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एक डाक्टर पर 145 से 200 तक मरीजों के उपचार का है बोझ

जागरण संवाददाता, बलिया : जिला अस्पताल या जिला महिला अस्पताल में सभी रहनुमा या अधिकारी निरीक्षण

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 09:52 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 09:52 PM (IST)
एक डाक्टर पर 145 से 200 तक मरीजों के उपचार का है बोझ
एक डाक्टर पर 145 से 200 तक मरीजों के उपचार का है बोझ

जागरण संवाददाता, बलिया : जिला अस्पताल या जिला महिला अस्पताल में सभी रहनुमा या अधिकारी निरीक्षण जरूर करते हैं ¨कतु किसी का भी ध्यान सुविधाओं की ओर नहीं जाता है। शासन स्तर से भी अस्पतालों की व्यवस्था दुरूस्त नहीं की जा रही है। यहां जनप्रतिनिधि या अधिकारी जो भी निरीक्षण करने पहुंचते हैं वे खुली आंखों से यह देखते हैं कि हर विभाग में मरीज भारी संख्या में लाइन में लगे रहते हैं। दवा से लेकर बेड और इमरजेंसी सर्वत्र के हालात ठीक नहीं हैं। इसके बावजूद भी तमाम व्यवस्थाओं को सुधारने की ओर काई सुधार नहीं होता। बदलते मौसम में वायरल बुखार, सर्दी, खांसी आदि के मरीजों की संख्या बढ़ी है। औसतन दो हजार से 2500 तक मरीज जिला अस्पताल में विभिन्न रोगों का उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। जबकि यहां संविदा और सरकारी डाक्टरों की कुल संख्या 17 बताई गई। ऐसे में यहां के सभी चिकित्सक भीड़ से हमेशा प्रेशर में रह कर ही अपनी सेवा देते हैं। मरीजों की संख्या के अनुपात में यहां कुल 65 चिकित्सकों की जरूरत है। अभी के समय में हर विभाग में एक डाक्टर से ही काम चलाया जा रहा है। इस दौरान यदि कोई डाक्टर अवकाश पर जाते हैं तो ओपीडी भी बंद हो जाता है। जो डाक्टर हैं भी उनमें से अधिकांश भीड़ देखकर ही तेवर में रहते हैं और मरीज के साथ भी झल्लाहट भरे अंदाज में बात करते हैं। इसी के बगल में स्थित महिला अस्पताल भी है। उसकी दशा भी सराहनीय नहीं है। यहां भी कुल डाक्टरों की संख्या भी 17 है। यहां भी हर दिन 500 से 650 महिला मरीज अपना उपचार कराने पहुंचती हैं। महिला अस्पताल में कोई शिशु का जन्म लेता है तो उसके परिजनों को किसी प्राइवेट अस्पताल के तर्ज पर खर्च करने होते हैं। ऐसा नहीं करने पर देखभाल भी प्रभावित हो जाता है। दोनों स्थानों पर कुछ दलाल किस्म के लोगों का भी अपना सिक्का अलग से चलता है।

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--मांग अनुसार नहीं होती दवा की आपूर्ति

जिला अस्पताल में मांग के अनुसार दवा की आपूर्ति भी नहीं हो पाती। अस्पताल में जरूरी दवाओं का भी अभाव है। इस वजह से लोगों को बाहर से दवा खरीदने की मजबूरी है। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर भी सभी तरह की जरूरी दवाएं नहीं मिल पा रही है। लोग अपना उपचार को डाक्टरों से तो करा लेते हैं ¨कतु दवा की जब बात आती है तो उन्हें जरूरी दवाएं अस्पताल के बाहर मेडिकल स्टोर पर ही मिलती है। ऐसे में गरीबों के बेहतर उपचार की सुविधा उपलब्ध कराने की बात भले ही हर दिन होती है ¨कतु धरातल की तस्वीर काफी खराब है जो हनक जमाने से नहीं सुविधाएं मुहैया कराने से ठीक होगी।

--साफ-सफाई पर नहीं रहता है ध्यान

अस्पताल में साफ-सफाई पर भी कोई खास ध्यान नहीं रहता है। इसके लिए मरीजों के परिजन और कर्मचारी भी दोषी हैं। मरीज के परिजन अस्पताल परिसर में ही पानी या गुटखा खाकर उसका पीक कहीं भी थूक देते हैं। वहीं अस्पताल कर्मी भी इस मामले में लापरवाही बरतने से बाज नहीं आते। अस्पताल परिसर हो या अंदर, गंदगी का अम्बार यूं ही दिख जाता है। बेड के की दशा भी अच्छी नहीं होती। यहां भर्ती होने वाले मरीजों की दशा किसी जेल से कम नहीं होती।

------वर्जन---------

अस्पताल में डाक्टरों की कमी है। दवा भी डिमांड के अनुसार नहीं मिल रहा है। वहीं विभाग बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में किसी तरह काम चलाया जा रहा है। यदि अस्पताल को सारी सुविधाएं मुहैया करा दी जाए तो हालात बदल जाएंगे। शासन स्तर पर डाक्टरों और डिमांड के अनुसार दवाओं की आपूर्ति के लिए हमेशा लिखा जाता है।

एस प्रसाद, सीएमएस।


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