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खतरे की घंटी है पारंपरिक जलस्त्रोतों के प्रति उदासीनता

जागरण संवाददाता--बिल्थरारोड (बलिया): जल है तो कल है जैसी पूर्वजों की दूरगामी सोच से बढ़ती

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Jun 2018 10:15 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jun 2018 10:15 PM (IST)
खतरे की घंटी है पारंपरिक जलस्त्रोतों के प्रति उदासीनता
खतरे की घंटी है पारंपरिक जलस्त्रोतों के प्रति उदासीनता

जागरण संवाददाता--बिल्थरारोड (बलिया): जल है तो कल है जैसी पूर्वजों की दूरगामी सोच से बढ़ती दूरी व नैसर्गिक जीवन पद्धति के साथ हो रही छेड़छाड़ से मानव जीवन के लिए जलसंकट की घोर स्थिति उत्पन्न हो गई है। इससे बेपरवाह मानव जल संचयन के लिए बने संसाधनों को आहिस्ता-आहिस्ता समाप्त करता जा रहा है। इससे भू-गर्भ जलस्तर निरंतर नीचे चला जा रहा है। गर्मी आने से पहले ही अधिकांश नलकूप व हैंडपंप का जलस्तर काफी नीचे चला जा रहा है और नल भी लोगों की प्यास नहीं बुझा पा रही है। जीवनधारा कहे जाने वाले जल के प्रमुख पारंपरिक जलस्त्रोत नदी, तालाब, पोखरा व कुआं आदि को कायम रखने के लिए जमीनी स्तर पर कोई कारगर कदम न उठाए जाने से जलस्त्रोतों का अस्तित्व पूरी तरह से मिटता जा रहा है। पारंपरिक जलस्त्रोत जल संचयन के साथ ही भूगर्भ के जलस्तर को लंबे समय तक थामे रहते है। रोटरी क्लब जैसी संस्था ने तो एक सर्वे के बाद करीब एक दशक पूर्व ही चेतावनी दे दिया था कि जलसंकट के हालात ऐसे ही बिगड़ते रहे तो तय है कि अगला विश्वयुद्ध पेयजल को लेकर ही होना है। बावजूद जल का आवश्यकता से अधिक दोहन एवं जलस्त्रोतों के अस्तित्व बचाने के प्रति बेपरवाही पूरे इंसान के लिए खतरे की घंटी हो गई है। करीब 40 हजार की आबादी वाले बिल्थरारोड नगर पंचायत क्षेत्र में ही कागजों में दर्जनों तालाब व पोखरों का अस्तित्व अब पूरी तरह अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके है। महज तीन पोखरे ही फिलहाल अस्तित्व में है और उनका भी रखरखाव के अभाव में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कुछ संपन्न लोगों द्वारा विशाल पोखरा व तालाबों को अपना निजी बताकर धीरे-धीरे इनका अस्तित्व समाप्त कर रहे है। नगर के ह्दयस्थली रामलीला मैदान के समीप स्थित बिचला पोखरा को भी कुछ लोगों द्वारा निजी बताकर जीर्णोद्धार का कार्य बाधित कर दिया गया है। इसके लिए शासन से करीब 1.17 करोड़ का प्रस्ताव स्वीकृत हो गया है और इसके तहत करीब 25 लाख रुपये शासन द्वारा अवमुक्त भी कर दिया गया है। बावजूद कतिपय लोगों द्वारा राजस्व परिषद में किए गए मुकदमे के पेंच में उक्त पोखरे का जीर्णोद्धार कार्य ठप है। जबकि छठ पूजा में नगर के आस्था का गजब का यहां मेला लगता है। हालांकि नगर पंचायत द्वारा नगर के तीन पोखरों के जीर्णोद्धार व मरम्मत करने से काफी हद तक इनका अस्तित्व बच गया है। वार्ड नं. छह स्थित अति प्राचीन व विशाल पोखरा पर भी आस्था के विशाल मेला के बहाने ही इसका वजूद बचा हुआ है। सभासद प्रतिनिधि राममनोहर गांधी के प्रयास से पोखरा का पानी साफ कराया गया। अब यहां घाट बनाने की तैयारी जारी है। अतिक्रमण की भेंट चढ़ जाने के कारण नगर में अब कुआं का तो एक भी अस्तित्व रह ही नहीं गया है।

