प्रत्याशियों को अंत तक सालती रही मतदाताओं की खामोशी
बहकावे में कभी ना आना-सोच समझकर बटन दबाना।। बहकावे में कभी ना आना-सोच समझकर बटन दबाना।। बहकावे में कभी ना आना-सोच समझकर बटन दबाना।। बहकावे में कभी ना आना-सोच समझकर बटन दबाना।। बहकावे में कभी ना आना-सोच समझकर बटन दबाना।।
डा. रवींद्र मिश्र, बलिया
---------------
बागी धरती पर लोकतंत्र का महाउत्सव शांति से गुजर गया। इस उत्सव में अदने से लेकर शीर्षस्थ तक की सक्रिय भागीदारी रही। अपने मताधिकार के प्रयोग को लेकर हर उम्र उत्साहित नजर आया। हालांकि मतदाताओं की चुप्पी अंत तक प्रत्याशियों व उनके समर्थकों को सालती रही।
रविवार को भी अमूमन हर प्रत्याशी व उनके समर्थक बूथों का दौरा कर मतदाताओं की नब्ज टटोलने का प्रयास करते रहे। कहीं-कही उनकी कोशिश रंग भी लाती दिखी, लेकिन अधिकतर मतदाताओं की खामोशी बड़ा सवाल खड़ा करती रही। बूथ पर पहुंचने वाले वोटरों के कान फूंकते रहे प्रत्याशी समर्थक। कहते रहे-अपने वोट को बेकार न करें, सोच-समझकर वोट दें। कुछ समर्थक तो यह कहते मतदाताओं के घरों की ड्योढ़ी तक पहुंच जा रहे थे कि आपको वोट डालने जाना है, अपना फर्ज निभाना है। दोनों के मध्य संवाद का दौर भी खूब चला।
प्रत्याशी समर्थक उन्हें यह कहकर प्रेरित कर रहे थे कि सारे काम छोड़ दो, सबसे पहले वोट दो। चाहे नर हो या नारी, मतदान है सबकी जिम्मेवारी। लोकतंत्र में हिस्सेदारी-हम सबकी जिम्मेदारी। बहकावे में कभी न आना-सोच समझकर बटन दबाना। कई इलाकों में प्रत्याशी व उनके समर्थकों से आक्रांत मतदाता भी मुखर नजर आए। उनका कहना था-न जाति पे न धर्म पे, बटन दबेगा कर्म पे।। बनो देश के भाग्य-विधाता, तब जागेंगे प्यारे मतदाता।
बुद्धिजीवी वर्ग के कई वोटरों का यह भी कहना था कि जो बांटे दारू, साड़ी, नोट, उसको हम कभी न देंगे वोट। न नशे से न नोट से, किस्मत बदलेगी वोट से। मतदान के दिन भरी दोपहरी में वोट की खातिर प्रत्याशियों व उनके समर्थकों का पसीना बहाना चर्चा के केंद्र में रहा।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप