धार्मिक ग्रंथों में बड़ा नाम...नहीं मिल पाया उचित मुकाम
हम दूर-दराज के इलाकों में स्थित पर्यटन स्थलों को इसलिए पसंद करते हैं कि वहां हम पहली बार जाते हैं और बहुत कुछ नया देखने का मिलता है। लेकिन हम अपने आसपास के इतिहास का पढ़ना या जानने की दिशा में कभी तत्पर नहीं दिखते। जबकि हमारे आसपास भी कई तरह की ऐतिहासिकता को समेटे बहुत से स्थल हैं जो मन को रोमांचित स्थिति में ला देते हैं। बलिया के नदी तट से लेकर मंदिरों में हर महत्वपूर्ण दिवस पर आस्था का सैलाव उमड़ते देख हर किसी का मन भक्तिमय सरोवर में गोते लगाने लगता है। यहां का ददरी मेला जो हर साल दशहरे के बाद लगता है वह भी कई तरह के धार्मिक इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है।
हाईलाइटर----हम दूर-दराज के इलाकों में स्थित पर्यटन स्थलों को इसलिए पसंद करते हैं कि वहां हम पहली बार जाते हैं और बहुत कुछ नया देखने को मिलता है लेकिन हम अपने आसपास के इतिहास को पढ़ना या जानने की दिशा में कभी तत्पर नहीं दिखते। हमारे आसपास भी कई तरह की ऐतिहासिकता को समेटे बहुत से स्थल हैं जो मन को रोमांचित स्थिति में ला देते हैं। बलिया के नदी तट से लेकर मंदिरों में हर महत्वपूर्ण दिवस पर आस्था का सैलाब उमड़ते देख हर किसी का मन भक्तिमय सरोवर में गोते लगाने लगता है। यहां का ददरी मेला, जो हर साल दशहरे के बाद लगता है, वह भी कई तरह के धार्मिक इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। डॉ. रवींद्र मिश्र
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बलिया : यहां के भृगु क्षेत्र के गंगा घाटों का प्रयागराज और वाराणसी की तर्ज पर विकास होना चाहिए था। राजनीतिक रुप से धनी होने के बावजूद यह स्थल इस मामले में आज तक उपेक्षित ही रह गया। दशहरे के बाद यहां हर साल लगने वाला ददरी मेला गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के ऋषि मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है।
गंगा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए महर्षि भृगु ने सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि द्वारा बलिया में संगम कराया। मान्यता है कि भृगु क्षेत्र में गंगा-तमसा के संगम पर स्नान करने पर वही पुण्य प्राप्त होता है जो पुष्कर और नैमिषारण्य तीर्थ में वास करने, साठ हजार वर्षो तक काशी में तपस्या करने अथवा राष्ट्र धर्म के लिए रणभूमि में वीरगति प्राप्त करने से मिलता है। यह भी कहा जाता है कि जीवनदायिनी गंगा के संरक्षण और याज्ञिक परम्परा से शुरू हुए ददरी मेले को महर्षि भृगु ने ही प्रारम्भ किया था कितु महर्षि भृगु की इस धरती का धर्म नगरी के रुप में भी विकास नहीं हो सका। गंगा घाटों की दशा भी लंबे समय से उसी हाल में है। गंगा और तमसा के संगम तट का विकास भी आज तक नहीं हो सका। इसके बावजूद यहां देखने लायक बहुत कुछ है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित महर्षि का आश्रम भी नगर में आस्था का केंद्र है। हर दिन यहां सैकड़ों लोग दर्शन व पूजन के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा जिले में और भी कई स्थान हैं जहां जाने पर हर किसी का मन रोमांचित हो उठता है। सींढ़ीयुक्त नहीं है घाट, फिर भी स्नान का महत्व आध्यात्मिक सर्किट योजना में भी चयनित है भृगु मंदिर
पर्यटन मानचित्र पर चमकाने के लिए लोकसभा चुनाव से पूर्व नगर के भृगु मंदिर का भी चयन किया गया था। सरकार ने धार्मिक व पौराणिक महत्व के स्थलों के व्यापक विकास के लिए आध्यात्मिक सर्किट-2 में बलिया के भृगु बाबा मंदिर को विकसित करने का प्लान तैयार किया था। इस महत्वपूर्ण योजना में प्रदेश के 94 प्रमुख धार्मिक स्थलों का चयन हुआ था, उसमें महर्षि भृगु मंदिर का भी स्थान है। यदि मंदिर और यहां के नदी घाटों को विकसित कर दिया जाता है तो प्रयागराज और वाराणसी की तरह बलिया भी दिखाई देगा। इससे एक तरफ जनपद का गौरव तो बढ़ेगा ही, बहुआयामी विकास के नए मार्ग भी प्रशस्त होंगे। -इस तरह बंटे हैं आध्यात्मिक स्थल
