दायित्वों का हो ईमानदारी से निर्वहन तो नहीं जमा होगा कूड़े का ढ़ेर
जागरण संवाददाता, बलिया : एक साफ-सुथरे माहौल में रहना सभी को अच्छा लगता है ¨कतु उसे साफ
जागरण संवाददाता, बलिया : एक साफ-सुथरे माहौल में रहना सभी को अच्छा लगता है ¨कतु उसे साफ रखने के प्रति सभी लापरवाह होते हैं। नगर हो या ग्रामीण क्षेत्र हर जगह कूड़ा-कचरा बढ़ता जा रहा है। नगर में तो हालात ऐसे हैं कि जहां भी लोगों को खाली जमीन मिलती है लोग वहीं कूड़ा-कचरा डालना शुरू कर देते हैं। इससे उक्त स्थान पर एक बड़ा टीला बन जाता है और उस टीले की गंदगी पूरे मोहल्ले में बदबू फैलाने लगती है। नगर में कई स्थानों पर कूड़ादान भी लगा है, वह छोटा है। कूड़ा वाहन भी कहीं मोहल्लों में जाते हैं तो कहीं नहीं जाते। नगर के कई हिस्सों में बीच सड़क पर या किसी खाली जमीन पर लोग कूड़ा डालने को मजबूर हैं। नगरपालिका या नगर पंचायतों के द्वारा सड़कों से कूड़ा-कचरा हटाया जाता है ¨कतु विकल्प के अभाव में लोग पुन: उसी स्थान पर कूड़ा डाल देते हैं। ऐसी जगहें न सिर्फ देखने में गंदी लगती हैं बल्कि इस गंदगी से लोगों की सेहत को भी खतरा होता है। कूड़े-कचरे के ढेर चूहों, कॉकरोच और बीमारी फैलाने वाले दूसरे कीड़े-मकोड़ों की आबादी बढ़ाते हैं। इस मामले में खुद की थोड़ी सी सतर्कता से पूरा माहौल बदल सकता है। नगर में यदि साफ-सफाई का बेहतर इंतजाम नहीं है तो उसकी शिकायत ऊपर तक की जा सकती है। वहीं कूड़ा वाहन के आगमन पर तत्पर होकर घर का कूड़ा उस वाहन पर ही डालना चाहिए। कूड़ा वाहन नहीं पहुंचने की स्थिति में उसकी शिकायत नगरपालिका और नगर पंचायत में की जा सकती है। इसके बावजूद भी यदि मोहल्ले में कूड़ा वाहन नहीं पहुंचता है तो यह शिकायत डीएम स्तर पर भी की जा सकती है। स्वयं प्रधानमंत्री ने साफ-सफाई पर विशेष जोर दिया है। मुख्यमंत्री भी इसके प्रति काफी गंभीर हैं। वहीं अधिकारियों की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं देखा जा रहा है। उनकी तरफ से कभी भी साफ-सफाई को एक मुहिम के तौर पर नहीं चलाया जाता। तहसील और ब्लाक स्तर के अधिकारी भी इस मामले में काफी लापरवाह हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी जरूरी है जागरूकता
साफ-सफाई के मामले में सबसे ज्यादा जागरूकता की जरूरत गांवों में है। प्रधानमंत्री ने जिन गांवों को आदर्श ग्राम की संज्ञा दी, उसे लोगों ने केवल विकास से जोड़ कर ही देखा। जबकि असल में आदर्श ग्राम वे ही हैं जो साफ-सफाई के मामले में अलग स्थान रखते हैं। अधिकांश गांवों में लोग अपने घरों का पानी सड़क पर गिराते हैं। वे चाहें तो उसकी व्यवस्था कर सकते हैं ¨कतु ऐसा वे नहीं करते। इसके लिए भी वे किसी अन्य का इंतजार करते हैं। शौच के मामले में भी कई गांवों का सड़क किनारे शौच जाने का इतिहास है। घर में शौचालय होने के बावजूद कुछ की यह आदत बन चुकी है कि वे बाहर ही शौच को जाते हैं। गांव में प्रधान भी सफाई के मामले में उतना जागरूक नहीं है। जबकि पंचायती राज व्यवस्था के तहत हर पंचायत का यह अहम कार्य है कि गांव के हर टोले-मोहल्ले, सड़कें, गलियां पूरी तरह साफ दिखें। बहुत से स्थानों पर सामाजिक युवाओं ने साफ-सफाई का बीड़ा उठाया है। उनके कार्य की सराहना सर्वत्र हो रही है। वहीं हर पंचायत में सफाई कर्मी घर बैठ कर अपना वेतन ले रहे हैं। प्रधान भी इस मामले में मजबूर इसलिए हैं कि इन सफाई कर्मियों को उच्च अधिकारियों का सह मिलता है।
सफाई पर सचेत नहीं अधिकारी
जासं, मालीपुर : केंद्र एवं प्रदेश की सरकार एक ओर जहां स्वच्छता अभियान को मुकाम तक पहुंचाने के लिए जन जन को भागीदार बनाने के भगीरथ प्रयास में जी जान से जुटी हुई है वहीं छितौना स्थित तूर्तीपार पंप कैनाल की ¨सचाई कालोनी विभागीय उच्चाधिकारियों की उपेक्षा से स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ा रही है। सफाई के अभाव में पूरे कालोनी में झाड़ झंखाड़ से जंगली जानवरों एवं विषैले जंतुओं का बसेरा बन गया है। गेस्ट हाउस भूत बंगला बन गया है। विगत देढ़ दशक से डाक बंगले की रंगाई पुताई तक नहीं हुई है।