इंतजाम का पीट रहे थे ढ़ोल, पॉजिटिव मिले तो खुली पोल
देश में कोरोना वायरस का शोर जब शुरू हुआ तो प्रदेश के आखरी छोर पर स्थित बलिया में कोरोना मरीजों को लेकर जिला प्रशासन अपनी पीठ थपथपाने में कोई कमी नहीं रखा। स्वास्थ्य विभाग से लेकर कोरोना की व्यवस्था संभाल रहे सभी अधिकारी आइसोलेशन और वेंटिलटर बेड की गिनती कराने से लेकर तमाम इंतजामों पर फोकस करते हुए वाहवाही लूटने रहे लेकिन जब पॉजिटिव केस मिलने शुरू हुए तो पूरी व्यवस्था की पोल तीन दिनों में ही खुल गई।
जागरण संवाददाता, बलिया : देश में कोरोना वायरस का शोर जब शुरू हुआ तो प्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित बलिया में कोरोना मरीजों को लेकर जिला प्रशासन अपनी पीठ थपथपाने में कोई कमी नहीं रखा। स्वास्थ्य विभाग से लेकर कोरोना की व्यवस्था संभाल रहे सभी अधिकारी आइसोलेशन और वेंटिलटर बेड की गिनती कराने से लेकर तमाम इंतजामों पर फोकस करते हुए वाहवाही लूटते रहे, लेकिन जब पॉजिटिव केस मिलने शुरू हुए तो पूरी व्यवस्था की पोल तीन दिनों में ही खुल गई।
बलिया के हालात यह हैं कि यहां एक कोरोना मरीज के प्राथमिक उपचार तक के समुचित इंतजाम नहीं है। अब तक 10 कोरोना मरीजों को बेहतर उपचार के लिए आजमगढ़ मेडिकल कोलज में भेजा गया है। जिला प्रशासन कहने के लिए तो 80 आइसोलेशन वार्ड सुरक्षित रखने का दावा कर रहा है लेकिन वेंटिलेटर के नाम पर पब्लिक को गुमराह करने वाली बातें सामने हैं। कहीं भी पाइप लाइन से वेंटिलेटर को संचालित करने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जिला अस्पताल में भी सिलेंडर से ही वेंटिलेटर संचालित करने की सुविधा है। जानकारी देने से कतरा रहे अधिकारी
कोरोना से संबंधित कोई भी जानकारी देने से कई अधिकारी कतरा रहे हैं। यहां तक कि कोरोना को लेकर बने कंट्रोल रूम से भी किसी तरह की कोई पुष्ट सूचना नहीं मिल पा रही है। जनपद में 10 कोरोना पॉजिटिव केस के अलावा रविवार को दो और कोरोना पॉजिटिव केस मिलने की सूचना मिलने के बाद यह खबर बाहर वायरल होने लगी, लेकिन विभाग की ओर से काफी देर तक इसे रहस्यमय बनाकर रखा गया। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है लेकिन सभी जिम्मेदार हर मामले की अनदेखी कर रहे हैं। कोरोना के केस बढ़ने से जनपद के लोगों की धड़कनें तेज हो चली हैं और ऐन वक्त पर पूरी तरह ध्वस्त है।
जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति
लॉकडाउन के दौरान गैर प्रातों व महानगरों से आने वाले लोगों का कारवां थमता नहीं दिख रहा। हर रोज औसतन चार हजार लोग जनपद में आ रहे हैं। कुछ श्रमिक स्पेशल ट्रेन से यहां पहुंच रहे हैं तो कुछ सरकारी बसों से घर वापसी कर रहे हैं। वहीं बहुतेरे ऐसे भी हैं जो ट्रकों, टैम्पो व प्राइवेट साधनों सहित साइकिल व मोटर साइकिल से ही अपनों के बीच पहुंच रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान अब तक करीब 50 से 60 हजार लोग जनपद में वापस आ चुके हैं। इसमें अधिकांश मजदूर महाराष्ट्र, तेलंगना, गुजरात, राजस्थान व दिल्ली से आये हैं जहां पर बड़े पैमाने पर कोरोना संक्रमण फैला है। सुरक्षा के लिहाज से सही तरीके से इनकी जांच होनी चाहिए थी। पर विडंबना यह है कि अभी भी प्रवासी मजदूरों का स्वास्थ्य जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर घर भेज दिया जा रहा है। इससे गांव देहात में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है।
ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में परीक्षण के कोई मुकम्मल इंतजाम न होने से स्वास्थ्य कर्मी लोगों से सांस, खांसी व बुखार आदि की तकलीफ पूछकर घर भेज दे रहे हैं। इससे जहां संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है वहीं व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लग रहा है। लोगों के मन में उठ रहे सवाल
जिले के विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्रों पर जांच की व्यवस्था देख खुद प्रवासी भी सकते में हैं। कागजी कोरम की खानापूर्ति से उनके मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। खुद प्रवासियों का कहना है कि ऐसे में कोरोना को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन दिख रहा है। कुछ लोगों ने बताया कि बाहर से वापस लौटने की सूचना जिम्मेदारों को देने के 48 घंटे बाद भी न तो स्वास्थ्य टीम पहुंच रही है और न ही कोई अन्य ही खोज-खबर ले रहे हैं। ऐसे में कोरोना संकमण को कैसे रोका जा सकता है।