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सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं व्यवहारिक प्रयोग से बचेंगे जलस्त्रोत

जल ही जीवन है, इसे सभी जानते है और घटते जलस्तर की ¨चता व गहराते जल संकट से बचाने को लेकर जागरुकता का माला भी जपते हैं लेकिन इंसान के भौतिकवादी जीवनशैली के कारण जीवनधारा के अस्तित्व को समेटे पारंपरिक जल जलस्त्रोतों का अस्तित्व ही संकट में है। नदी, पोखरा, गड़ही, कुआं और तालाबों पर आज भी धार्मिक मान्यता के तहत लोग मत्था तो टेकते है। कार्तिक स्नान, मौनी अमावस्या, रामनवमी से लगायत छठ पूजा तक धार्मिक पर्व त्योहारों में लोग पूरी आस्था के साथ ग्रामीण इलाकों में नजदीकी कुआं, तालाब, पोखरा व नदी पर ही धूमधाम संग पूजन अर्चन करते है। धार्मिक पूजन के साथ ही पोखरा, तालाब व कुआं का पानी ही घरों में नहाने, धोने से लेकर स्नान करने व पूजा तक में प्रयोग में लाया जाता रहा है। इसके कारण लोग इसके संरक्षण के प्रति भी सदैव सक्रियता दिखाते रहे है। यहां तक की शादी-विवाह के दौरान ¨हदू मान्यता के तहत कुआं खोदने तक की परंपरा रही है ¨कतु अब यह महज परंपरा तक ही सीमित रह गया है। आज फिर से धार्मिक मान्यता के साथ ही पारंपरिक जलस्त्रोत के व्यवहारिक प्रयोग की महती आवश्यकता है। इसके संरक्षण के प्रति लोग पूरी तरह से बेपरवाह सा हो गए है। इसे बचाने को लेकर शासन-प्रशासन से लेकर स्वयं आमजनमानस पूरी तरह से उदासीन बना हुआ है।

अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए कुएं, रिकार्ड तक नहीं

बिल्थरारोड नगरपंचायत क्षेत्र में पिछले एक दशक पूर्व तक कई कुएं का अस्तित्व था ¨कतु तेजी से हुए इसके अतिक्रमण व प्रशासनिक बेपरवाही के कारण अब नगर में एक ही कुएं का अवशेष तक नहीं बचा और विभागीय रिकार्ड में भी नगर में कुआं की संख्या शून्य हो गई है।

गांवों में नाबदान के रुप में प्रयोग ¨चताजनक

ग्रामीण इलाकों में भी पोखरा व गड़ही के रख रखाव के प्रति बेपरवाही जारी है। अधिकांश गांवों में तो अब गड़ही सिर्फ नाबदान के पानी बहाने के ही काम में लाया जा रहा है। जो ¨चताजनक है।

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भविष्य को देखते हुए वाटर हार्वे¨स्टग की हो रही प्ला¨नग: चेयरमैन

- आदर्श नगर पंचायत बिल्थरारोड के चेयरमैन दिनेश गुप्ता ने कहा कि फिलहाल नगर का जलस्त्रोत ठीक है ¨कतु पहले से तैयारी नहीं हुई तो हालात खराब हो जायेंगे। इस लिए भविष्य को देखते हुए नगर में वाटर हार्वे¨स्टग सिस्टम की प्ला¨नग की जा रही है। इससे जलस्त्रोत को ठीक किया जा सकता है।


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