Move to Jagran APP

चुनाव के तरीके बदले तो थम गए वह देशी स्वर

महासमर---चुनाव के तरीके बदले तो थम गए वह देशी स्वर

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 11:44 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 11:44 PM (IST)
चुनाव के तरीके बदले तो थम गए वह देशी स्वर
चुनाव के तरीके बदले तो थम गए वह देशी स्वर

-तब भोजपुरी धुनों पर गीत बना कर मतदाताओं को लुभाती थी मंडली

loksabha election banner

-चुनाव आयोग की हनक व नियमों में बदलाव से जनता के हाथ ताकत लवकुश सिंह

--------- जागरण संवाददाता, बलिया : देश में 67 वर्ष के भीतर देश की राजनीति में बहुत कुछ बदला है। देश के नेता बदले तो जनता की सोच भी बदल गई। इतना सब होने के बाद भला चुनाव का तरीका पुराना क्यों रहता। चुनाव आयोग ने चुनाव के तमाम तरीके भी बदल दिए। लेकिन जो लोग तब के लोकसभा चुनाव का देख चुके हैं उन्हें अभी के समय का चुनाव कुछ अच्छा नहीं लगता। अब वह माहौल गायब हो गया, अब न पोस्टर, न बिल्ले हैं। पुराने दिनों को याद कर आज भी चुनावी परजीवियों के लार टपकने लगते हैं, लेकिन चुनाव आयोग की कड़ाई ने सारा गुड़-गोबर कर दिया है। प्रत्याशी फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं तो वोटों के तथाकथित ठेकेदार इस रसदार मौसम में भी मायूस नजर आ रहे हैं। नेता लग्जरी गाड़ियों व हेलीकाप्टर तक पहुंच चुके हैं। वहीं बैलेट पेपर की तरह चुनाव प्रचार के वे तमाम पुराने अंदाज भी बदल गए हैं। उनकी जगह अब फिल्मी कलाकार, भाड़े के कवि व खिलाड़ी ले चुके हैं। वहीं नेता या समर्थक फेसबुक व ट्वीटर पर ही ज्यादा प्रचार कर रहे हैं। पोस्टर की जगह कार्यकर्ताओं के कंधों पर पार्टी का गमछा या सिर पर पार्टी के रंग की टोपी ही यह बताती है कि कौन किस दल का कार्यकर्ता है। यह सब चुनाव आयोग के हनक से ही संभव हो सका है। अब हर चुनाव में नेता या उनके समर्थक भी बचकर ही रहना चाहते हैं। -इनसेट-

गायकों की मंडली घुम-घुम करती थी प्रचार

गांव के लोगों को याद है वह दौर भी जब जब वोट मांगने के लिए नेता घर-घर पैदल ही भटकते थे। वहीं बलिया की माटी पर तो भोजपुरी में यह गीत हर साल सुनाई देते थे-बैरिया में सुननी, हल्दी में सुननी, फेफना व बलिया में लोग इहे चिल्लाता..वोट अबकी फलां के दियाता, इस गीत के माध्यम से प्रचार कर्ता जिस गांव में जाते गांव के नामों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते जाते। लगभग दलों की प्रचार मंडली तरह-तरह के गीतों से मतदाताओं को रिझाने का काम करती थी। उनके गीतों में खुद के दल की बड़ाई व विपक्षी दलों पर व्यंग्य भी छिपे होते थे। बैरिया विधान सभा के जयप्रकाशनगर निवासी बुजुर्ग दरोगा सिंह, संजय साह आदि बताते हैं कि चुनाव के दौरान वैवाहिक व छठ गीतों के तर्ज पर भी चुनावी गीत खूब होते थे। बैलगाड़ी, रिक्शा, जीप ट्रैक्टर से इस तरह के प्रचार होते थे। तब मतदाताओं के आनंद का भी ठिकाना नहीं था। चुनाव प्रचार करने वाली मंडली जब विभिन्न गांवों में पहुंचती तो लोग कुछ देर और..कुछ देर और, कह कर काफी देर तक उनके देशी अंदाज वाले व्यंग्यात्मक चुनावी गीतों को सुनते थे।

-इनसेट--

टीएन शेषन के समय से आया बदलाव

इस बड़े बदलाव के देन माने जाते हैं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन। उनसे पहले बहुतों को यह भी नहीं पता होता था कि देश में मुख्य चुनाव आयुक्त के पास चुनाव के दौरान किस तरह की शक्तियां होती हैं। लेकिन 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद टीएन शेषन ने ही चुनाव सुधार के क्रम में बड़ा काम किया। 1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को जो देख चुके उन्हें याद है, वह दौर जब शेषन ने करीब 50,000 अपराधियों को ये विकल्प दिया कि या तो वो अग्रिम जमानत ले लें या अपने आप को पुलिस के हवाले कर दें। तभी से चुनाव आयोग का दौर शुरू हुआ जो आज तक उसी अंदाज में कायम हैं। अब सबसे बड़ा बदलाव खर्च में आया है। कम खर्च में भी कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ सकता है, इस दौर में जनता भी काफी सुकून में है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.