मैन्यूफैक्चरिग सेक्टर को प्रोत्साहन मिला तो मंदी पर लगेगी लगाम
मैन्यूफैक्चरिग सेक्टर के प्रोत्साहन से मंदी पर लगेगी लगाम
जागरण संवाददाता, बलिया : भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ विशेष सेक्टरों में मांग की कमी के चलते मंदी की स्थिति बनती दिख रही है। वस्तुत: एक निरंतर अवधि के दौरान सामान्य आर्थिक गतिविधियों में कमी आना या व्यापार में संकुचन एक व्यापारिक गतिहीनता है। इस दौरान कई आर्थिक संकेतक परिवर्तित होते हैं मसलन उत्पादन, रोजगार, निवेश, उपभोग व घरेलू आय में कमी होने लगती है। जीडीपी की घटती दर, घटता निवेश और औद्योगिक उत्पादन कहीं न कहीं मंदी का संकेत कर रहा है। इससे जन सामान्य के बीच भय फैलना स्वाभाविक भी है।
उक्त बातें कुंवर सिंह पीजी कालेज में अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डा. रामकृष्ण उपाध्याय ने कहीं। उन्होंने कहा कि आटोमोबाइल, बैंकिग व रियल स्टेट के हालात को देखकर सरकार को नए उपायों पर विचार करना चाहिए। यथानीति नियंताओं को जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिग की हिस्सेदारी बढ़ाना होगा। आश्चर्य की बात तो यह है कि मेक इन इंडिया का नारा देने के बाद भी मैन्यूफैक्चरिग सेक्टर की हिस्सेदारी अभी तक 15 फीसद के आस-पास ही है। इस प्रकार निर्यात बढ़ाने की दिशा में पहल करनी होगी। विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों को तेज किया जाए ताकि वस्तुओं की मांग बढ़ सके। इसके अलावा सरकार को लोगों से लघु बचत करने के लिए प्रेरित करने भी जरूरत है। घटते रोजगार के मद्देनजर सार्वजनिक क्षेत्र में विकास को गति देने के साथ ही ग्रामीण ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी होगी। इससे रोजगार में वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था का पहिया गति पकड़ता दिखेगा। हालांकि लगातार घटती मांग को देखते हुए बैंको ने आटोमोबाइल, एफएमसीजी, टेक्सटाइल और इलेक्ट्रानिक्स वस्तुओं की मांग बढ़ाने के लिए लोन की ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दिया है, लेकिन यह पर्याप्त कदम नहीं माना जा सकता है।
इसके अलावा उद्योग जगत के प्रति नकारात्मकता फैलाने वाले लोगों को भी नियंत्रित करने की दरकार है। खुद प्रधानमंत्री भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उद्योग जगत व उद्यमियों को हतोत्साहित करने के लिए जानबूझ कर विपरीत माहौल तैयार किया जा रहा है। इससे बचने की जरूरत है। वर्तमान हालात को सुधारने व पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए तात्कालिक नीतियों में सुधार करना होगा। इसके लिए सरकार को न सिर्फ निजी निवेश का दायरा बढ़ाना होगा, बल्कि उद्योग जगत को उत्साहित करने के लिए उन पर पड़ रहे बोझ में कमी भी करनी होगी।
छोटे कारोबारियों को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है। संरचनात्मक विकास और परिवर्तन के दम पर ही बाजार की स्थिति को नियंत्रित करने के साथ ही रोजगार सृजन संभव हो सकेगा और आम आदमी की क्रयशक्ति भी बढ़ेगी तभी बाजार की गतिहीनता समाप्त हो सकेगी। इस नीतिगत परिवर्तन के अलावा किसी भी अर्थव्यवस्था में बाजार/व्यक्ति का मूड विशेष महत्वपूर्ण होता है। कारोबारी समुदाय के साथ साथ आम आदमी को इस अस्थाई चुनौती से घबराने के बजाय छोटी बचतों की ओर ध्यान देने की जरूरत है। अल्प बचत से भी बाजार की बाजार की इस अस्थाई व्यवस्था को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।