लोकसभा चुनाव से पूर्व उत्तर-प्रदेश में पर्यटन के व्यापक विकास के लिए केंद्र सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी। इस क्रम में पूरे देश को सर्किट में बांटा गया है। स्वदेश दर्शन योजना के तहत धार्मिक आधार पर प्रमुख केंद्र चयनित किए गए हैं। बुद्ध, जैन, श्रीकृष्ण, रामायण और बौद्ध सर्किट के तहत प्रदेश के धार्मिक स्थलों को योजना का हिस्सा बनाया गया है। इसके बाद शेष बचे प्रमुख स्थलों को पर्यटन विकास से जोड़ने के लिए एक अन्य अतिरिक्त श्रृंखला आध्यात्मिक सर्किट (परिपथ) का सृजन किया गया है। इसमें अन्य प्रमुख पर्यटन व धार्मिक स्थलों को शामिल किया गया है। इनमें बलिया के महर्षि भृगु मंदिर को भी स्थान मिला है। इस योजना के तहत यदि धरातल पर कार्य होते हैं तो रामायण सहित अन्य कई ग्रंथों में वर्णित बलिया के इस ऐतिहासिक धरोहर को भी नई पहचान मिल सकती है। -सत्यापन कार्य पूर्ण होने के बाद से ठप पड़े हैं कार्य
लोकसभा चुनाव से पूर्व बलिया आए क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आरएन मिश्र ने तब बताया था कि चयनित धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना को मूर्तरूप देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पर्यटन विभाग ने इन स्थलों के भौतिक सत्यापन का कार्य पूरा कर लिया है। चयनित स्थलों पर भूमि चयन सहित अन्य औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गईं हैं। सभी विकास कार्यो को मूर्तरूप देने के लिए पर्यटन विभाग को नोडल अधिकार प्राप्त है। अगले वर्ष तक चयनित स्थलों की विकास योजना को पूरी तरह क्रियान्वित कर लेने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
चयनित इन धार्मिक स्थलों को प्रकाश परिपथ व सोलर लाइट से आच्छादित किया जाना है। वहीं सड़क, पाथ-वे, पार्को का विकास भी किया जाना है। विकास के क्रम में बाउंड्रीवाल, बेंच, रेन शेल्टर, लैंडस्केपिग, वाटर हार्वेस्टिग व रैन बसेरा का भी निर्माण होना है। ड्रेनेज सिस्टम दुरूस्त होंगे, सीढि़यों पर पत्थर बिछाकर अन्य जन सुविधाएं विकसित की जाएंगी। पुरातात्विक महत्व के स्थलों का मौलिक स्वरूप बरकरार रखकर इनका संरक्षण व संवर्धन किया जाएगा। म्युजियम व अन्य धरोहरों के विकास के लिए भी कारगर योजना बनाई गई है लेकिन अभी तक इस दिशा में कार्य न होने से उम्मीदें हवा में ही सैर कर रही हैं। -सींढ़ीयुक्त नहीं हैं घाट फिर भी स्नान को रहता रेला
यह सही है कि बलिया में गंगा नदी का वह घाट भी सींढ़ीयुक्त नहीं है, इसके बावजूद यहां श्रद्धालुओं के स्नान का रेला कभी कम नहीं हुआ। स्नान के मामले में भृगु क्षेत्र को लोग बिहार में भी विशेष महत्व देते हैं। किसी विशेष दिवस पर तो यहां की भीड़ को संभालने में प्रशासन के भी पसीने छूट जाते हैं। सिर्फ बलिया ही नहीं बाहर से भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां स्नान और महर्षि भृगु के दर्शन को पहुंचते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तो पूरा बलिया नगर ही श्रद्धालुओं की भीड़ से भक्तिमय सरोवर में नहाते नजर आता है। -बलिया नगर में घूमने लायक यह
भी है स्थान
धार्मिक भावनाओं को अपने अंदर समेटे नगर में महर्षि भृगु मंदिर के अलावा अन्य भी कई स्थान हैं जहां लोग जरूर पहुंचते हैं। नगर में स्थित बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर की भी अलग ऐतिहासिकता है। यहां भी सावन हो या अन्य दिवस भक्तों की भीड़ कम नहीं होती। इसके अलावा शहीद पार्क चौक जहां जिले के अमर शहीदों को लोग याद करने पहुंचते हैं। जनेश्वर मिश्र पार्क वन विहार में तो बच्चे पहुंचते ही उछल पड़ते हैं। कदम चौराहा के पास बड़ी मठिया में भी देखने लायक बहुत कुछ है। ----वर्जन-------
-पर्यटन स्थल के रूप में बहुत जल्द मिलेगी पहचान
नगर के विधायक व सूबे के मंत्री आनंद स्वरुप शुक्ल ने कहा कि धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। इस पर लोकसभा चुनाव से पूर्व ही सरकार ने कार्य प्रारंभ कर दिया है। बलिया में चयनित सभी धार्मिक स्थल पर्यटन के मानचित्र पर दिखेंगे। इसकी कार्ययोजना बन चुकी है। बहुत जल्द कार्य भी शुरू हो जाएंगे। बलिया का भृगु मंदिर तो पूरे जिले की पहचान को बयां करता है। संकल्प के मंत्रों में भी इस क्षेत्र के लोग भृगुक्षेत्रे शब्द का प्रयोग करते हैं। बहुत जल्द इस स्थल की तकदीर बदल जाएगी।