गरीबी उन्मूलन रूख -ए-दरिया बदलना हमें भी आता है
योगेंद्र मौर्या, मिहीपुरवा (बहराइच) : मेहनत और लगन से कोई काम असंभव नहीं है। इसका प्रत्यक्ष
योगेंद्र मौर्या, मिहीपुरवा (बहराइच) : मेहनत और लगन से कोई काम असंभव नहीं है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है प्रभा देवी। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित जंगल से सटे गांव निधिपुरवा की रहने वाली प्रभा समूह गठन कर तरक्की की इबारत लिख रही है। अपने हौंसले और जज्बे से गरीबी रौंद कर अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ रही है।
मिहीपुरवा ब्लॉक मुख्यालय से 15 किमी दूर जंगल से सटा यह गांव नेपाल सीमा पर बसा है। प्रभा के पति प्रताप गुप्ता अदरक, कुंदरू व परवल आदि की खरीद ब्रिकी करते थे। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इंटर तक पढ़ी प्रभा की मुलाकात बिहार से आए स्वयं सहायता समूह के कुछ लोगो से हुई। उनसे प्रेरणा लेकर प्रभा संतोषी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी, जो गौरी महिला ग्राम संगठन निधिपुरवा से संबंद्ध है। इस संगठन में सात समूह और 86 सदस्य जुड़े हैं। प्रभा ने समूह से दो लाख लेकर पुराना ट्रैक्टर व धान कुटाई की मशीन खरीद कर नए सिरे से ¨जदगी शुरू की। चलते फिरते मशीन से प्रभा नि:शुल्क धान की कुटाई करती है। इसके एवज में उसे ब्रांड व भूसी मिलता है। इसकी ब्रिकी करके वह आठ सौ से लेकर 12 सौ रुपये तक प्रतिदिन कमा लेती है। इससे परिवार का भरण-पोषण तो करती ही है साथ ही अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रही है। आज उसके पास तीन बीघे जमीन भी है। साक्षर पति उसके काम में हाथ बंटा रहे है। ट्रैक्टर से खेतों की जुताई करके भी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे है। अन्य महिलाएं भी इनके साथ जुड़ कर स्वालंबन की कहानी गढ़ रही है। प्रभा मानती हैं कि भाग्य की रेखा हाथ में शिक्षा में है। प्रभा अपने जुनून, जज्बे और मेहनत के बूते आसपास के गांव में लोगो के लिए मिसाल बनी हुई है। ब्लॉक एंकर पर्सन नंदकिशोर शाह बताते है कि समूह से जुड़कर प्रभा ने गरीबी को तो शिकस्त दी ही अन्य महिलाओं के लिए भी आदर्श बन चुकी है।