आस्था के महापर्व पर आज निवेदित होगा अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य
महाभारत भी हुई थी छठ पूजा छठ पूजा की शुरुआत के बारे में जानकार पंडित बताते हैं कि छठ पूजा महाभारत काल के समय से होती आ रही है। जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा। उन्होंने सूर्य देव और छठ मइया से पांडवों के राजपाट और सुख-समृद्धि की कामना की। जब पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला, तब द्रौपदी ने धूमधाम से छठ पूजा की थी।
जागरण संवाददाता, बलिया : कार्तिक शुल्क की षष्ठी तिथि को आयोजित होने वाले आस्था के महापर्व छठ पर मंगलवार की शाम व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य निवेदित करेंगी। सूर्योपासना के पर्व को लेकर चौतरफा उल्लास व उत्साह का माहौल बना है। बाजार से लेकर गांव-घरों तक में पर्व की तैयारी चल रही है। घरों में महिलाएं सुबह से ही साफ-सफाई के काम में लगी रहीं तो बाजारों में खरीदारों की भीड़ उमड़ी रही। बाजार में पूजन सामग्री के साथ फलों आदि की खरीदारी के लिए हर ओर लोगों का तांता लगा रहा। नगर में गांव- देहात से सैकड़ों की संख्या में लोगों के पहुंचने से नगर में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। इस बीच फलों व कपड़ों की दुकानों पर सबसे अधिक भीड़ रही। इसके अलावा जिले भर में छठ घाटों पर भी तैयारी को अंतिम रूप दिया जाता रहा। घाटों पर वेदी बनाने से लेकर उसे सजाने आदि का काम चलता रहा। नगर से लेकर गांव तक भक्ति का माहौल बना रहा। प्रशासनिक अधिकारी छठ घाटों की सुरक्षा को लेकर योजना बनाते रहे। एडीएम मनोज ¨सघल व एएसपी विजय पाल ¨सह ने छठ घाटों का निरीक्षण किया।
फलों की दुकानों पर उमड़ी भीड़
छठ पर्व की पूर्व संध्या पर नगर में फलों आदि की खरीदारी के लिए नगर व आसपास के क्षेत्रों से लोगों की उमड़ी जबर्दस्त भीड़ हो गई। इसकी वजह से लोगों को सामान खरीदने में घंटों लग गया। भीड़ की वजह से शहर में अंदर प्रवेश कर जाने के बाद लोगों का निकलना तक मुश्किल हो गया।
घाटों पर रहेगी पुलिस की निगरानी
छठ पूजा को लेकर पुलिस विभाग भी काफी सक्रिय है। इसको लेकर शहर के अंदर दोपहर बाद बड़े वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। वहीं घाटों पर सुरक्षा को लेकर सादे वर्दी में महिला व पुरुष के जवान लगाए गए है। सदर कोतवाल शशिमौली पाण्डेय ने बताया कि शाम को यह पूजा होती है और महिलाओं की मौजूदगी ज्यादा होती हैं। ऐसे में सुरक्षा को लेकर पुलिस पूरी तरह से गंभीर है। वहीं अगले दिन भोर में चार बजे से ही महिलाओं के आने का क्रम शुरू हो जाता है। इसके लिए उन्हें रास्ते में किसी तरह की दिक्कत हो, इसके लिए मोबाइल टीम भी लगाई गई है।
-नौकरी करने वाले लोगों के घर आगमन से बढ़ी घर की रौनक
जासं, बलिया : छठ की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है। बाहर रहकर नौकरी करने वाले लोगों के छठ में घर आगमन से घर-घर की रौनक बढ़ गई है। सोमवार को दिनभर लोग फलों व छठ से जुड़े सामग्रियों की खरीदारी करते रहे। इस दिन सभी व्रती निर्जला व्रत रहकर शाम को खरना में खीर और रोटी बनाकर पूजन किए और उसके बाद प्रसाद रुप में उसे ग्रहण किए। आज मंगलवार को सभी व्रती नदी घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्ध्य देंगे और बुधवार को उगते सूर्य को अर्ध्य के साथ यह व्रत संपन्न हो जाएगा। मान्यता के अनुसार छठ में प्रसाद वितरण का भी बड़ा महत्व है। छठ की पूजा में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। साथ ही पूजा में बड़ा नींबू, केला, नारियल, गन्ना, बांस की टोकरी ठेकुए और नये चावल जरूरी है। इसके बिना पूजा अधूरा माना जाता है।
पति व बच्चों के लिए होती है कामना
इस त्योहार को मनाने के पीछे ये मान्यता है कि छठ माता का जो व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत पति और बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए रखा जाता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशय के किनारे यह व्रत करते हैं। बहुत से लोग घर के छत पर भी यह पर्व करते हैं। इस व्रत से रोग मुक्ति का आशीर्वाद भी मिलता है।
राम व सीता ने भी किया था छठ
दीपावली के छठे दिन भगवान राम ने सीता संग अपने कुल देवता सूर्य की पूजा सरयू नदी में की थी। उन्होंने षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्ठान एवं अन्य वस्तुओं के साथ अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरू किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्य षष्ठी का पर्व मनाने लगे।
महाभारत में भी हुई थी छठ पूजा
छठ पूजा की शुरुआत के बारे में जानकार पंडित बताते हैं कि छठ पूजा महाभारत काल के समय से होती आ रही है। जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा। उन्होंने सूर्य देव और छठ मइया से पांडवों के राजपाट और सुख-समृद्धि की कामना की। जब पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला, तब द्रौपदी ने धूमधाम से छठ पूजा की थी।