भगवान का ही स्वरूप है भागवत महापुराण : राधेश्याम जी शास्त्री
जागरण संवाददाता, बलिया : भागवत महापुराण साक्षात भगवान का ही एक स्वरूप है। कृष्ण भगवान अपने म
जागरण संवाददाता, बलिया : भागवत महापुराण साक्षात भगवान का ही एक स्वरूप है। कृष्ण भगवान अपने माता-पिता के चरणों में सिर रखकर प्रणाम करते हैं, अत: हम सब को भी अपने माता-पिता सास-ससुर बड़े जनों का सम्मान आदर करना चाहिए। उक्त उद्गार टाउन हाल के मैदान में आयोजित सात दिवसीय श्रीमछ्वागवत कथा के द्वितीय दिन वृंदावन धाम से पधारे पंडित राधेश्याम जी शास्त्री के हैं। उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित को जब श्राप लगा कि आज के सातवें दिन तक सर्प डसेगा, तो राजा राजपाट, परिवार को छोड़कर सुकताल में गंगा तट पर चले गए, वहीं पर श्री सुखदेव जी का आगमन हुआ। राजा परीक्षित के कल्याण के लिए सुखदेव जी महाराज ने भागवत कथा का श्रवण कराया, चतुश्लोकी की चर्चा की, भागवत की चौथी श्लोकी भागवत का विस्तार ही 18 हजार श्लोकों के रूप में हुआ है। उन्होंने भागवत कथा के तृतीय स्कंध में विदुर जी एवं उद्धव जी का संवाद भी कराया। बाद में विदुर और मैत्रेय संवाद की कथा सुनाई। बताया कि जब तक जीव मनुष्य की आशक्ति संसार में रहेगी, तब तक जीव का संसार में बार-बार जन्म मरण होता रहेगा। अत: जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए संसार की आशक्ति का त्याग कर प्रभु शरणागति स्वीकार करनी चाहिए। श्री शिव सती चरित्र की कथा में समझाया कि धर्म यज्ञादि किसी को नीचा दिखाने के लिए किया जाए तो वह अधर्म और पाखंड की श्रेणी में आता है। अत: धर्म किसी से बदला लेने के लिए नहीं स्वयं अपने को बदलने के लिए होता है। कथा के अंत मे संगीतमयी भजन हुआ जिसमें श्रद्धालु झूमते रहे और पूरा पंडाल राधे-राधे से गुंजयमान होता रहा।