गरीबी से उबरने गए गुजरात, लौटे तो खींच ले गई मौत
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जागरण संवाददाता, बैरिया (बलिया) : अपना घर, गांव और जिला ज्वार किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन गरीबी दूर करने , घर को आíथक तंगी से उबारने के लिए यूपी-बिहार के लोग भारी संख्या में महानगरों में जाते हैं। वहां जी- तोड़ मेहनत कर अपने घर की स्थिति सुधारते हैं, लेकिन कोरोना की महामारी ने बहुत से कामगारों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। सभी कामगार महानगरों से लगातार अपने घर वापस आ रहे हैं। तहसील क्षेत्र के मधुबनी निवासी कामगार मुनीब साह (30 वर्ष) भी गुजरात से अपने गांव वापस आ रहे थे लेकिन वह घर पहुंचते उससे पहले ही मौत उन्हें अपनी ओर खींच ले गई।
पांच भाइयों में सबसे छोटे मुनीब साह गुजरात के सूरत के पास बुधना में एक साड़ी मिल में काम करते थे। पत्नी प्रियंका भी उसके साथ रहती थी। कोरोना संक्रमण के बाद घोषित लॉकडाउन के कारण साड़ी मिल बंद हो गई। इसके कारण मुनीब की कमाई का जरिया खत्म हो गया। कुछ दिनों तक कमाए हुए पैसे से पति-पत्नी ने इस उम्मीद में गुजर बसर किए कि मिल खुल जाएगी तो फिर उनके परिवार की गाड़ी चलने लगेगी, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के कारण उनकी परेशानी बढ़ने लगी तो पति-पत्नी दोनों ने घर आने के लिए आवेदन दिया।
श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वे जौनपुर उतरे, वहां से रोडवेज बस से बलिया के लिए चले। इस दरम्यान मुनीब अपने सीट पर सो गए, पत्नी बगल में ही बैठी थी। बलिया पहुंचने पर पत्नी ने जब अपने पति को उतरने के लिए जगाना शुरू किया तो मुनीब का पूरा शरीर सीट पर ही लुढ़क गया। यह देख पत्नी रोने लेगी। आसपास के लोग उन्हें उठाना चाहे लेकिन मुनीब तो सदा के लिए इस लोक से विदा हो चुके थे। कोरोना ने दिया गहरा दर्द, घर पर कोहराम
मृतक मुनीब के के परिजनों को कोरोना ने गहरा दर्द दिया है। जब वह गुजरात से ट्रेन से चले तो घर के सभी खुश थे, इसलिए कि जिदगी रहेगी तो सबकुछ सुधर जाएगा, मुनीब की पत्नी प्रियंका ने बताया कि घर पर यह सोच कर चले थे कि जब तक कोरोना का यह शोर नहीं थम जाता तब तक गांव में रह कर ही कोई काम करेंगे, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। घर पर गांव के लोग भी बारी-बारी से पहुंच रहे थे।