मेले की जलेबी ने तो करा दी बेइज्जती
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डॉ.रवीन्द्र मिश्र
महर्षि भृगु बाबा की धरती पर लगने वाला ऐतिहासिक ददरी मेला अपने आप में अनूठा है। गांव-गिरांव से लगायत आधुनिकता की परंपरा समेटे इस मेले को हर कोई अपनी यादों में समेटना चाहता है। पड़ोसी राज्यों व आसपास के जनपदों के लोग छुट्टी लेकर परिवार के साथ मेला देखने आते हैं।
मेला देखने आने वाले रिश्तेदारों को लेकर नागरिक भी कुछ ज्यादा ही परेशान है। अभी मेला लगे तीन दिन भी नहीं हुए और रिश्तेदारों का तांता लग गया। रोज किसी न किसी के आने से नाराज हैं नागरिक की पत्नी। कुछ सोच में दरवाजे पर बैठा है नागरिक..तभी उसके साढ़ू अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ दरवाजे पर दस्तक देते हैं। उन्हें देखते ही नागरिक समझ जाता है कि आज भी पत्नी कुछ गुस्सा जरूर करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पत्नी तो अपनी बहन को देखते ही इतना खुश हुई कि 10 मिनट में ही सत्कार के सारा इंतजाम कर दिए जबकि ऐसी प्रस्तुति अन्य मेहमानों के आगमन के समय नहीं होती थी।
खातिरदारी के बाद नागरिक अचानक आने का कारण पूछता है तो उसके साढ़ू गोवर्धन कुछ कहते इससे पहले ही उनकी पत्नी दुलरिया बोल उठती है। अचानक आपका खर्चा कराने आएं हैं जीजा जी। अखबार में ददरी मेला के विषय में पढ़कर प्लान बनाया कि इस बार ददरी मेला जरूर देखेंगे। नागरिक चेहरे पर झूठी मुस्कान बिखेरते हुए जवाब में बस इतना ही कहता है कि कोई बात नहीं, घूमना चाहिए। हर दिन मेरे यहां कोई न कोई रिश्तेदार आ ही रहे हैं। उनसे मिलकर बहुत खुशी होती है। बातचीत में दो घंटे का समय बीत जाता है और सभी मेला घूमने की तैयारी करने लगते हैं।
एक ई-रिक्शा में सभी नहीं आ पाए तो नागरिक को दो ई-रिक्शा करना पड़ा। नागरिक की आíथक कमर घर से ही टूटनी शुरू हो गई। मेला पहुंचते ही दूर से ही आवाज आती है.हरेक माल 50 रूपये..20 रूपये। सामने चर्खी देख बच्चे उछलने लगते हैं। साढू गोवर्धन और नागरिक चरखी के पास खड़े हैं और बातचीत में मग्न। उधर नागरिक और उसके साढ़ू की पत्नी दोनों मीना बाजार में ऐसे खरीदारी कर रही हैं, मानों दुकानों से सभी सामान खरीद लेंगी। इधर नागरिक खर्च होते देख अपनी पत्नी पर मन ही मन गुस्सा कर रहा है। एक घंटे के बाद सभी एक जगह जमा होते हैं। इसके बाद कुछ खाने के लिए सभी साथ चलते हैं, तभी एक दुकानदार चिल्ला कर नागरिक को अपनी दुकान पर आने का आग्रह करता है। यह आग्रह प्रफुल्लित कर देता है नागरिक को। वह यह सोचकर गदगद है..चलो मेले में कोई दुकानदार तो है पहचानने वाला। साढू के सामने अचानक अपना कद बढ़ जाने से मन ही मन बहुत खुश है नागरिक।
सरहज (साली) के सामने अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नागरिक दुकानदार भोला से कहता है-देखो भाई जलेबी अच्छा वाला खिलाना, काफी दूर से ये लोग ददरी मेला घूमने आए हैं। उधर दुकानदार भोला जलेबी और छोला देने की तैयारी में जुटता है और इधर नागरिक अपनी साली से ददरी मेले के बखान में जुट जाता है। नागरिक की बात सुनकर साली मंद-मंद मुस्कुराती है। तभी दुकानदार भोला जलेबी और छोला लेकर आता है। सभी खाने लगते हैं, मुंह में पहला निवाला डालते ही नागरिक की साली दुलरिया बोल पड़ती हैं.जीजा जी, लागत.बा..बासी जलेबिया ही गर्म कर देहलेबा दुकानदार। साली की शिकायत से नागरिक का सिर शर्म से झुक जाता है, दुकानदार भोला को डांटते हुए कहता है.. का हो तहरा इहो ना बुझाइल ह, तू त हमार सब इज्जते नाश कर दिहलअ। इस पर साली दुलरिया मुस्कुराते हुए कहती हैं.कोई बात नहीं जीजा जी, चलिए चलकर घर पर ही कुछ अच्छा बना लेते हैं। इसी बहाने बलिया की और तारीफ भी आपसे सुन लेंगे। बेचारा नागरिक करता भी तो क्या। मन मारकर सभी को लेकर घर वापस हो जाता है, इस सोच के साथ कि आज तो जेब पर डांका पड़ना तय है।