो जहान है की बात सभी के मन में बैठ गई है। यही कारण है कि वे किसी भी तरह अपनों के बीच पहुंचना चाहते हैं। ऐसे श्रमिकों को लेकर श्रमिक एक्सप्रेस बुधवार को जब बलिया पहुंची तो ट्रेन से उतरने वाले सभी मजदूरों के चेहरे पर तो खुशी थी लेकिन मन के अंदर रोटी की चिता भी कम नहीं थी।
कोरोना वायरस ने पूरे देश में अजीब से हालात पैदा कर दिए हैं। जिस रोटी के लिए श्रमिक अपना गांव, घर छोड़ कर महानगरों में कार्य कर रहे थे, आज घर लौटने की जिद पर हैं। उन्हें पता है कि गांव में खेती-किसानी, सब्जी व्यापार के अलावा कोई दूसरा रोजगार नहीं है। फिर भी जान है तो जहान है की बात सभी के मन में बैठ गई है। यही कारण है कि वे किसी भी तरह अपनों के बीच पहुंचना चाहते हैं। ऐसे श्रमिकों को लेकर श्रमिक स्पेशल बुधवार को जब बलिया पहुंची तो ट्रेन से उतरने वाले सभी मजदूरों के चेहरे पर तो खुशी थी, लेकिन मन के अंदर रोटी की चिता भी कम नहीं थी। लवकुश सिंह
--------- बलिया : कोरोना की वायरस की वैश्विक महामारी के बीच यदि सबसे ज्यादा परेशानी में कोई है तो वह है श्रमिक वर्ग। लॉकडाउन के दरम्यान महानगरों में काम बंद होने के बाद उनके सामने एक नहीं कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो गई। ऐसे में असंख्य श्रमिक चाहे कुछ भी हो जाए, घर पहुंचने की ठान लिए। महानगरों से कोई पैदल तो कोई साईकिल से घर निकलने लगा। इस स्थिति को देखने के बाद सरकार ने उन्हें घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उसी व्यवस्था के तहत श्रमिक ट्रेन बुधवार को श्रमिकों को लेकर महर्षि भृगु की धरती बलिया में पहुंची, जहां श्रमिकों ने बातचीत में बताया कि महानगरों में उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन कोरोना वायरस की शोर के बीच वे अपने घर ही ज्यादा सेफ मानते हैं।
गांव में जाकर अब क्या करेंगे। इस सवाल पर अधिकांश श्रमिकों का जवाब था..खेती-बारी कर लेंगे, मजदूरी कर लेंगे, लेकिन जब तक स्थिति सामान्य नहीं होती, महानगरों का रूख नहीं करेंगे। प्रदेश के कुल 31 जनपदों के 1200 श्रमिक जब महर्षि भृगु की धरती बलिया के मॉडल स्टेशन पर उतरे तो उनके लिए सरकारी तौर पर बेहतर प्रबंध किए गए थे। ट्रेन की हर बोगी सील थी। वह बलिया पहुंचने पर ही खोली गई। यहां जांच के दौरान जो संदिग्ध दिखे, उन्हें जनपद के क्वारंटाइन सेंटर में भेजा गया और जो सामान्य दिखे उन्हें होम क्वारंटाइन की पर्ची देकर घर भेज दिया गया। कम पढ़े-लिखे हैं लेकिन वहां करते थे अच्छी कमाई
श्रमिकों की इस भीड़ में ऐसे बहुत से श्रमिक मिले जो कम पढ़े-लिखे थे लेकिन महानगरों में विभिन्न कंपनियों में मैकेनिक बनकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। वह मानते हैं कि गांव में वे उतना नहीं कमा सकते हैं, लेकिन कंपनियों के बंद होने के चलते उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। वह कितना दिन तक बैठ कर खाते, इसलिए घर को निकलना ही बेहतर समझे। बातचीत में श्रमिकों ने यूं बयां की अपनी व्यथा..। -जनपद के रेवती निवासी धीरेंद्र साह बताते हैं कि वे राजकोट में कैंटीन चलाते हैं। लॉकडाउन के चलते आमदनी अचानक ठप्प हो गई, अब सामान्य स्थिति होने पर ही वह वापस राजकोट जाएंगे। यहां आने के लिए उनसे कोई किराया नहीं लिया गया। -गाजीपुर के मुन्ना लाल चौहान बताते हैं कि वे राजकोट में मशीन रिपेयरिग का काम करते हैं। उसी से उनका दो स्थानों पर घर चलता है। राजकोट और गांव में भी। अब रोजगार ठप्प है, स्थिति सुधरती है तो राजकोट वापस होंगे, नहीं तो गांव में ही कुछ करेंगे। -जनपद के ही डुमरी शंकरपुर निवासी अवधेश कुमार राजकोट में एलईडी बनाने का करते हैं। बताया कि ट्रेन में सरकार की अच्छी व्यवस्था थी। किसी से कोई किराया नहीं लिया गया। अब स्थिति सामान्य होने पर ही वह वापस जाएंगे। -जनपद के रसड़ा निवासी शिवधन चौहान ने बताया कि ट्रेन में कोई किराया नहीं लिया गया। वह रोजकोट में लोहे की फैक्ट्री में काम करते हैं। अब जब तक स्थिति सामान्य नहीं होती, गांव में ही कुछ कर रोटी का जुगाड़ करेंगे। -गाजीपुर के धर्मेन्द्र राजभर बताते हैं कि वह साईकिल का हैंडिल बनाने का काम करते थे। वह गांव में नहीं रहेंगे। लॉकडाउन खत्म होने पर वहीं जाकर काम करेंगे। इसलिए कि वहां खड़ा किया हुआ रोजगार ठप्प हो जाएगा। -गाजीपुर मोहम्मदाबाद के निवासी मनोज कुमार भी बताते हैं कि उनसे कोई अतिरिक्त किराया नहीं वसूला गया। सरकार ने अच्छा इंतजाम किया था। इसी के साथ सरकार को चाहिए कि वह गांव में ही हमारे रोजगार का इंतजाम कर दे। -जनपद के बाछापार निवासी ब्रजेश चौहान ने बताया कि लॉकडाउन में सारा पैसा खत्म हो गया था, अब हम वहां रहते तो भूखे मरते। सरकार ने अच्छा इंतजाम किया और हमें अपने घर पहुंचा दिया। यहां कुछ भी करके हम जी लेंगे। -जनपद के बैरिया ठेकहा निवासी अजीत ने बताया कि ट्रेन का कोई किराया नहीं लिया गया है। अब घर पहुंच कर गांव में ही कुछ करने का प्लान बनाएंगे। इसलिए कि बाहर में आपदा की घड़ी में कोई अपना नहीं है। -जनपद के सहतवार त्रिकालपुर निवासी दिनेश ने बताया कि कोरोना की महामारी में ही समझ में आया कि अपना कौन हैं। वहां पर अब हमारी स्थिति भूखे मरने की हो चली थी। भला हो सरकार का कि हमें आसानी से घर पहुंचा दिया। -जनपद के पकड़ी थाना क्षेत्र के चकरा गांव के निवासी राहुल ने भी बताया कि किसी से कोई किराया नहीं लिया गया है, लेकिन गांव में रोजगार को लेकर चिता बढ़ गई है। सरकार यदि तत्काल कोई इंतजाम नहीं करेगी तो गांव में भी हमारी हालत ठीक नहीं रहेगी।