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तोड़ता नहीं, जोड़ता है सच्चा काव्य

बलिया आज विश्व काव्य दिवस है। इसकी परिकल्पना वर्ष 1999 में युनेस्को के तीसवें आम सम्मेलन में की गई थी। उसी वर्ष कवियों और उनके काव्य की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने तथा लोगों को कविता के भाषाई वैविध्य बहुरंगी सौन्दर्य एवं प्रभाव

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 08:17 PM (IST)Updated: Fri, 20 Mar 2020 10:57 PM (IST)
तोड़ता नहीं, जोड़ता है सच्चा काव्य
तोड़ता नहीं, जोड़ता है सच्चा काव्य

जागरण संवाददाता, बलिया : यह कवियों और उनके काव्य की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने का दिन है। लोगों को कविता के भाषाई वैविध्य, बहुरंगी सौंदर्य एवं प्रभाव से रूबरू कराने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व काव्य दिवस मनाने का संकल्प लिया गया। यूनेस्को की मंशा थी कि इसके माध्यम से न केवल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, बल्कि इलाकाई काव्य आंदोलनों को भी नई पहचान और ऊर्जा हासिल हो सके। यह कहना है साहित्यकार शशिप्रेम देव का।

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वह कहते हैं, छोटे शहरों, कस्बों और गांवों के अधिकतर लोग भले ही विश्व काव्य दिवस से अपरिचित-उदासीन हों, कितु केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय तथा साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष इसे 'सबद : विश्व कविता उत्सव' के रूप में मनाता है। तड़क-भड़क और बाजारवाद के इस दौर में बहुत से लोग जिन्हें कविता की ताकत और जिजीविषा का अंदाजा नहीं है, जो इसे एक अनुपयोगी तथा मृतप्राय कला घोषित करने पर तुले हुए हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि इतिहास तथा संस्कृति की संवाहक के रूप में तथा मानव को मानव बनाए रखने के लिए कवि और उसकी कविता का बचे रहना आज भी उतना ही जरूरी और औचित्यपूर्ण है जितना पहले था। कविता हमेशा से संतों, सूफियों, दार्शनिकों, विद्वानों, राजनेताओं आदि से अभिन्न रूप से जुड़ी रही है। इसके माध्यम से व्यक्ति न केवल खुद को, बल्कि अपने आस-पास की दुनिया को भी सकारात्मक ढंग से बदल सकता है। कवि धरती की लाडली संतान है। उसे उसी प्रकार बचाकर, सहेजकर रखना होगा जैसे अस्तित्व के लिए हवा, पानी, धूप, वनस्पति और मिट्टी को हिफाजत से रखा जाता है। महाकवि गोपालदास 'नीरज' के शब्दों में--

'आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य। मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।'

शशिप्रेम को यह देखकर दुख होता है कि आज बहुत से मंचीय कवि व शायर सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने एवं उत्तेजना फैलाने के नाम पर अपने अपने मत, वाद, पंथ की पक्षधरता में धड़ल्ले से भडकाऊ रचनाएं पढ़ रहे हैं। वे इस बात को भूल चुके हैं कि सच्चा काव्य तोड़ता नहीं, बल्कि जोड़ता है।


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