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कभी हमारे मन की बात भी सुन लो साहब

देश की नैया को ये खेता हमारे देश में हर बशर इस का लहू पीता हमारे देश में तन से लिपटा चीथड़ा है पेट से पत्थर बंधा इस तरह मजदूर जीता है हमारे देश में ताज इस का है अजन्ता-एलोरा इसी की है फिर भी ये फुटपाथ पर सोता हमारे देश में। किसी शायर की यह पक्तियां मजदूरों पर सटीक बैठती हैं जो

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 May 2019 06:00 PM (IST)Updated: Wed, 01 May 2019 09:15 PM (IST)
कभी हमारे मन की बात भी सुन लो साहब
कभी हमारे मन की बात भी सुन लो साहब

जागरण संवाददाता, बलिया : देश की नैया को ये खेता हमारे देश में, हर बशर इस का लहू पीता हमारे देश में, तन से लिपटा चीथड़ा है पेट से पत्थर बंधा,

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इस तरह मजदूर जीता है हमारे देश में, ताज इस का है अजंता-एलोरा इसी की है, फिर भी ये फुटपाथ पर सोता हमारे देश में। किसी शायर की यह पंक्तियां मजदूरों पर बिलकुल सटीक बैठती हैं जो जीवन भर जिंदगी के मायने से अनजान दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करता रहता है।

काम मिला तो ठीक, नहीं मिला तो कोई गम नहीं। लोगबाग मजदूर दिवस को सेलिब्रेट करते हैं, लंबे-चौड़े भाषण दिए जाते हैं, लेकिन मजदूर क्षुधा की आग बुझाने की आपा-धापी में लगा रहता है। बुधवार को शहर की हाइडिल कालोनी स्थित बिजली विभाग के स्टोर/वर्कशॉप में दिहाड़ी मजदूरी के सहारे जीवन गुजारने वाले मजदूरों के बीच दैनिक जागरण की टीम पहुंची जहां चुनावी चौपाल का आयोजन किया गया। भरी दोपहरी में मैले-कुचैले लिबास में लिपटे, पसीने से तर-बतर, चेहरे पर थकावट व उदासी के भाव के साथ आंखों में परिवार की चिता लिए इन मजदूरों को किस्मत से नाराजगी तो थी ही राजनीति के कद्रदान भी इनके निशाने पर रहे।

चौपाल में सरकारों के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए मजदूरों ने कहा कि भले ही हमारे नाम की रोटी सेंकी जाती हो, लेकिन मिलती तो किसी माननीय को ही है। सरकारी योजनाओं से पूरी तरह अनभिज्ञ मेहनतकश मजदूरों ने कहा कि मन की बात तो खूब हुई कभी हमारे मन की बात भी सुनी जाती तो कितना अच्छा होता, लेकिन इसकी जहमत किसी ने नहीं उठाई। वर्षों से दिहाड़ी मजदूरी करने वालों ने एक-एक कर सब पर सवाल दागा। कहा कि गरीबों का नेता तो सभी बनते हैं लेकिन काम अमीरों का होता है। प्रतिदिन 12 घंटे की मेहनत के बाद उतना भी कमाई नहीं हो पाती कि परिवार का पेट पल सके। सोलह मजदूरों के एक समूह ने बताया कि कभी-कभी तो 100 रुपये तक के लाले पड़ जाते हैं। धन से गरीब, लेकिन मन से अमीर इन मजदूरों ने प्रत्येक पहलू पर खुल कर बात की। कहा कि वर्षों से विभाग की सेवा में लगे हैं, इसके बावजूद किसी ने हमारी सुधि नहीं ली। ठेकेदारी के चक्रव्यूह में फंसकर दुर्दिन देख रहे हैं। अब तो किसी पर विश्वास ही नहीं होता। सब लालीपॉप है साहब, गरीबों को कुछ नहीं मिलता।

मतदाताओं से अपील

स्थानीय समस्याओं पर ध्यान देने वाले नेता को ही दें वोट। प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे

-रोजगार की व्यवस्था की जाए।

-चिकित्सा व्यवस्था ठीक हो।

-न्यूनतम मजदूरी तय की जाए। प्रमुख राज्यस्तरीय मुद्दे

-घूसखोरी पर रोक लगे।

-झूठे नेताओं का हो बहिष्कार।

-गरीबों को योजनाओं का मिले लाभ। प्रमुख स्थानीय मुद्दे

-विभागों से ठेकेदारी व्यवस्था समाप्त हो।

-गरीबों का उत्पीड़न बंद हो।

-मजदूरों के लिए हो काम की व्यवस्था।


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