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महिला सशक्तिकरण का सशक्त हस्ताक्षर हैं कनक चक्रधर

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By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2020 04:41 PM (IST)Updated: Sun, 08 Mar 2020 04:41 PM (IST)
महिला सशक्तिकरण का सशक्त हस्ताक्षर हैं कनक चक्रधर
महिला सशक्तिकरण का सशक्त हस्ताक्षर हैं कनक चक्रधर

अजीत पाठक

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जागरण संवाददाता, बलिया: जिले का शायद ही कोई ऐसा बंदा हो जो कनक चक्रधर से परिचित न हो। पिछले 13 वर्षों से जिले के भावी कर्णधारों का भविष्य सुधारने में जुटी कनक की कामयाबी का कद आज आसमान छू रहा है। अपनी लगनशीलता व समर्पण के दम पर प्रदेश में जिले का नाम रौशन कर रही हैं। लक्ष्य के प्रति समर्पण व जीतोड़ मेहनत का ही नतीजा है कि कनक के हौसलों की उड़ान आज परवान चढ़ रही है। यही नहीं उनके टीमवर्क ने जिले की खो-खो टीम देश में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है।

कनक चक्रधर को सफलता खैरात में नहीं मिली। इसके लिए न सिर्फ जमकर पसीना बहाया बल्कि पारिवारिक बहिष्कार तक झेलना पड़ा है। उनका उदार व्यक्तित्व, जीवन शैली व संघर्ष गाथा ही उनको महिला सशक्तिकरण का सशक्त हस्ताक्षर बनाती है। कुछ अलग करने का नेचर ही इनकी पहचान है। डेढ़ दशक पूर्व स्नातकोत्तर की छात्रा के साथ हुई एक घटना जिदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। मोहल्ले की गलियों में बच्चों के एक समूह को रोटी मांगते देख कनक की रूह कांप गई। यह महज इत्तेफाक नहीं बल्कि रोज की बात हो गई। करीब आधा दर्जन बच्चों का भविष्य सुधारने का संकल्प ले उनका नामांकन प्राथमिक विद्यालय में कराने को ठाना और नजदीकी प्राथमिक विद्यालय पहुंच गई। लेकिन वहां की शिक्षिका का बर्ताव व इंकार ने पलभर में अरमानों पर पानी फेर दिया। इस असफलता ने कनक को हताश व मायूस तो किया लेकिन हार नहीं मानी। उस घटना ने इनकी दिशा बदल दी।

अन्तत: मलीन बस्ती के इन बच्चों को घर पर शिक्षित करने का काम शुरू किया लेकिन यहां भी पिता का विरोध झेलना पड़ा। यहां तक कि पिता ने घर छोड़ देने का फरमान जारी कर दिया। बावजूद अपने काम में पूरी तन्मयता से जुटी रहीं। डेढ़ माह के अथक प्रयास के बाद उन बच्चों को न सिर्फ वेल अप टू डेट कर दिया बल्कि सामान्य बच्चों से भी आगे कर दिखाया। इसी बीच साल 2006 में प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक नियुक्त हो गईं। फिर क्या था उनकी रफ्तार और तेज हो गई। मलीन बस्ती के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के का प्रस्ताव तत्कालीन बीएसए संजय कुशवाहा के समक्ष रखा। ना नूकुर के बाद अधिकारी का सहयोग मिला और बीएसए के प्रयास से पुलिस लाइन में प्राथमिक विद्यालय की नींव रखी गई। साथ ही ऐसे बच्चों को तालीम देने की जिम्मेदारी कनक चक्रधर को सौंप दी गई। शनै:-शनै ही सही लेकिन सकारात्मक बदलाव दिखने लगा। उनका समर्पण व जज्बा देख विभाग ने उनके कंधे पर जिला गाइड कैप्टन की नई जिम्मेदारी सौंप घाघरा किनारे बसे रेवती क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय दतिवढ़ पर तैनात कर दिया। वहां भी कनक ने सफलता की लंबी लकीर खींच दीं। इनके निर्देशन में खेल के क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक होनहार सामने आए। जो जिला से लेकर प्रदेश तक करीब 25 अलग-अलग खेल प्रतियोगिताओं में सफलता का झंडा लहरा कर न सिर्फ अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया बल्कि कनक की निष्ठा को भी नई ऊंचाई प्रदान कर दी। शायद इसी का नतीजा रहा कि उन्हें प्रदेश खो खो संघ का संयुक्त सचिव बना कर प्रतिभा निखार की अपेक्षा गई। यहां भी कनक अपेक्षाओं पर खरी उतरीं। महिलाओं व बच्चों के विकास के लिए समर्पित कनक ने राह निष्कंटक बनाने के लिए आजीवन शादी ने करने का संकल्प ले लिया। महिलाओं की वर्तमान दशा पर कनक चक्रधर अक्सर कहा करती हैं कि महिलाओं को अज्ञानता, अशिक्षा, कूपमंण्डुकता, संकुचित विचार और रूढिवादी भावनाओं के गर्त से निकालकर ही प्रगति के पथ पर लाया जा सकता है। आवश्यकता है महिलाओं को तात्कालिक घटनाओं व क्रियाकलापों से अवगत कराने की ताकि उनमें आर्थिक, सामजिक, शैक्षिक व राजनैतिक चेतना पैदा हो। बेशक शिक्षा का दायरा बढ़ा है लेकिन अभी भी बहुत करना बाकी है। समाज में व्याप्त रूढि़वादिता व हठधर्मिता को त्याग कर ही महिलाओं के सामजिक उत्थान का संकल्प पूरा किया जा सकता है।


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