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गठबंधन से नहीं आया पैगाम, खाली पड़ा चुनावी मैदान

लोकसभा बलिया में गठबंधन से टिकट फाइनल में हो रही देरी से उस ओर के समर्थकों की बेचैनी हर दिन बढ़ते जा रही है। यहां सातवे चरण के चुनाव के लिए 22 अप्रैल से नामांकन भी शुरू हो रहा है। लेकिन चार पहले तक गठबंधन और कांग्रेस से उम्मीदवारों की तस्वीर धुंधली है। सभी मान रहे कि अब देरी ठीक नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 05:21 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 05:21 PM (IST)
गठबंधन से नहीं आया पैगाम, खाली पड़ा चुनावी मैदान
गठबंधन से नहीं आया पैगाम, खाली पड़ा चुनावी मैदान

सातवें चरण के चुनाव का कार्यक्रम

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22 अप्रैल को जारी होगी अधिसूचना

22 अप्रैल से ही शुरू होगा नामांकन

29 अप्रैल को नामांकन का अंतिम दिन

30 अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच

2 मई को नामांकन वापसी की तारीख

19 मई को होगा जनपद में मतदान लवकुश सिंह, बलिया

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लोकसभा बलिया में गठबंधन से टिकट फाइनल में हो रही देरी से उस ओर के समर्थकों की बेचैनी हर दिन बढ़ती जा रही है। यहां सातवें चरण के चुनाव के लिए 22 अप्रैल से नामांकन भी शुरू हो रहा है, लेकिन चार दिन पहले तक गठबंधन और कांग्रेस से उम्मीदवारों की तस्वीर धुंधली है। सभी मान रहे कि अब देरी ठीक नहीं है। देरी को लेकर शीर्ष नेतृत्व के प्रति समर्थकों का गुस्सा भी बढ़ रहा है। सुबह से लेकर रात तक कार्यकर्ता अपनी पार्टी के पदाधिकारियों से मोबाइल पर यही बात पूछ रहे हैं कि टिकट के मामले में गठबंधन से कुछ फाइनल हुआ, लेकिन सही जवाब कहीं से भी नहीं मिल रहा है। इससे गठबंधन के सभी कार्यकर्ता भी मायूस हैं।

सपा-बसपा गठबंधन में बलिया का सीट सपा के खाते में गया है, लेकिन अंदर में बसपा और सपा दोनों दलों की ओर से दावे किए जा रहे हैं। पिछले दिनों सपा से नीरज शेखर कई गांवों का भ्रमण कर मतदाताओं में खुद के आगमन का संदेश दिए। वहीं बसपा से अंबिका चौधरी भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी विभिन्न क्षेत्रों में जाकर जनसंपर्क किया। हालांकि टिकट के मामले में किसी के द्वारा स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया गया, लेकिन उनके भ्रमण से ही टिकट के कयास लगने लगे। इसके अलावा टिकट के दौड़ में और भी कई नाम हैं जिनकी चर्चा चल रही है। ऐसे में गठबंधन के समर्थक स्वयं असमंजस में हैं। वे किससे पूछें कि गठबंधन का शीर्ष नेतृत्व टिकट में विलंब कर क्या संदेश देना चाह रहा है। करवट ले सकती है बलिया की राजनीति

यह बात आम मतदाता भी मानते हैं कि अभी बलिया की राजनीति स्थिर नहीं हुई है। भाजपा और सुभासपा ने यहां अपना उम्मीदवार उतार रखा है, लेकिन गठबंधन और कांग्रेस की ओर से अभी तक मंथन ही हो रहा हैं। गठबंधन और कांग्रेस दोनों से टिकट की घोषणा के बाद बलिया की राजनीति भी अचानक करवट ले सकती है। टिकट के मामले में देरी के पीछे जानकार मानते हैं कि यह देरी टिकट के नामी कई प्रबल दावेदारों के चलते ही हो रही है। शीर्ष नेतृत्व को पता है कि टिकट के मामले में किसी एक को ही खुश किया जा सकता है। उम्मीदवार की घोषणा के बाद टिकट से बेदखल बाकी के उम्मीदवार किस मोड में होंगे, इस पर भी मंथन हो रहा है। वहीं कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी को ताक रही है, ताकि वह भी बलिया में जातीय समीकरण के अनुसार अपना प्रत्याशी उतार सके। आगे माहौल चाहे जो बने, अभी हर तरफ टिकट मिलने और नहीं मिलने की ही चर्चा है। बागी धरती को बाहरी कभी नहीं हुए स्वीकार

बलिया संसदीय सीट पर बाहरी उम्मीदवार कई बार अपना भाग्य आजमाने पहुंचे, लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी। कभी भी इस धरती ने दमखम वाले बाहरी उम्मीदवारों को स्वीकार नहीं किया। 1952 में कांग्रेस ने यहां से लोगों की मर्जी के विपरीत पं. मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविद मालवीय को अपना उम्मीदवार बना दिया। बागी तेवर के धनी यहां के लोगों ने कांग्रेसी लहर में भी गोविद मालवीय को खारिज कर निर्दलीय स्थानीय प्रत्याशी मुरली मनोहर को जिताकर संसद में भेजा। वर्ष 2004 में कपिलदेव यादव बसपा व उपचुनाव 2007 में हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी को ठीक-ठाक परिस्थितियां होते हुए भी हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा भी यहां भाजपा से उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें भी पराजय का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2014 में कांग्रेस से कल्पनाथ राय की पत्नी सुधा राय और मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी कौमी एकता दल से बलिया के चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन बलिया के मतदाताओं ने अपने आंगन से स्थानीय भाजपा उम्मीदवार भरत सिंह को चुना।


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