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दो दशकों में किसी को लगातार दो बार नहीं मिला संसद पहुंचने का मौका

लोकसभा चुनाव की डुगडुी बजते ही मतदाताओं के मिजाज को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। देश के अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं का मन-मिजाज चाहे जो रहा हो लेकिन सलेमपुर लोकसभा के मतदाता थोड़ा दूजे किस्म के हैं। अतीत पर गौर करें तो एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जो मतदाताओं के प्रौढ़ता को बताने के लिए पर्याप्त है। इतिहास कहता है कि साल 1991 के बाद से किसी भी प्रत्याशी को दोबारा इस सीट से प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 04:53 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 04:53 PM (IST)
दो दशकों में किसी को लगातार दो बार नहीं मिला संसद पहुंचने का मौका
दो दशकों में किसी को लगातार दो बार नहीं मिला संसद पहुंचने का मौका

जागरण संवाददाता सिकन्दरपुर (बलिया) : लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बजते ही मतदाताओं के मिजाज को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। देश के अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं का मन-मिजाज चाहे जो रहा हो लेकिन सलेमपुर लोकसभा के मतदाता थोड़ा दूजे किस्म के हैं। अतीत पर गौर करें तो एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जो मतदाताओं के प्रौढ़ता को बताने के लिए पर्याप्त है। इतिहास कहता है कि साल 1991 के बाद से किसी भी प्रत्याशी को दोबारा इस सीट से प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला।

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बदलाव में विश्वास रखने वाले यहां के मतदाता हर चुनाव में कुछ अलग करते रहे हैं। पहले व दूसरे आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार विश्वनाथ राय को लगातार दो बाद लोगों ने अपना प्रतिनिधि चुना। वहीं 1962, 1967 व 1971 के चुनावों में जीत प्राप्त कर इस लिस्ट में शामिल होने वाले दूसरे कांग्रेसी नेता विश्वनाथ पांडेय रहे। 1977 में आम चुनाव में जनता पार्टी प्रत्याशी रामनरेश कुशवाहा को लोगों ने सदन की राह दिखाई। 1980 व 84 के चुनाव में कांग्रेस के राम नगीना मिश्र इस सीट से लगातार दो बार प्रतिनिधित्व करने वाले अंतिम कांग्रेसी नेता थे। इसके बाद का राजनीतिक समीकरण वक्त के साथ करवट लेने लगा। 1989 व 1991 में क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करने का मौका जनता दल के हरि केवल प्रसाद को मिला। 1996 में जनता दल का किला ध्वस्त करने का श्रेय समाजवादी नेता हरिवंश सहाय को जाता है। 1998 में यहां से पुन: समाजवादी पार्टी को फतह मिली लेकिन चेहरा दूसरा रहा।

इस बार हरिकेवल प्रसाद को लोगों का समर्थन हासिल हुआ। 1999 के आम चुनाव में बसपा उम्मीदवार के रुप में बब्बन राजभर यहां से जीतने में कामयाब रहे। साल 2004 में सपा के कद्दावर नेता तथा क्षेत्र से चार बार सांसद रहे हरिकेवल प्रसाद एक बार फिर सलेमपुर के रास्ते संसद पहुंच गए। बसपा ने 2009 के चुनाव में पिछली हार का बदला लिया और यहां से रमाशंकर राजभर विजई हुए। 2014 में मोदी लहर में रविद्र कुशवाहा (भाजपा ) ने रिकार्ड मतों से जीत कर नया कीर्तिमान रच दिया। सन 1991 के बाद से किसी भी दल का प्रत्याशी लगातार दो बार जीत का स्वाद नहीं चख पाया है। हालांकि अभी किसी दल ने प्रत्याशी की घोषणा नहीं किया है लेकिन अतीत के आइने से यह देखना दिलचस्प होगा कि इतिहास अपने का दोहराता है या फिर कोई नई इबारत लिखी जाती है।

इनसेट

पिता-पुत्र ने की पांच बार अगुवाई

सलेमपुर लोकसभा की सीट पर पांच बार एक ही परिवार के कब्जे में रही है। निवर्तमान सांसद रविन्द्र कुशवाहा के अलावा उनके पिता हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा 1989 में जनता दल के टिकट पर पहली बार देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे। उसके बाद वे कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। इन्हें वर्ष 1991, 1998 व 2004 में भी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।


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