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बुरे काम का बुरा नतीजा, गुनहगारों को मिल ही गई सजा

हर मोड़ पर सहमी पापी नीयत हर मोड़ पर सहमी पापी नीयत हर मोड़ पर सहमी पापी नीयत हर मोड़ पर सहमी पापी नीयत हर मोड़ पर सहमी पापी नीयत

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 10:52 PM (IST)Updated: Sat, 21 Mar 2020 06:04 AM (IST)
बुरे काम का बुरा नतीजा, गुनहगारों को मिल ही गई सजा
बुरे काम का बुरा नतीजा, गुनहगारों को मिल ही गई सजा

डा. रवींद्र मिश्र, बलिया

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16 दिसंबर 2012 ये वो तारीख है जिसे शायद ही कोई भूला हो। खासकर बागी धरती के लोग तो इस घटना के बाद उबल पड़े थे। इतिहास के काले पन्नों में दर्ज इस तारीख ने बलिया ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना ने सड़क से संसद तक ही नहीं, बल्कि देश और दुनिया में तहलका मचा दिया था। बलात्कार की उस घटना के सात साल बाद निर्भया के परिजनों को न्याय मिला है। निर्भया के चारों दोषियों को हुई फांसी की सजा के बाद एक बार फिर निर्भया सभी के दिलों में जिदा हो गई। वहीं हर मोड़ पर पापी नीयत भी सहम गई।

बागी धरती पर लोगों ने माना कि न्याय व्यवस्था में भले ही देर हुई, लेकिन फांसी की सजा से देशभर के लोगों की भावनाओं का सम्मान हुआ। यह भारतीय मानवता है कि लोग किसी की मौत पर खुशी का इजहार नहीं करते, लेकिन इससे समाज के हर मोड़ पर पापी नीयत अवश्य सहम गई है। बेटियों के मन को शांति मिली है और आम अभिभावकों के मन को सुकून। हर माता-पिता की थी यही इच्छा

12 दिसंबर की उस रात एक चलती बस में पांच बालिग और एक नाबालिग ने जिस तरह से निर्भया के साथ हैवानियत का खेल खेला वे बेहद ही शर्मनाक था। 23 साल की निर्भया पैरामेडिकल की छात्रा थी। वो फिल्म देखने के बाद अपने एक दोस्त के साथ बस में सवार होकर मुनिरका से द्वारका जा रही थी। बस में उन दोनों के अलावा छह लोग और थे, जिन्होंने निर्भया के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। विरोध करने पर आरोपितों ने निर्भया के दोस्त को इतना पीटा कि वह बेहोश हो गया। रात के इस घने अंधेरे और सड़क पर दौड़ती इस तेज रफ्तार बस में निर्भया अकेली पड़ गई और हैवानों ने हैवानियत की सारी सीमाएं पार कर दी थीं। बोली थी निर्भया 'मैं जीना चाहती हूं मां'

घटना के बाद जब पूरा देश निर्भया की सलामती की दुआएं कर रहा था, मौत की नींद सोने से पहले निर्भया अपनी मां से कई बातें बोलना चाह रही थी, लेकिन वह बोल नहीं सकती थी, संकेत में या लिखकर बता रही थी कि वह मरना नहीं जीना चाहती है। निर्भया की मां ने बताया कि उसके इस अंतिम वाक्य ने ही हमें पूरी तरह तोड़ दिया था। बेटी तो नहीं बची, लेकिन तभी हमने संकल्प ले लिया था कि जिस तरह मेरी बेटी इस दुनिया में एक अच्छी जिदगी जीना चाहती थी, लेकिन दरिदों ने उसे मार डाला, उसी तरह सभी दोषियों को तड़पना होगा। शुक्रवार को फांसी के बाद निर्भया की मां के स्वर पूरी तरह शांत थे। निर्भया के गांव वाले सुबह हुए आश्वस्त

निर्भया केस में कई बार दोषियों की फांसी टलने के बाद गांव के लोगों को इस बार भी यकीन नहीं हो रहा था। सभी लोग मान रहे थे कि इस बार भी कोई न कोई ड्रामा दोषियों के वकील जरूर करेंगे। हुआ भी ऐसा वे देर रात तक अपनी हरकतों से बाज नहीं आए, लेकिन इस बार न्यायालय के फैसले ने दोषियों के जिदगी की आखिरी तारीख पर अपनी मुहर लगा दी और सुबह निर्धारित समय पर उन्हें फांसी दे दी गई। देर तक गांव के लोग टीवी पर पल-पल की खबरों से अपडेट हो रहे थे। जो लोग खबरों से दूर थे उन्हें भी गांव के लोग अपने मोबाइल से उन्हें केस के हर अपडेट की जानकारी दे रहे थे।

कुछ निर्भया के माता-पिता से भी जानकारी लेना चाह रहे थे, लेकिन कोर्ट की भागदौड़ के कारण उनसे बात नहीं हो पा रही थी। सुबह में गांव के लोगों को जब समाचार के माध्यम से इस बात की जानकारी हुई कि चारों दोषियों विनय कुमार शर्मा, पवन कुमार गुप्ता, मुकेश और अक्षय को तिहाड़ जेल के अंदर फांसी दे गई तो सभी लोगों का मन शांत हुआ। लोग एक-दूसरे के घरों पर जाकर यह समाचार की जानकारी देने लगे। इस सजा के बाद गांव के लगभग हर उम्र के लोगों ने कहा बुरे कर्म का बुरा नतीजा, यह तो होना ही था।


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