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आधुनिकता की दौड़ में गुजरे जमाने की वस्तु बने सूप

छठ पूजा में बांस की दउरी (टोकरी) व सुपली का विशेष महत्व है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 06:07 PM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 06:07 PM (IST)
आधुनिकता की दौड़ में गुजरे जमाने की वस्तु बने सूप
आधुनिकता की दौड़ में गुजरे जमाने की वस्तु बने सूप

जागरण संवाददाता, बलिया: छठ पूजा में बांस की दउरी (टोकरी) व सूप का विशेष महत्व है। बांस को आध्यात्मिक ²ष्टि से भी शुद्ध माना गया है। छठ पूजा में बांस की सुपली में पूजन सामग्री रखकर अ‌र्घ्य देने का विधान है। इसके अलावा विभिन्न त्योहारों व अनुष्ठानों के अलावा रोजमर्रा की जिदगी में भी बांस व मूज से बने सामानों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है।

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बदलते दौर में बांस से तैयार दउरी व सुपली सब गुजरे जमाने की चीज बन कर रह गयी है़। हालांकि हस्तशिल्प की इस कला को आज भी कुछ लोग जीवित रखे हुए हैं। यह बात दीगर है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में पौराणिक महत्व की चीजें अब गुजरे जमान की बात हो गई है और लोग इसे पूछ नहीं रहे हैं। छठ पर्व पर बांस के सामनों की बिक्री बहुतायत में होती थी लेकिन लगातार इसके मांग घट रही है। इस कारण इन उत्पादों के निर्माण में जुटे ग्रामीण शिल्पकार दिन ब दिन बेकारी के शिकार होते जा रहे। दरअसल परिवर्तन के दौर में बांस से निर्मित दउरी (टोकरी) व सुपली का स्थान पीतल के सूप ने ले लिया। इसकी सबसे बड़ी वजह इनका टिकाऊ होना है क्योंकि बांस से बनी इन सामग्रियों को हर साल खरीदना पड़ता है। वहीं पीतल से बनी सुपली एक बार खरीद लेने के बाद बार-बार प्रयोग की जाती है।

महंगाई के चलते रोटी के लाले

बासं की दौरी (टोकरी ) व सूप पर मंहगाई की मार साफ दिख रही है। बांस की सुपली से जहां अ‌र्घ्य दिया जाता है वहीं दउरी में पूजा के सामान रख कर छठ के घाट ले जाया जाता है। बांस की कमी व मंहगाई की वजह से दउरी व सुपली के दाम आसमान चूम रहे हैं और लोगों को इसकी खरीदारी करने में पसीना छूट रहा है। बाजार में एक दउरी की कीमत दो सौ से ढाई सौ रुपये तक है। बांस का सामान तैयार करने वाले नगर के बहादुर निवासी राजेन्द्र ने बताया कि बेशक दउरी व सुपली के दाम पहले से काफी बढ़ गया है बावजूद दो वक्त की रोटी ठीक से नसीब नहीं हो पाती है। बांस के लिए पड़ोसी जनपद का सफर तय करना पड़ता है। बड़ी मशक्कत के बाद गाजीपुर व छपरा से बांस लाते हैं फिर उससे इन सामानों का निर्माण किया जाता है। वहीं कैलाश ने बताया कि बांस की कीमत भी पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया है। जो बांस पहले 150-200 रुपये में मिल जाता था वह आज 300-350 रुपये में मिल रहा है। वहीं आधा दिन तो बांस खोजने में लग जाता है। महीनों पहले से घर के सारे सदस्य मिलकर दउरी व सुपली तैयार करते हैं। दिन भर में बमुश्किल तीन या चार दउरी तैयार हो पाती है। इतने महंगे दाम पर बेचने के बाद भी देहाड़ी तक नहीं निकल पाती लेकिन पुश्तैनी धंधे से भाग कर जाएंगे कहां।


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