..ये बुजुर्ग किसे सुनाएं अपनों से मिले जख्मों की दास्तां
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर छलकी वृद्धजनों की आंखें अपनों की उपेक्षा से आहत बुजुर्गों की आश्रम में कट रही जिदगी
प्रदीप तिवारी, बहराइच : जीवन का अंतिम पड़ाव इनके लिए कसक की तरह है। वजह भौतिकता की रेस में शामिल होकर बुलंदियां छूने को ऐसे बेताब हुए कि अपनों से दूर होते चले गए। इसी का नतीजा है कि चित्तौरा ब्लॉक के फुटहा में संचालित वृद्धाश्रम में 75 बुजुर्ग अपने ही कुनबे से दूर बची जिदगी काट रहे हैं।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने मानस में कहा है कि करि गहि केस करे जो घाता, ताहू न हेत उतारहि माता। अर्थात बालक अपनी मां का केश पकड़कर खींचता है फिर भी उसे गुस्सा नहीं आता। यहां रह रहे वृद्धों से जब बातचीत शुरू की गई तो उनकी आंखें छलक पड़ी। कंपकंपाते लहजों से बोले कि किसे अच्छा लगता है वृद्धाश्रम में रहना। अपनों से ठुकराने के बाद यह आश्रम उनका सहारा बना है। यहां आने के बाद जीवन जीने की ललक एक बार फिर उत्पन्न हुई। आश्रम में रहन-सहन, खान-पान, दवा आदि का पूर्ण बंदोबस्त है।
बावजूद इसके, अपनों को देखने, उनके साथ सुख-दुख बांटने की अभिलाषा जेहन में कौंधती रहती है। तीज-त्योहारों पर परिवारजनों के साथ खुशियां साझा करना हर किसी सपना होता है कितु हमारे लिए हर त्योहार अपनों से दूर होने का गम लेकर आता है।
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.. और दर्द सुनाते बहे अश्रुधार
शहर से सटे फुटहा स्थित वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग मौजीलाल ने बताया कि उनके सात बेटे-बेटियां हैं। शादी के बाद बेटियां ससुराल जा चुकी हैं। बेटे बाप बन चुके हैं। सोचा था जिम्मेदारी से छुट्टी मिली, परिवार वालों के साथ मौज से दिन काटेंगे। इसके बाद आंखों से आंसू छलकने लगे। बोले जैसे जमीन-जायदाद हाथ से गई। बच्चों ने दुत्कार दिया। यह व्यथा सिर्फ मौजीलाल की ही नहीं बल्कि दुलारे, रामावती, कन्हैयालाल, पंचम, मंशाराम, श्रीचंद समेत अन्य बुजुर्गों की है, जिनकी अपनी की व्यथा कहने में जुबान अटकती है।
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वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की माता-पिता की तरह सेवा की जाती है। अपनों से दूर रहने का इन्हें दर्द न हो, इसके लिए मनोरंजन, दवा, उचित खानपान आदि का ख्याल रखा जाता है।
-दिलीप द्विवेदी, प्रबंधक वृद्धाश्रम