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(चुनाव)बागी धरती की राजनीति में भी पुरुषवादी सोच ही हावी

आधी आबादी के सम्मान की बात राजनीतिक से लेकर सामाजिक संगठनों तक चहुंओर की जाती है। नारी सम्मान की चर्चा पर हर संगठनों की बुलंद आवाज निकलती है। आज कल दौर लोक सभा चुनाव का है। ऐसे में राजनीतिक में आधी आबादी की भागीदारी महिलाओं के लिए अहम मुद्दा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 05:07 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 05:07 PM (IST)
(चुनाव)बागी धरती की राजनीति में भी पुरुषवादी सोच ही हावी
(चुनाव)बागी धरती की राजनीति में भी पुरुषवादी सोच ही हावी

-------------- रंजना सिंह

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-------- जागरण संवाददाता, बलिया : आधी आबादी के सम्मान की बात राजनीतिक से लेकर सामाजिक संगठनों तक चहुंओर की जाती है। नारी सम्मान की चर्चा पर हर संगठनों की बुलंद आवाज निकलती है। आज कल दौर लोकसभा चुनाव का है। ऐसे में राजनीति में आधी आबादी की भागीदारी महिलाओं के लिए अहम मुद्दा है। अभी हम नजर दौड़ा रहे हैं बलिया संसदीय क्षेत्र पर। लोक सभा क्षेत्र बलिया की बात करें तो यहां आधी आबादी के सम्मान में राजनीतिक दलों के बीच गगन भेदती आवाज स्वत: धरातल पर आ जाएगी। यानी इस पंक्ति से राजनीतिक क्षेत्र में बागी भूमि की नारी समाज की भागीदारी का खाका स्वत: स्पष्ट हो जा रहा है। परिणाम यह कि बागी धरती की राजनीति में पुरुषवादी सोच अभी भी हावी है।

जनाधार वाले किसी दल ने महिला को नहीं दिया टिकट

1957 से लेकर अब तक के लोकसभा चुनावों पर नजर दौड़ाएं तो बलिया में कभी भी महिला को नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय की पत्नी सुधा राय प्रत्याशी थीं लेकिन उस समय कांग्रेस का जनाधार नहीं था। उन्होंने अपने दम पर 13,501 वोट प्राप्त किया था और वह पांचवें स्थान पर रहीं। लोकसभा में नगर के कुछ महिलाओं से बात करने पर उर्वशी सिंह, शशिबाला सिंह, उषा रानी, सुमन श्रीवास्तव कहती हैं कि कभी भी जनाधार वाले किसी दल ने बलिया में किसी महिला को टिकट नहीं दिया। जबकि हर मामले में महिलाओं का बराबरी की हिस्सेदारी है।

लोकसभा चुनाव का आधार मान बलिया लोकसभा क्षेत्र की एक पड़ताल करें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 17,92,420 है, जिसमें महिला मतदाता 8,07,892 हैं जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 9,84,465 है। पूरे लोकसभा में महिलाएं पुरुषों से 1,76,571 कम हैं। किसी भी दल के नेता को सांसद बनाने में वह महिलाएं भी है जो अहम भूमिका निभाती है, लेकिन मलाल कि उन्हें लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिलता। मतलब स्पष्ट है आजादी से लेकर अब तक बलिया संसदीय सीट पर बागी भूमि की आधी आबादी रही उपेक्षित। क्या यही है राजनीतिक में नारी के प्रति सम्मान की भावना। 1942 की क्रांति में अहम भूमिका निभाकर भृगु की नगरी बलिया को स्वतंत्रता से पांच वर्ष पूर्व ही आजादी की लौ से आलोकित करने वाली यहां की नारी शक्ति की राजनीतिक क्षेत्र में क्या उपेक्षा ही है इनके सम्मान की परिभाषा।


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